
उत्तराखंड के चार धामों में से प्रमुख केदारनाथ मंदिर के कपाट 25 अप्रैल को खुल गए हैं. इसके साथ ही पहले दिन लगभग 18 हजार श्रद्धालुओं ने मंदिर में दर्शन किए. मगर इस अवसर के लिए विशेष तौर शामिल होने के लिए पहुंचे ज्योतिष पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को प्रोटोकॉल न होने का हवाला देते हुए मंदिर में दर्शन करने से रोक दिया गया.
इसको लेकर धर्मनगरी हरिद्वार के संतों में रोष है. वहीं, शंकराचार्य जयंती होने के बाद भी वहां स्थित शंकराचार्य समाधि स्थल की उपेक्षा किए जाने और साफ सफाई न करके सजावट तक न किए जाने से नाराजगी है. संतो ने इसके लिए तीखी निंदा की है और आंदोलन की चेतावनी भी दी है.
आपको बता दें कि 25 अप्रैल को केदारनाथ मंदिर के कपाट खोले गए. इस अवसर पर जहां मुख्य रावल भिमालिंग के साथ मंदिर समिति के पदाधिकारियों ओर पुजारी ने सबसे पहले मंदिर में प्रवेश किया.
शंकराचार्य ने समाधि स्थल पर बैठकर दिया धरना
वहीं, इस अवसर पर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को मंदिर समिति के सीईओ द्वारा यह कहते हुए प्रवेश से रोका गया कि उनका प्रोटोकॉल नही है. इसके बाद शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने शंकराचार्य के समाधि स्थल पर करीब एक घंटा धरना दिया था. मगर, समाधि स्थल पर सफाई तक नही की गई थी.
श्रीजयराम आश्रम के परमाध्यक्ष बोले- यह दुर्भाग्यपूर्ण है
हरिद्वार के श्रीजयराम आश्रम के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी का कहना है कि इससे ज्यादा दुर्भाग्य की बात और क्या हो सकती है. जो शंकर जी के अवतार हैं, जिनको हम भगवान शंकर का स्वरूप शंकराचार्य महाराज को मानते हैं, ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद महाराज वहां दर्शन के लिए रोक दिया गया.
इससे बड़ा दुर्भाग्य हमारी संस्कृति में और क्या हो सकता है. जो साक्षात भगवान का स्वरूप शंकर का स्वरूप विराजमान हैं, उनको दर्शन से वंचित रखना इस धर्म क्षेत्र में देवभूमि में शंकराचार्य जी का अपमान है. जब हम करोड़ों लोग वहां पर दर्शन करने जाते हैं, किसके दर्शन करने जाते हैं. भगवान शंकर के न, तो शंकर स्वरूप वहां बैठे हुए हैं, उनको वंचित रखने का तो कोई औचित्य नहीं है.
उन्होंने भगवान शंकराचार्य जी की समाधि पर एक घंटा बैठकर तपस्या की है. इस बात को लेकर कि मुझे दर्शन से वंचित क्यों किया गया. मगर, इस प्रदेश में इस धार्मिक प्रदेश में परंपराओं के साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिए. शंकराचार्य को प्रथम दर्शन करने का अधिकार है. जो हमारे मुख्य पुजारी हैं, उनको चाहिए था कि वह उनको अपने साथ ले जाते और शंकराचार्य महाराज जी को दर्शन कराते. इससे आज जितने भी लोग दर्शनार्थी गए हैं, उनको भी बड़ी प्रसन्नता होती थी कि शंकराचार्य महाराज दर्शन के लिए आए हैं.
भविष्य में ऐसा नहीं होना चाहिए
धार्मिक प्रदेश में ऐसा नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि शंकराचार्य महाराज का वहां समाधि स्थल बना हुआ है. जैसे भगवान शिव का दरबार सजाया गया है, वैसे ही शंकराचार्य महाराज जी के स्मारक का भी शृंगार होना चाहिए था. यह तो भावना पैदा करने की चीजें हैं. भविष्य में ऐसा नहीं होना चाहिए शंकराचार्य हमारे देश के हमारे धर्माचार्य के सर्वोच्च सत्ता हैं.
ऐसी क्रियाओं से खड़ा होगा आंदोलन - स्वामी ऋषिश्वरानंद
भारत साधु समाज के राष्ट्रीय प्रवक्ता स्वामी ऋषिश्वरानंद ने कहा कि मैं भारत साधु समाज के राष्ट्रीय प्रवक्ता होने के नाते यह कहना चाहता हूं कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य को केदारनाथ के दर्शन नहीं करने दिए गए. जब वह समाधि स्थल पर गए, तो वहां पर न सफाई की गई और न किसी तरह की उचित व्यवस्थाएं की गई.
यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य इस समय वर्तमान में चल रहा है कि पूज्य शंकराचार्य जी को भी प्रोटोकॉल दिखाते हुए दर्शन नहीं कराए गए. यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है. साधु समाज में इसको लेकर बहुत रोष है. यदि इसी तरीके से क्रियाएं चलती रहीं, तो निश्चित रूप से बहुत बड़ा आंदोलन खड़ा हो सकता है.