
सड़कों पर सन्नाटा है. आवाजाही ना के बराबर है. गंगा की लहरें कल-कल सुनाई देती हैं लेकिन उसके किनारे होने वाले लोगों का शोर अब सन्नाटे में बदल गया है. उत्तराखंड के चमोली जिले में आई आपदा ने सुबह के पर्यटन को बहुत गहरा धक्का पहुंचाया है. एडवेंचर स्पोर्ट्स रिवर राफ्टिंग और कैंपिंग के लिए मशहूर उत्तराखंड का ऋषिकेश अब सैलानियों से वीरान है. 7 फरवरी को आई तबाही के बाद ज्यादातर पर्यटक ऋषिकेश छोड़कर चले गए. साल के इस महीने में ऋषिकेश के ज्यादातर कैंप सैलानियों से भरे हुए होते थे. नदी किनारे कैंपिंग के लिए ऋषिकेश मशहूर है और लोग अलग अनुभव लेने के लिए इन कैंपों में परिवार के साथ या दोस्तों के साथ जुटते थे.
उत्तराखंड की कमाई का एक बड़ा स्रोत पर्यटन है जो कोरोनावायरस के संक्रमण काल में लगभग बर्बाद कर चुका था लेकिन अनलॉक के तहत पर्यटन जैसे ही खुला, अब चमोली आपदा ने एक बार फिर मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. नदी किनारे बने हजारों की संख्या में कैंप और रिजॉर्ट अब सुनसान हो गए हैं. आपदा के शुरुआती 4 दिनों में तो सन्नाटा ऐसा था कि मानो यहां कभी कोई आया ही नहीं. लेकिन तबाही का असर जब मैदानी इलाकों तक नहीं पहुंचा, तो सैलानी इन कैंपों की तरफ लौट तो रहे हैं लेकिन उनकी संख्या बेहद कम है.
एलीगेटर रिसोर्ट के मालिक नीरज आजतक से बातचीत करते हुए कहते हैं, "जब हादसा हुआ तो उसके बाद तीन-चार दिनों तक इलाके में बहुत सन्नाटा था और सारे पर्यटक चले गए, जाहिर है इससे हमारे बिजनेस पर बहुत ज्यादा असर पड़ा है. लेकिन जब इसका असर ऋषिकेश जैसे इलाकों में नहीं पढ़ा तो पर्यटक फिर से लौटना चाहते हैं.''
ज्यादातर रिसोर्ट में कैंप और कमरे 80 फीसदी से ज्यादा खाली चल रहे हैं. एक और रिसोर्ट के मैनेजर कुशाल ने बातचीत करते हुए कहा कि ''उस समय पर्यटक परेशान थे, क्योंकि उनके परिवार वाले लगातार फोन कर रहे थे." कुशल कहते हैं कि भले ही तबाही इस इलाके में ना आई हो लेकिन 2013 का डर लोगों को याद आ गया, इसलिए पर्यटक चले गए और उसके बाद कई दिनों तक रिसोर्ट में एक भी कैंप बुकिंग में नहीं था. लेकिन अब फिर से लोग इंक्वायरी करने लगे हैं, और आना चाहते हैं. ज्यादातर रिसोर्ट में पहले के मुकाबले बुकिंग बेहद कम है और कारोबार मंदा है, हालांकि चमोली की आपदा का असर ऋषिकेश हरिद्वार जैसे इलाकों में नहीं हुआ, लेकिन सैलानियों के भीतर भय के चलते कारोबार ठप हो गया है.
कैंपिंग के अलावा ऋषिकेश रिवर राफ्टिंग के लिए जाना जाता है. गंगा की लहरों में राफ्ट पर बैठकर खतरों से खेलना अपने आप में एक एडवेंचर है जिसके लिए हिंदुस्तान के हर कोने से सैलानी ऋषिकेश आते हैं. सैलानियों से ज्यादा अब गंगा का शोर ही सुनाई देता है. रिवर राफ्टिंग की बुकिंग लेने वाले कई दुकानों पर या तो ताला लगा है या दुकान खोले हुए हैं लेकिन वहां सैलानी नहीं हैं.
रिवर राफ्टिंग के कारोबार से जुड़े रजत कहते हैं, ''7 तारीख के बाद शुरू के 2 दिन तो रिवर राफ्टिंग पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और उसके बाद से अब तक पर्यटक डरे हुए हैं और फिक्रमंद हैं.''
रजत कहते हैं, ''वैसे तो यहां कोई खतरा नहीं आया और खतरे का कोई अंदेशा भी नहीं है लेकिन जो खबरें लोगों तक पहुंची, उसके चलते डर ऐसा फैला है कि पर्यटक फिलहाल यहां नहीं आना चाहते. और यह कहते हैं कि बुकिंग पूरी तरह खाली है और अभी रिवर राफ्टिंग की रेट भी बेहद कम है, बावजूद उसके सैलानियों की संख्या ना के बराबर है हम उम्मीद करते हैं कि वह फिर से यहां आए ताकि हमारा कारोबार चल सके.''
उत्तराखंड अगले कुछ दिनों में महाकुंभ के लिए तीर्थ यात्रियों और सैलानियों का स्वागत करेगा. ऐसे में पर्यटन को बढ़ावा मिलने की बड़ी उम्मीद है, लेकिन चमोली हादसे से पर्यटकों के डरने ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर इस पहाड़ी राज्य की जीविका आगे कैसे चलेगी.