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तेंदुए के हमले नहीं, Snake Bites से हुई ज्यादा मौतें… पढ़िए चौंकाने वाली रिपोर्ट 

इन दिनों उत्तराखंड में जंगली जानवरों के इंसानी क्षेत्रों में बढ़ते हमलों को लेकर एक बार फिर मानव वन्यजीव संघर्ष को लेकर बहस छिड़ गई है. मगर, आंकड़ों की मानें तो सबसे ज्यादा मौतें सांपों के काटने के कारण हुई हैं. मानव वन्यजीव संघर्ष को लेकर जारी की गई यह रिपोर्ट चौंकाने वाली है. 

उत्तराखंड में पिछले तीन साल में सांप के काटने से 85 मौतें हुई. उत्तराखंड में पिछले तीन साल में सांप के काटने से 85 मौतें हुई.
अंकित शर्मा
  • देहरादून ,
  • 18 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 7:09 PM IST

हाल ही में देहरादून में दो हमलों के बाद से ही गुलदार की तलाश में वन विभाग ने कैनाल रोड और आस-पास के क्षेत्र में गहन सर्च ऑपरेशन चलाया. वन विभाग के अनुसार, आठ घंटे तक डीएफओ से लेकर फॉरेस्ट गार्ड तक 40 से ज्यादा वनकर्मियों ने 30 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल खंगाला. मगर, गुलदार का कहीं पता नहीं चला. एक तरफ वन विभाग के इन चर्चाओं से पसीने छूट रहे हैं. 

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वहीं, दूसरी तरफ वन विभाग की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे ज्यादा इंसानी मौतों का कारण गुलदार और हाथियों के हमले नहीं हैं. सांपों के काटने की वजह से इंसानों की मौतों का आंकड़ा ज्यादा है. हालांकि, रिपोर्ट के मुताबिक साल 2023 में सांपों के काटने से होने वाली इंसानी मौतों के आंकड़े गिरे हैं. 

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जानिए साल दर साल कितनी हुई उत्तराखंड में मौतें 

पिछले तीन साल की वन्यजीव मानव संघर्ष रिपोर्ट बताती है कि सांप के काटने से 85 मौतें हुई. वहीं, गुलदार के हमलों में 63 मौतें, बाघ के हमलों में 35, हाथी के हमले से 27 मौतें हुई हैं. इसके अलावा भालू के हमलों से 3 मौतें हुई हैं. सबसे ज्यादा 369 लोग सांप के काटने से घायल हुए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में 66 लोगों ने जंगली जानवरों के हमलों में अपनी जान गंवाई और 317 घायल हुए हैं. साल 2022 में 82 लोग मारे गए और 325 घायल हुए. साल 2021 में 71 मौतें हुई थीं और 361 घायल हुए थे.

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2023 में हुईं कम मौतें- चीफ वाइल्ड लाइफ ऑफिसर   

आजतक से बातचीत में चीफ वाइल्ड लाइफ ऑफिसर समीर सिन्हा ने बताया कि अगर आप आंकड़े देखें, तो इस साल यह हमले कम हुए हैं. सबसे ज्यादा इंसानी मौतें गुलदार के हमले से नहीं, सांप के काटने से हुई हैं. वहीं, वन विभाग लगातार मॉनिटरिंग कर रहा है. लोगों को भयभीत होने की जरूरत नहीं है. 

किसी भी हरकत पर हमारे टोल फ्री नंबर पर कॉल कर सकते हैं. इसके साथ ही वन विभाग वन्यजीव मानव संघर्ष न्यूनीकरण सेल का गठन कर रहा है, जिसमें उत्तराखंड बनने के बाद जितने भी अब तक हमले हुए हैं उनके आंकड़ों का आकलन किया जाएगा. इसके अलावा जंगली जानवरों के हमले को रोकने के लिए और वन्यजीवों की ट्रैकिंग में मदद के लिए डिवीजन लेवल पर आधुनिक गैजेट्स दिए जाएंगे. 

वहीं, वन विभाग के मुखिया अनूप मलिक ने कहा इंसानी जनसंख्या बढ़ रही है. इसके साथ-साथ वन जीवन की संख्या अभी बढ़ रही है. इसलिए वन जीवन का रिहायशी इलाके में आना स्वाभाविक है और इसी वजह से यह हमले भी बड़े हैं.

इससे निपटने के लिए ये कदम उठा रहा है वन विभाग

बढ़ते मानव वन्यजीव संघर्ष को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वन विभाग के अधिकारियों को तलब किया था. इस दौरान उन्होंने जरूरी कदम उठाने के लिए कड़े निर्देश दिए थे. इसके बाद वन विभाग ने राज्य भर में 122 पशुचिकित्सकों को सूचित किया कि वे मानव-वन्यजीव संघर्ष समाधान के लिए सहायता प्रदान करें. 

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वन मानव संघर्ष न्यूनीकरण समिति का गठन किया है और डिवीजन स्तर पर ट्रेंक्विलाइजिंग गन्स, एनिडर्स, रेस्क्यू इक्विपमेंट, ड्रोन, कैमरा ट्रैप्स, हल्के खाके, सैटेलाइट रेडियो कॉलर्स, सोलर लाइट्स आदि दिए जा रहे हैं. वहीं 65 क्विक रिस्पॉन्स टीम्स को तैयार किया गया है और 548 गांवों से वालंटियर फोर्स तैयार की गई है.

उत्तराखंड में बाघों की संख्या में 314 परसेंट का इजाफा

वहीं, बाघों की संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ है, जो कि वन्यजीव प्रेमियों के लिए राहत भरी खबर है. रिपोर्ट में बताया गया है कि बाघों की संख्या 2006 में 178 से बढ़कर 2022 में 560 तक पहुंची है. पिछले 16 वर्षों में 314% की वृद्धि हुई है. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या 2006 में 137 से बढ़कर 2022 में 260 तक बढ़ी है, जो देश और दुनिया में सबसे अधिक है.

तेंदुओं की संख्या में हुई बढ़ोतरी, बंदरों की संख्या हुई कम

राज्यभर में तेंदुआ की संख्या का आंकलन 2008 में 2,335 से बढ़कर 2022 में 3,115 हो गया है. यह करीब 33.4% की वृद्धि है. हिम तेंदुआ की संख्या 2016 में 86 से बढ़कर 2022 में 124 तक पहुंची है, जिसमें 6 वर्षों में 44.2% की वृद्धि हुई. बंदरों की जनसंख्या 2015 में 1,46,423 से घटकर 2021 में 1,10,840 तक पहुंच गई है. 

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