Advertisement

Javed Ali Khan: लेफ्ट की छात्र राजनीति से समाजवाद की सियासत तक, ऐसा रहा जावेद अली खान का सफर

Javed Ali Khan samajwadi party rajya sabha candidate: जावेद अली खान एक आम किसान परिवार से आते हैं. यूपी के संभल से वो दिल्ली पढ़ाई के लिए आए थे और यहीं छात्र राजनीति से जुड़ गए. पहले लेफ्ट छात्र संगठनों से जुड़कर राजनीति की और इसके बाद समाजवादी पार्टी के गठन के शुरुआती दिनों में ही वो सपा से जुड़ गए. जावेद अली खान की छवि एक सौम्य स्वभाव वाले सरल नेता की मानी जाती है.

राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन करते हुए जावेद अली खान (फोटो-पीटीआई) राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन करते हुए जावेद अली खान (फोटो-पीटीआई)
जावेद अख़्तर
  • नई दिल्ली,
  • 26 मई 2022,
  • अपडेटेड 6:03 PM IST
  • अप्रैल 1994 में सपा में शामिल हुए थे जावेद अली खान
  • 2014 में पहली बार सपा ने बनाया राज्यसभा सांसद
  • यूपी के संभल के रहने वाले हैं जावेद अली खान

समाजवादी पार्टी में जब मुस्लिम नेताओं का जिक्र आता है तो सबसे पहला नाम आजम खान का सुनाई देता है. आजकल वो फिर चर्चा में हैं. जेल से रिहा होकर आए हैं और सपा प्रमुख अखिलेश यादव से नाराज बताए जा रहे हैं. लेकिन सपा में एक मुस्लिम नेता ऐसे भी हैं जो लाइमलाइट में भले ही कम रहते हों मगर बात जब पार्टी के भरोसे की आती है तो उनका नाम पहली फेहरिस्त में नजर आता है. ये नाम है जावेद अली खान, जिन्हें सपा ने एक बार फिर राज्यसभा भेजने का फैसला किया है.

Advertisement

जावेद अली खान इससे पहले 2014 से 2020 तक समाजवादी पार्टी के सदस्य के रूप में राज्यसभा सांसद रह चुके हैं. यानी ये दूसरा मौका है जब वो राज्यसभा सांसद बनने जा रहे हैं.

आम तौर पर नेताओं का राजनीतिक करियर सांसदी, विधायकी के इर्द-गिर्द रहता है. लेकिन जावेद अली खान सपा के ऐसे नेता हैं जिनका ज्यादा वक्त पार्टी संगठन के लिए काम करते हुए गुजरा है. 

जावेद अली खान एक स्वच्छ छवि वाले, गैर-विवादित और वैचारिक नेता के तौर पर अपनी पहचान रखते हैं. सादगी और मधुर भाषा उनकी विशेषता बताई जाती है. एक गैर-राजनीतिक परिवार में जन्म लेने वाले जावेद अली को देश के उच्च सदन में दूसरी बार पहुंचने का गौरव प्राप्त हुआ है.

जावेद अली खान का परिवार और शुरुआती जीवन

जावेद अली खान मूल रूप से यूपी के संभल जिले के रहने वाले हैं. 31 अक्टूबर 1962 को यहां के मिर्जापुर नसरुल्लापुर गांव में उनका जन्म हुआ. ये गांव बहजोई क्षेत्र के अंतर्गत आता है. जावेद अली खान का परिवार मूलत: खेती-किसानी से जुड़ा रहा है. बाद में उनके पिता अशफाक अली खान दिल्ली के एंग्लो-अरैबिक स्कूल में टीचर हो गए. ये स्कूल दिल्ली के सबसे पुराने स्कूलों में से है. फिलहाल, जावेद अली खान के पिता और माता मुश्ताक बेगम गांव में ही रहते हैं. 

Advertisement

जामिया स्कूर में टीचर हैं पत्नी

जावेद अली खान की पत्नी आसिमा किश्वर जामिया स्कूल में टीचर हैं. परिवार में दो बच्चे- एक बेटा और एक बेटी है. बेटे जामिया से एमए फाइनल ईयर की पढ़ाई कर रहे हैं, जबकि बेटी जेएनयू से पढ़ रही हैं. एक छोटे भाई हैं जिन्होंने जामिया से एमए की पढ़ाई की है और अभी गांव में ही खेत संभालते हैं. जावेद अली खान का एक घर दिल्ली के ओखला में भी है और दोनों ही जगह परिवार का रहना होता है. 

पढ़ाई के लिए दिल्ली आए और राजनीति से जुड़ गए

जावेद अली खान ने अपनी स्कूलिंग बहजोई से ही की. इसके बाद वो हायर स्टडीज के लिए दिल्ली आए और जामिया में एडमिशन ले लिया. जामिया से उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया. इसके बाद ग्रेजुएशन रुहेलखंड यूनिवर्सिटी से किया और उस्मानिया यूनिवर्सिटी से प्राइवेट मास्टर्स किया. 

एक तरफ जावेद अली खान पढ़ाई करते रहे दूसरी तरफ वो दिल्ली में छात्र राजनीति करते रहे. जामिया के दिनों में  वो लेफ्ट के स्टूडेंट विंग AISF (ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन)  से जुड़ गए. छात्र राजनीति में वो कामयाब भी हुए और 1984-85 में जामिया छात्रसंघ के महासचिव रहे. इसके अलावा वो लेफ्ट छात्र संगठन ऑल इंडिया यूथ फेडरेशन के अध्यक्ष (1993-94) भी रहे.

