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उत्तराखंड HC ने 13 साल की रेप पीड़िता को दी 25 हफ्ते की प्रेगनेंसी खत्म करने की इजाजत

न्यायालय ने 1971 के मैडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट का हवाला देते हुए गर्भपात के लिए दी गई समय सीमा पर भी गौर करते हुए यह निर्णय लिया. न्यायालय ने मैडिकल बोर्ड से ये भी कहा कि, किशोरी के पिता से लिखित में कंसेट ले लिए जाएं और उसमें न्यायालय में वर्चुअली दिए गए कंसेंट का भी जिक्र कर दिया जाए. मामले में अगली सुनवाई 9 दिसंबर को होनी तय हुई है.

उत्तराखंड हाई कोर्ट उत्तराखंड हाई कोर्ट
लीला सिंह बिष्ट
  • देहरादून,
  • 09 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 12:06 PM IST

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने एक नाबालिग किशोरी के गर्भपात के लिए मैडिकल बोर्ड टीम बनाने के निर्देशों के साथ अनुमति दे दी है. एकलपीठ ने मामले में अगली सुनवाई 9 दिसंबर को तय की है. सीनियर जज संजय कुमार मिश्रा की एकलपीठ ने 6 दिसंबर को एक आदेश पारित कर 13 वर्षीय गर्भवती किशोरी के गर्भपात की सशर्त अनुमति दे दी है. मामले में  उच्च न्यायालय में एक 13 वर्षीय किशोरी के पिता व अन्य ने याचिका दायर कर यौन उत्पीड़न से गर्भावस्था की स्थिति के समाधान के लिए देहरादून के सी.एम.ओ. और दून चिकित्सा अस्पताल को निर्देश देने की प्रार्थना की थी. 

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पीड़िता को दी गर्भपात की अनुमति

आपको बता दें कि न्यायालय के सामने पीड़िता के पिता और पीड़ित पुत्री वर्चुअली उपस्थित हुए. बताया गया कि किशोरी के 25 सप्ताह का गर्भ है. न्यायालय ने एक्सपर्ट डॉक्टरों का एक पैनल बनाकर गर्भपात की अनुमति दे दी है. खंडपीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऐसे कुछ मामलों में अनुमति दिए जाने के बाद इस याचिका में भी अनुमति दे दी. न्यायालय ने अधिकारियों को एक मैडिकल बोर्ड का गठन कर संवेदनशीलता के साथ कार्य को करने को कहा है. न्यायालय ने देहरादून अस्पताल की प्रमुख, डॉक्टर चित्रा जोशी से किसी क्रिटिकल स्थिति में अपने विवेक से काम लेने को भी कहा है. 

'लिखित में कंसेट दें किशोरी के पिता'

न्यायालय ने 1971 के मैडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट का हवाला देते हुए गर्भपात के लिए दी गई समय सीमा पर भी गौर करते हुए यह निर्णय लिया. न्यायालय ने मैडिकल बोर्ड से ये भी कहा कि, किशोरी के पिता से लिखित में कंसेट ले लिए जाएं और उसमें न्यायालय में वर्चुअली दिए गए कंसेंट का भी जिक्र कर दिया जाए. मामले में अगली सुनवाई 9 दिसंबर को होनी तय हुई है.

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कोर्ट ने दी थी 8 माह की प्रेग्नेंसी के गर्भपात की अनुमति

गौरतलब है कि हाल में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि गर्भपात के मामलों में अंतिम निर्णय में महिला की जन्म देने की इच्छा और अजन्मे बच्चे के गरिमापूर्ण जीवन की संभावना को मान्यता दी जानी चाहिए. एक 26 वर्षीय विवाहित महिला को 33 सप्ताह (लगभग 8 माह) की प्रेग्नेंसी के गर्भपात की अनुमति को लेकर जारी सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये कहा. इस मामले में महिला ने भ्रूण में मस्तिष्क संबंधी असामान्यताओं के चलते अबॉर्शन की मांग की थी. न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि एक गर्भवती महिला के अबॉर्शन का अधिकार दुनिया भर में बहस का विषय रहा है. भारत अपने कानून में एक महिला की पसंद को मान्यता देता है.

 

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