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मुआवजा कितना, पुनर्वास कहां... धंसते जोशीमठ को क्यों नहीं छोड़ रहे लोग? सता रहे ये सवाल

जोशीमठ में इस समय जो कुछ भी हो रहा है, उसके पीछे का अपना एक विज्ञान है. एक्सपर्ट्स की टीम लगी हुई है, कारण पता कर रही है, समाधान खोज रही है. लेकिन लोगों को इस सबसे मतलब नहीं है, उन्हें तो सिर्फ डर है. डर उस विस्थापन का है, डर कि क्या सही मुआवजा मिलेगा या नहीं, डर उस अनिश्चित भविष्य का.

जोशीमठ संकट (पीटीआई) जोशीमठ संकट (पीटीआई)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 11 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 12:23 AM IST

जोशीमठ धंस रहा है, आशियाने टूट रहे हैं, सपने उजड़ रहे हैं, लेकिन फिर भी लोग डटे हुए हैं, अडिग हैं, अपने घर खाली करने को तैयार नहीं हैं. कई दशकों में एक बार ऐसी अप्रत्याशित स्थिति पैदी होती है जब प्रकृति अपना क्रूर रूप दिखाती है, प्रशासन की लापरवाही सिर चढ़कर बोलती है और हर्जाना उस आम जनता को भुगतना पड़ता है जिसकी सिर्फ इतनी गलती होती है कि उसने अपने प्रतिनिधि पर भरोसा जताया, विश्वास किया कि सरकार उसका ध्यान रखेगी. अब जब वो भ्रम टूट गया है तो असलियत कुछ ऐसी है- जोशीमठ के घरों में बड़ी दरारें हैं, उन दरारों से पानी की धारा बह रही है और सरकार बुलडोजर लेकर तैयार खड़ी है. 

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जोशीमठ में इस समय जो कुछ भी हो रहा है, उसके पीछे का अपना एक विज्ञान है. एक्सपर्ट्स की टीम लगी हुई है, कारण पता कर रही है, समाधान खोज रही है. लेकिन लोगों को इस सबसे मतलब नहीं हैं, उन्हें तो सिर्फ डर है, डर उस विस्थापन का, डर कि क्या सही मुआवजा मिलेगा या नहीं, डर उस अनिश्चित भविष्य का. जोशीमठ के एक प्रभावित नागरिक कहते हैं कि कल यहां तोड़फोड़ के बाद कहा जाएगा कि क्यों तोड़ने दिया, दोगलाबाजी कर रहे हैं, मौसम खराब हो रहा है तो खतरा, जनता मर जाएगी तो नेता कहां से बचेंगे. चुनाव में हाथ जोड़कर चलते हैं तो हवा में उड़ रहे हैं. जब यहां आना था, तब बाहर-बाहर घूम रहे हैं. प्रभावित लोग अंदर रो रहे हैं. अब आम जनता पूछ रही है कि उसका क्या कसूर है. इस गुस्से के साथ एक मांग भी है, जो जायज है, आगे जिंदगी जीने के लिए जरूरी है.

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आशियाने खोने का डर, मुआवजे पर संशय

इस बारे में एक स्थानीय निवासी ने कहा कि सरकार कहती है कि मार्केट रेट पर तय होगा, पूछिए मार्केट रेट क्या होगा, तो सचिव कहते हैं कि बता नहीं सकते. मांग पूरी करो तो हम क्यों बैठे हैं, हमारा पूरा पैसा दो, तभी हम उठेंगे. तोड़ने के लिए तैयार हैं, मुआवजा दे दें, इसीलिए धरने पर बैठे हैं. अब ये मुआवजा वो डर है जिस वजह से लोग अपनी जान पर भी खेलने को तैयार हो गए हैं. वे नहीं चाहते कि उन्हें उनके सपनों के आशियाने का सही दाम भी ना मिले. अब वो मिलेगा की नहीं, कह नहीं सकते. लेकिन आश्वासन की लड़ी जरूर लग चुकी है. सीएम से लेकर मंत्री तक, सभी कह रहे हैं कि उचित मुआवजा दिया जाएगा. लेकिन दिया नहीं गया है. ये नेताओं का फ्यूचर टेंस वाला रवैया ही आम जनता को अखर रहा है.

सीएम धामी ने क्या बोला?