Advertisement

ये वो दौर था जब मंडल कमंडल की राजनीति देश में उफान पर थी. राम मंदिर आंदोलन चरम पर था, बाबरी मस्जिद विध्वंस हो चुका था और देश की सियासत में काफी उथल-पुथल मची हुई थी. मुलायम सिंह यादव ने जनता दल से अलग होकर 1992 में अलग समाजवादी पार्टी का गठन कर लिया था और मुस्लिम समाज के बीच वो अपनी पैठ कायम कर रहे थे.

जावेद अली खान समाजवादी पार्टी में कब शामिल हुए?

इन्हीं हालातों के बीच जावेद अली खान ने छात्र राजनीति से आगे बढ़कर अप्रैल 1994 में समाजवादी पार्टी ज्वाइन की. तब से लेकर आजतक सपा के साथ ही जुड़े हुए हैं. जावेद अली खान ने लंबे समय तक एक आम कार्यकर्ता के तौर पर पार्टी के लिए काम किया और 2006 में उन्हें मुरादाबाद का जिलाध्यक्ष बनाया गया. इसके अलगे ही साल 2007 में यूपी में विधानसभा चुनाव हुए और पार्टी ने जावेद अली खान को जिले की ठाकुरद्वारा सीट से टिकट दे दिया. 

जावेद अली खान का ये पहला चुनाव था, जिसमें उन्हें शिकस्त झेलनी पड़ी. जावेद अली खान कहते हैं कि ये वो वक्त था जब उस इलाके में सपा बहुत कमजोर थी और मायावती के पक्ष में जबरदस्त माहौल था लेकिन पार्टी के आदेश का पालन करते हुए वो चुनाव में उतरे. 

Advertisement

कहा जाता है कि जावेद अली खान ने हमेशा पार्टी के आदेश को मानते हुए राजनीति की. इसका सबसे उदाहरण 2014 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिला. जावेद अली खान को चुनाव से काफी पहले ही संभल से उम्मीदवार बनाया जा चुका था, वो लगातार क्षेत्र में घूम रहे थे लेकिन चुनाव से ठीक एक महीना पहले पार्टी ने उनका टिकट काट दिया और शफीकुर्रहमान बर्क को प्रत्याशी बना दिया. हालांकि, शफीकुर्रहमान बर्क मामूली अंतर से ये चुनाव हार गए लेकिन जावेद अली खान ने पार्टी के फैसले को मानते हुए अपनी उम्मीदवारी त्याग दी और बिना विरोध किए पार्टी के साथ बने रहे. 

2014 में पहली बार राज्यसभा सांसद बने

जावेद अली खान के इस व्यवहार का उन्हें तोहफा भी मिला. सपा ने 2014 में उन्हें राज्यसभा सांसद बनाया. इस तरह जावेद अली खान लंबे सियासी सफर के बाद पहली बार किसी सदन में पहुंचे. राज्यसभा में जावेद अली खान हमेशा सही अंदाज में पार्टी का पक्ष रखते नजर आए और मुसलमानों से जुड़े मुद्दों पर भी मुखरता से बोलते दिखे. 

जावेद अली खान सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी हैं. यूं तो जावेद अली खान संभल के रहने वाले हैं लेकिन उनका राजनीतिक केंद्र अपने इलाके के साथ साथ दिल्ली भी रहा है. राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा रहती है कि अखिलेश यादव के चाचा प्रोफेसर रामगोपाल यादव से जावेद अली खान के संबंध काफी मजबूत हैं. इस सवाल पर जावेद अली खान का कहना है, कि पार्टी के सभी नेता मुझे सम्मान देते हैं. जनेश्वर मिश्रा से लेकर मुलायम सिंह, रामगोपाल सिंह और अखिलेश यादव तक, मैं पार्टी के सभी नेताओं का प्रिय रहा हूं और हूं. मैं पार्टी का कार्यकर्ता हूं. हम जिस तरह से पार्टी में अपनी बात रखते हैं, उसके लिए हमारे नेता हमें पसंद करते हैं. हम अपने स्वार्थ के लिए पार्टी का कभी प्रयोग नहीं करते और न ही हम अपने आचरण से कभी पार्टी को बदनाम करते हैं. 

Advertisement

मुसलमानों के मुद्दे उठाएंगे?

जावेद अली खान ने बताया कि सपा सभी कमजोर वर्गों की पैराकार पार्टी है जिसमें अल्पसंख्यक और मुस्लिम समाज भी शामिल है. इसलिए मुसलमानों के सवाल हमारे एजेंडे पर हमेशा ऊपर रहते हैं, इसके लिए हमें अलग से कुछ नहीं करना है, बल्कि हमारी पार्टी की लाइन ही कमजोर और उपेक्षित तबके की आवाज उठाने की है. अब हमें फिर से सदन में जाने की जिम्मेदारी मिली है तो हम भी पार्टी लाइन पर चलते हुए उपेक्षित तबकों की आवाज उठाएंगे. 

बता दें कि राज्यसभा की 11 सीटों के लिए हो रहे चुनाव में समाजवादी पार्टी ने कपिल सिब्बल, जयंत चौधरी और जावेद अली खान को उतारा है. कपिल सिब्बल ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन किया है जिन्हें सपा समर्थन कर रही है. जबकि सपा के गठबंधन में विधानसभा चुनाव लड़ी आरएलडी के अध्यक्ष जयंत चौधरी को भी सपा समर्थन दे रही है. सपा ने अपने खाते से जावेद अली खान को प्रत्याशी बनाया है. 


 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement