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'आर्यन खान को माफीनामा से लेकर कश्मीर में तैनाती तक...' IPS अफसर अभिनव ने बेबाकी से रखी अपनी बात

इंडिया टुडे 'स्टेट ऑफ द स्टेट: उत्तराखंड फर्स्ट' कार्यक्रम में आईपीएस अधिकारी अभिनव कुमार ने शिरकत की. उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि अगर आपने शिद्दत और लगन के साथ पुलिसिंग की है तो वहां पुलिसिंग करके समाज के बारे में देखने और समझने को मिलता है, उसका अन्य एरिया में भी सदुपयोग कर सकते हैं.

आईपीएस अभिनव कुमार. आईपीएस अभिनव कुमार.
aajtak.in
  • देहरादून,
  • 25 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 6:06 PM IST

इंडिया टुडे/आज तक के कार्यक्रम 'INDIA TODAY STATE OF THE STATE: UTTARAKHAND FIRST'में खुफिया और सुरक्षा विभाग के ADG अभिनव कुमार ने शिरकत की. इस दौरान उन्होंने अपनी जर्नी के बारे में बताया और एक्टर शाहरुख खान के बेटे आर्यन केस में खुद के माफीनामा लिखने पर भी बात की. अभिनव ने कहा, इस केस में मुझे लगता है कि कानून को ध्यान में नहीं रखा गया है. एनडीपीसी एक्ट का एक प्रोसीजर है. लेकिन सर्च, सीजर को दरकिनार कर कार्रवाई की गई. भले वो टेक्निकली एडल्ट था. लेकिन जिस तरह से उसका नाम मीडिया में उछाला गया. मैंने एक बेटे के पिता और पुलिस अफसर के तौर पर माफीनामा लिखा था. 

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उन्होंने कहा, ऐसे मामले में हमें अपना एक व्यू रखना चाहिए. अगर कोई हाई प्रोफाइल केस में अरेस्ट हो रहा है तो उसको हम हाई प्रोफाइल बाप का बेटे होने की अलग से सजा दें? अगर आप वाकई में बराबरी की बात कर रहे हैं तो ऐसे कितने मामले होंगे, जिनमें आप एनडीपीएस केस के हाई प्रोफाइल परिवार से जुड़े आरोपियों के नाम जानते होंगे. कितने की फोटो सामने आई होगी. जबकि वो केस इससे भी ज्यादा गंभीर होंगे. ये थोड़ा सा ठीक करने की जरूरत है. जब मैंने लिखा था, तब बहुत सारी चीजें पब्लिक में आ गई थीं.

'अभिनव ने आर्यन को लेकर लिखा था माफीनामा'

बता दें कि बॉलीवुड एक्टर शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को पिछले साल ड्रग्‍स मामले में एनसीबी ने आरोपी बनाया था. हालांकि बाद में आर्यन को क्‍लीनचिट दे दी गई. आर्यन को करीब 25 दिन जेल में बिताने पड़े थे. उस घटनाक्रम से आर्यन खान और उनके परिवार को हुई परेशानी को लेकर उत्तराखंड के आईपीएस अधिकारी अभिनव कुमार ने माफीनामा लिखा था. अभिनव ने कहा था कि आपको (आर्यन) और आपके परिवार को हुए आघात के लिए मुझे खेद है. हमें नशीली दवाओं के कानूनों में व्यापक बदलाव की जरूरत है. 

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'यूपी की तुलना में आगे निकल गया उत्तराखंड'

शुक्रवार को आजतक के कार्यक्रम में अभिनव ने आगे कहा, अगर 23 साल को देखें तो यूपी की तुलना में उत्तराखंड सोशल और इकोनॉमिक फील्ड में काफी आगे निकल चुका है. उन्होंने राज्य की कानून व्यवस्था और सतर्कता को लेकर कहा, उत्तराखंड में सवा करोड़ की आबादी है. यहां 5 करोड़ टूरिस्ट आते हैं. मानसून से लेकर रोड कंडीशन को ध्यान में रखकर विभाग काम करता है.

'डीएनए बदलने में वक्त लगता है'

अभिनव ने कहा, मुझे लगता है कि अगर आपने शिद्दत और लगन के साथ पुलिसिंग की है तो वहां पुलिसिंग करके समाज के बारे में देखने और समझने को मिलता है, उसका अन्य एरिया में भी सदुपयोग कर सकते हैं. पुलिस पर अक्सर आरोपों को लेकर अभिनव ने कहा, डीएनए में बदलने में वक्त लगता है. पुलिस में काफी हद तक बदलाव आया है. देश के लोगों में जागरूकता आई है.

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'पहली तैनाती देहरादून में मिली'

दबंग अफसर बनने के सवाल पर अभिनव ने कहा, नौकरी ने हमें तराश दिया है. उन्होंने अपनी जर्नी को लेकर कहा, यूपी के बरेली से 1984 में उत्तराखंड आ गया था. पहले स्थानीय स्कूल में पढ़ाई की. फिर यहां दून के स्कूल में चयन हो गया. 1990 तक दून में रहा. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में जाकर पढ़ाई की. 19 साल में ग्रेजुएशन पूरी कर ली थी. उसके बाद पुलिस की नौकरी में आया और पहली तैनाती देहरादून में मिली. तब उत्तराखंड राज्य नहीं था. 