सीएम पुष्कर सिंह धामी रात में जोशीमठ में रुके हैं. उन्होंने यहां राहत कैंपों का दौरा भी किया है. यहां सीएम ने कहा है कि अभी तक कंपेनसेशन का अनाउंसमेंट नहीं हुआ है आप उनको कैसे एश्योर करना चाहेंगे सरकार साथ है. राज्य की सरकार भी और मोदी सरकार भी. हमने अंतरिम रूप से मुआवजा देने की बात की है. जल्दी देंगे. अभी पुनर्वास के लिए जो भी सबसे अच्छा रास्ता हो सकता है. सबको सहायता देंगे.

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वहीं, लोगों का कहना था कि अब देंगे, करेंगे, होगा....सरकार आपदा में फंसी जनता से क्यों फ्यूटर टेंस यानी भविष्य काल के रूप में बात करती है. क्यों नहीं सरकार कह पाती कि मुआवजा देना शुरू कर दिया. पुनर्वास कर रहे हैं. क्यों नहीं वर्तमान काल की बात की जाती है ? नतीजा ये है कि जहां कभी भी घरों के गिर जाने का डर चारों तरफ फैला हुआ है.  

अब इस डर का सार सिर्फ एक मुआवजा नहीं है, बल्कि तो पूरी एक क्रोनोलॉजी है जिससे जमीन पर माहौल खौफजदा वाला बन गया है. पहली सबसे बड़ी अब समस्या है जोशीमठ में खराब होता मौसम, जिससे जुड़ी दूसरी समस्या ये है कि अगर बारिश-बर्फबारी हुई तो नमी बढ़ेगी, दरार चौड़ी होगी. तब तीसरी समस्या जन्म लेगी क्योंकि नमी से दरार और बढ़ी तो टूटते घर-होटल जल्दी गिर सकते हैं. चौथी समस्या जो अब सबसे बड़ी हो रही अगर ये दो हिल चुके होटल जल्दी नहीं गिराए गए तो इनका गिरता मलबा और दूसरे घरों को गिरा देगा. यानी जोशीमठ में बड़ी तबाही दिखेगी.

वो सवाल जिनके जवाब नहीं

अब इन्हीं सब तर्कों के आधार पर प्रशासन बुलडोजर लेकर तैयार खड़ा है. वो तो बुधवार को भी दो होटलों पर बुलडोजर चलाने वाला था. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. क्या होटल वालों की गलती थी- नहीं, क्या होटल वालों का कोई मोह था- नहीं. असल में उत्तराखंड की सरकार ही अभी कई सवालों के जवाब नहीं ढूंढ़ पाई है. ये वो जवाब हैं जो जनता में एक विश्वास पैदा करेंगे, उन्हें आश्वासन देंगे कि उनका भविष्य सुरक्षित है. सवाल नंबर 1- होटल को गिराना जरूरी है तो किस तरह मुआवजा दिया जाएगा ? सवाल नंबर 2-अगर घरों को गिराना जरूरी है तो किस तरह घर का मुआवजा देंगे? सवाल नंबर 3- अगर घरों से हटना नागरिकों का जरूरी तो किस तरह आगे पुनर्वास करेंगे?

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सरकार के पास इन सवालों का कोई स्पष्ट जवाब नहीं है. उत्तराखंड सरकार में सचिव मीनाक्षी सुंदरम कहती हैं कि जो डेढ़ लाख की राहत है वो वो अंतरिम है, ये अंतिम नहीं है, फौरी तौर पर जरूरत पूरी करने के लिए, जैसे दूसरी जगह रुकना पड़ रहा है, घर रिस्क में है तो टेंपररी शिफ्टिंग के लिए जो तुरंत पैसा चाहिए उसके लिए दिए जा रहे हैं. फाइनल रिलीफ पैकेज वरुणावत लैंडस्लाइड में दिया था, यहां भी दिया जाएगा. अब वो फाइनल पैकेज कितना होगा, इसी बात का लोगों को डर है, यहीं लोगों का सवाल है और यहीं उनकी वर्तमान सरकार से उम्मीद है.

समाधान क्या है?

अब क्या इस उजड़ते जोशीमठ को बचाया जा सकता है, क्या फिर लोग अपने आशियानों में लौट सकते हैं? इस समय अभी जोशीमठ की आपदा की जांच के लिए आईआईटी रुड़की की एक कमेटी बनी हुई है. जिसके प्रमुख जांचकर्ता और आईआईटी रुड़की के निदेशक ने आजतक से बातचीत में कहा है कि एक्चुअली समाधान रिसर्च जरूरी है, जब भी कोई बिल्डिंग टूटी होती है, तो आगे पीछे सपोर्ट दें तो समाधन निकलता है, अंदर से पानी निकल रहा है स्रोत क्या है, एरिया पता चल जाएगा, डैमेज जो को रोक सकते हैं. सॉल्य़ूशन जरूर होगा.

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