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दरक रही धरती! सिर्फ जोशीमठ ही नहीं, उत्तराखंड के इन 4 जिलों के 30 गांवों में भी हड़कंप, डेंजर जोन के लगे बोर्ड

Joshimath Sinking Crisis: जहां एक ओर जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव ने पूरे उत्तराखंड को झकझोर कर रख दिया है तो वहीं, गढ़वाल के 25-30 गांवों में भी जमीन धंसने और मकान में दरारों की आ रही तस्वीरों ने देशभर में हड़कंप मचाकर रख दिया है. टिहरी जिले की कृषि भूमि पर पिछले दिनों से डेढ़ फुट तक दरारें पड़ चुकी हैं.

टिहरी जिले में भू-धंसाव देखते ही प्रशासन ने लगाए चेतावनी भरे बोर्ड. टिहरी जिले में भू-धंसाव देखते ही प्रशासन ने लगाए चेतावनी भरे बोर्ड.
अंकित शर्मा
  • चमोली/टिहरी/उत्तरकाशी/रुद्रप्रयाग/पौड़ी,
  • 09 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 1:10 PM IST

उत्तराखंड के जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव ने पूरे उत्तराखंड को झकझोर कर रख दिया है. वहीं गढ़वाल के अन्य इलाकों में भी जमीन धंसने और मकान में दरारों की आ रही तस्वीरों ने प्रदेश और देशभर में हड़कंप मचा कर रख दिया है. जहां एक और जोशीमठ की स्थिति दयनीय बनी हुई है, तो वहीं गढ़वाल के ऐसे 25-30 गांव और हैं, जो भू-धंसाव और घरों में दरारों का दंश झेल रहे हैं. 

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टिहरी जिले स्थित नरेंद्रनगर के अटाली गांव में ऋषिकेश- कर्णप्रयाग रेलवे स्टेशन के निर्माण से अटाली गांव के कुछ परिवारों की कृषि भूमि सहित मकानों पर दरारें पड़ गई हैं. अटाली गांव की कृषि भूमि पर पिछले दो से तीन दिनों से डेढ़ फुट तक दरारें पड़ चुकी हैं जिसके चलते गांव के कई घर खतरे की जद में आ चुके हैं.
  
गांव में पड़ रही दरारों को देखते हुए अटाली गांव के पीड़ित परिवारों में रेलवे विभाग के खिलाफ काफी आक्रोश देखने को मिल रहा है. पीड़ित परिवारों  का कहना है कि उन्होंने रेलवे निर्माण कार्य का विरोध नहीं किया, मगर अब गांव की कृषि भूमि और घरों पर दरारें पड़ रही हैं. 

पीड़ित परिवारों का कहना है कि प्रशासन और रेलवे के अधिकारी यहां हालात देखने तो आते हैं, मगर सिर्फ आश्वासन देकर चले जाते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि अटाली गांव में उनकी पुश्तैनी जमीन है. मकान हैं. अब इस स्थिति में उनको छोड़कर जाएं भी तो कैसे? पीड़ित परिवार के लोगों का यह भी कहना है कि रेलवे को जमीन का मुआवजा देकर उनका विस्थापन करना चाहिए. 

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अटाली गांव के एक खेत में चौड़ी दरार को ढंक दिया गया.

उधर, उत्तरकाशी में यमुनोत्री नेशनल हाइवे के ऊपर वाडिया गांव के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. वर्ष 2013 की आपदा के दौरान यमुना नदी के उफान पर आ जाने से इस गांव के नीचे कटाव होने लगा था. धीरे-धीरे गांव के घरों में दरार आने लगी. वहीं, यमुनोत्री धाम को जाने वाले एक मात्र नेशनल हाइवे भी धंसने लगा. 

हालांकि, रिवर साइट में प्रोटेक्शन वर्क से भू-धंसाव हल्का हुआ है लेकिन  खतरा अभी भी बरकरार है. इस गांव में करीब 100 से अधिक परिवार रहते हैं. गांव के लिए की जाने वाली बिजली सप्लाई के खंभे भी अब तिरछे हो गए हैं. देखें Video:-

रुद्रप्रयाग जनपद के तहत विकासखंड अगस्त्यमुनी का मरोड़ा गांव भी ऋषिकेश- कर्णप्रयाग  रेल लाइन की भेंट चढ़ा है. इस गांव में भी मोटी-मोटी दरारें पड़ चुकी हैं और अब गांव पूरी तरह से खाली हो रहा है. 

दरारों की वजह से खाली हो रहे गांव.

पीड़ित ग्रामीणों को विस्थापन के नाम पर मात्र कुछ धनराशि दी जा रही है, लेकिन पीड़ित परिवार इसे नाकाफी बता रहे हैं. पीड़ितों का कहना है कि इतनी कम धनराशि में वह मकान बनाएंगे या जमीन खरीदेंगे. 

सरकार को पीड़ितों को अधिक मुआवजा देना चाहिए. साथ ही विस्थापन  के लिए जमीन मुहैया करानी चाहिए. गांव में 30 से भी अधिक परिवार निवास करते थे, लेकिन अब गांव खाली हो रहा है. 

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पौड़ी के सौड गांव में रेलवे का कार्य से 30 से अधिक घरों पर दरारें पड़ी है. ग्रामीणों ने सरकार को कई बार इस विषय पर अवगत करवा दिया है, लेकिन अभी तक किसी ने भी सुध नहीं ली.  

 

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