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'पौढ़ी गढ़वाल में काम करने का मिला मौका'

उन्होंने कहा, ये नए राज्य से एक-डेढ़ साल पहले की बात है. उस समय यूपी काफी उथल-पुथल से गुजर रहा था. उत्तराखंड नया राज्य बन रहा था. मुझे लगा कि नई परिकल्पना के साथ कुछ करने का मौका मिलेगा. शायद यूपी की तरह यहां उस तरीके से राजनीतिक डिवीजन नहीं होंगे. उत्तराखंड में पुलिस अधीक्षक की नौकरी के सवाल पर अभिनव ने कहा, मैंने पौड़ी गढ़वाल जिले में काम किया. ये जिला हिल को लेकर सबसे बड़ा हब है. सबसे महत्वपूर्ण जिला है. राजनीति को लेकर नॉर्थ सेंटर रहा. वहां काम करने का बहुत मौका. 

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'गुड पुलिसिंग का योगदार हरिद्वार में सीखा'

उन्होंने कहा, बाद में हरिद्वार में काम करने का मौका मिला. यहां कल्चर और भौगोलिक क्षेत्र पूरे राज्य से अलग है. पूरे राज्य की तुलना में क्राइम काफी था. हरिद्वार में उस समय कांवड़ में 50-60 लाख आते थे. अब करोड़ों की संख्या में लोग आते हैं. मैं तीन साल वहां रहा. सरकार लॉ एंड ऑर्डर को लेकर सख्त निर्देश जारी करती थी. गुड पुलिसिंग का योगदान वहां रहकर समझ में आया.

'आईटीबीपी में काम करने की इच्छा रही'

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डेपुटेशन पर कश्मीर जाने के सवाल पर कहा, पहले भी मेरी आईटीबीपी में काम करने की इच्छा रही है. क्योंकि जब उत्तराखंड पुलिस में था तो यहां पर आईटीबीपी का ज्यादा डिप्लॉयमेंट है. इसके अलावा, डिजास्टर मैनेजमेंट और चारधाम यात्रा मैनेजमेंट में आईटीबीपी के साथ उत्तराखंड पुलिस बहुत नजदीकी तौर पर काम करती है. इच्छा थी कि आईटीबीपी में रहकर जवानों के साथ काम किया जाए. जब मेरा आईटीबीपी में इंडक्शन हुआ तो पहली तैनाती लद्दाख में मिली. मेरे पास श्रीनगर का भी चार्ज था. 

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'बहुत टफ कंडीशन में काम करते हैं जवान'

उन्होंने कहा, उस समय 2016 बुरहान वानी घटना हुई थी. उस घटना से पूरी वेली दो तीन महीने डिस्टर्ब रही थी. कैजुअल्टी बहुत ज्यादा हुईं. पैलेट गन को लेकर विदेशों तक में चर्चा हुई. मुझे लगा कि यहां काम करने का मौका है. मेरा मानना है कि जवान बहुत टफ कंडीशन में काम करते हैं. मुझे नहीं लगता कि हम अपने जवानों को उस जज्बे के साथ लीड कर पाएंगे और उन प्रॉब्लम को सॉल्व कर पाएंगे. मुझे मौका मिला तो फिर कश्मीर जाऊंगा. 

'कश्मीर को लेकर लोगों ने बना रखा था नैरेटिव'

जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने पर कहा, अगर कश्मीर का पुराना इतिहास उठाकर देखें तो एक तिहाई की रचना कश्मीर में हुई थी. जब मेरी श्रीनगर में तैनाती हुई थी तो एक स्थानीय पत्रकार मिलने आए थे. उन्होंने कहा था कि कश्मीर तो हमेशा से हिंदुस्तान से मुख्तलिफ रहा है. इस पर मैंने कहा कि जिस प्रदेश की राजधानी का नाम ही श्रीनगर हो. उसका मायने पता है? उसका मतलब ही देवी का नगर है. और आप कह रहे हैं कि ये इंडिया का हिस्सा नहीं है. मुझे लगता है कि आपकी और मेरी जानकारी में भिन्नता है. आप कश्मीर को लेकर नैरेटिव देख सकते हैं. 

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पढ़ें इंडिया टुडे 'स्टेट ऑफ द स्टेट: उत्तराखंड फर्स्ट' का पूरा कवरेज 

'केरल भी भारत का पार्ट, क्या खत्म हुई पहचान?'

अभिनव ने कहा, लोगों ने एक धारणा बना रखी थी कि ये तो हमेशा से अलग था. हमेशा से ही संस्कृति और सभ्यता अलग रही है. अगर कश्मीर हिंदुस्तान में मिल गया तो वहां की पहचान खत्म हो जाएगी. इस पर मैं पूछता था कि 1947 से केरल, भारत का पार्ट है. क्या वहां की पहचान खत्म हो गई. ये सब एक एजेंडा था और उस एजेंडे की आधारशिला अनुच्छेद 370 थी. इसे हटाकर सरकार ने अच्छा निर्णय लिया है. देर आए, दुरुस्त आए. हमने कश्मीर में अनुच्छेद 370 लाकर 75 साल का मौका दिया. लेकिन इंट्रीग्रेट नहीं कर पाए. अब बिना अनुच्छेद 370 के 10-15 साल देकर देख लेते हैं. मुझे उम्मीद है कि परिणाम बेहतर होंगे.

 

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