
2002 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव की डुगडुगी बज चुकी थी. गोरखपुर की विधानसभा सीट से युवा सांसद योगी आदित्यनाथ अपने करीबी डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल को लड़ाना थे. योगी का मानना था कि गोरखपुर सीट के सियासी समीकरण अग्रवाल के पक्ष में हैं, लिहाजा दूसरे को टिकट मिलने पर जीत मुश्किल होगी. मगर, बीजेपी ने टिकट दे दिया कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह की बीजेपी सरकार में मंत्री रहे शिव प्रताप शुक्ला को. शुक्ला चार बार के विधायक तो थे ही, तीन बार कैबिनेट मंत्री भी रह चुके थे.
अपने करीबी के लिए पुरजोर सिफारिश के बाद भी टिकट न मिलने से योगी आदित्यनाथ पार्टी से खफा हो उठे. फिर उन्होंने दांव चल दिया. यह दांव था राधा मोहन दास अग्रवाल को अखिल भारतीय हिंदू महासभा के बैनर से बीजेपी उम्मीदवार शिव प्रताप शुक्ला के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारने का. योगी के जनाधार का असर रहा कि राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे शिव प्रताप शुक्ला तीसरे नंबर पर खिसक गए. उस चुनाव में अग्रवाल जहां 38830 वोट पाकर जीते, वहीं शुक्ला सिर्फ 14509 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे.
यह एक ऐसा मौका था, जब अपनी मांग पूरी न होने से खफा होकर एक 31 साल के सांसद ने पार्टी को अपनी ताकत दिखा दी थी. उन्होंने पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार के ही खिलाफ अपना उम्मीदवार लड़ाया भी और जिताया भी. उस वक्त हारे शिव प्रताप शुक्ला को बाद में 2016 में पीएम मोदी ने न केवल राज्यसभा भेजा, बल्कि बाद में वित्त राज्यमंत्री भी बनाकर सियासी वनवास खत्म किया.
दरअसल, 2002 की हार के बाद से ही शिव प्रताप शुक्ला नेपथ्य में चले गए थे. उस हार ने ने उन्हें यूपी के राजनीतिक क्षितिज पर इस कदर हाशिये पर डाला कि उनका राजनीति करियर ही खत्म मान लिया गया था. कहा जाता है कि बाद में शिव प्रताप शुक्ला से योगी के रिश्ते बेहतर हुए तो वह भी मोदी सरकार में उन्हें मंत्री बनाए जाने के पक्ष में थे.
पांच जून 1972 को उत्तराखंड के पौड़ी जिले के पंचूर गांव में जन्मे योगी आदित्यनाथ पर अब तक कई किताबें लिखी जा चुकीं हैं. इन्हीं में से एक किताब बीके चतुर्वेदी ने भी लिखी है. नाम है- Monk to Majesty: Biography of Yogi Adityanath. इस किताब में 2002 के विधानसभा चुनाव में योगी के इस दांव-पेच का उल्लेख है. चतुर्वेदी ने योगी आदित्यनाथ के बागी तेवर की बानगी के तौर पर एक और घटना का उल्लेख किया है. जब वह आडवाणी से ही नाराज होकर उनकी बैठक में नहीं पहुंचे थे. जिसके बाद खुद आडवाणी ने उनसे मुलाकात की. यह नाराजगी तब थी, जब योगी आदित्यनाथ को आडवाणी कैंप का ही माना जाता रहा.
योगी का सियासी करियर
मठ के महंत की गद्दी से यूपी के मुख्यमंत्री तक की कुर्सी तक पहुंचे योगी आदित्यनाथ गोरखनाथ मठ के महंत रहे अवैद्यनाथ की खोज माने जाते हैं. आज के योगी कभी उत्तराखंड के अजय बिष्ट थे, जिनकी प्रतिभा को अवैद्यनाथ ने पहचाना और उनके पिता आनंद सिंह बिष्ट से एक दिन कहा-अपने चार लड़कों में से एक लड़के को हमें दे दीजिए. इसके बाद से संन्यास धारण करने के बाद अजय सिंह बिष्ट योगी आदित्यनाथ हो गए.
चूंकि गोरखनाथ मठ का संसदीय राजनीति से गहरा नाता रहा. लिहाजा मठ के महंत के साथ योगी राजनेता भी बन गए. गोरखनाथ मठ के संसदीय राजनीति से जुड़ने के इतिहास की बात करें तो 1967 में मठ के महंत दिग्विजयनाथ हिंदू महासभा के टिकट पर गोरखपुर के सांसद बने. वहीं उनके उत्तराधिकारी महंत अवैद्यनाथ 1962, 1967, 1974 व 1977 से मानीराम विधानसभा सीट से लगातार विधायक चुने गए.
1970 में अवैद्यनाथ पहली बार सांसद बने तो फिर 1989, 1991 और 1996 में भी उन्होंने जीत हासिल की. इसके बाद अवैद्यनाथ ने योगी आदित्यनाथ को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित करते हुए मात्र 26 साल की उम्र में बीजेपी से टिकट दिलाकर चुनाव मैदान में उतार दिया. 1998 में गोरखपुर से लोकसभा चुनाव जीतकर 12 वीं लोकसभा के सबसे कम उम्र के सांसद बने. फिर वे लगातार पांचवी बार 2014 में भी सांसद बने. इसके बाद 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बंपर सफलता मिली तो उन्होंने मार्च 2017 में पार्टी ने मुख्यमंत्री बनाया.