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दो-दो सीटों से हारे, अब मंदिरों से इंसाफ मांग रहे हैं हरीश रावत

10 महीने के  अंतराल के बाद ऐसा लग रहा है कि जैसे हरीश रावत का छुपा हुआ दर्द बाहर आ गया हो. इस बार वो अपने दर्द का इलाज़ ढूढ़ने के लिए जनता के बीच नहीं बल्कि जनार्दन की चौखट पर पहुंचे हैं.

पूर्व सीएम हरीश रावत पूर्व सीएम हरीश रावत
अजीत तिवारी
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  • 08 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 6:10 PM IST

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत मंदिर-मंदिर घूम रहे हैं. जनता की अदालत में हारने के बाद न्याय की उम्मीद में हरीश रावत भगवान के द्वार जाकर फरियाद कर रहे हैं.

करीब एक साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत को एक नहीं बल्कि दो-दो सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन, जिंदादिल हरीश रावत अगले ही दिन बाहर आए और लोगों से ऐसे मिले, मानो उन्हें अपनी करारी शिकस्त का अहसास ही ना हो.

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10 महीने के  अंतराल के बाद ऐसा लग रहा है कि जैसे उनका छुपा हुआ दर्द बाहर आ गया हो. इस बार वो अपने दर्द का इलाज़ ढूढ़ने के लिए जनता के बीच नहीं बल्कि जनार्दन की चौखट पर पहुंचे हैं.

'उम्मीद के मुताबिक नहीं मिला इंसाफ'

हरीश रावत के मुताबिक जिस इंसाफ की उम्मीद उन्हें जनता से थी वो इंसाफ उन्हें नहीं मिला, इसीलिए वो अपनी कमियों को तलाशने के लिए भगवान के दर पर माथा टेक रहे हैं. उन्हें पूरी उम्मीद है न्याय मिलेगा.

हरीश रावत अगर वाकई जनता के लिए कुछ कर पाते तो निश्चित रूप से उन्हें यूं ही हार का सामना नहीं करना पड़ता. भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करने का प्रण लेकर आने वाले हरीश रावत अगर पहले ही दिन से इस पर लगाम लगाते तो शायद देवभूमि में अपनी विजय पताका जरूर लहरा पाते.

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'जब तक जीतूंगा नहीं, जवान ही रहूंगा'

एक सवाल के जवाब में हरीश रावत ने कहा कि जनार्दन से उन्हें संकेत भी मिल रहे हैं और हार के क्या कारण रहे ये भी समझने का मौका मिल रहा है. लेकिन इशारों ही इशारों में उन्होंने भाजपा को आड़े हाथों लेते हुए ये साफ कर दिया कि वो ऐसे ही हार मानने वालों में से नहीं हैं.

उनका कहना है कि जब तक वो हार का बदला नहीं ले लेते वो जवान ही रहेंगे. इससे उन्होंने एक तरफ भाजपा को सीधा संदेश दिया है, तो वहीं दूसरी ओर अपनी ही पार्टी के अंदर उनका विरोध कर रहे नेताओं को भी इशारा कर दिया है कि अब भी उनमें दम बचा है.

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