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'यहीं बचपन बीता, अब घर छोड़ना दर्दनाक...', जोशीमठ के दरार वाले मकान छोड़ने को राजी नहीं कई परिवार 

जोशीमठ का संकट गहराता जा रहा है. जमीन धंसने से जिन घरों में दरारें आ गई हैं, उनकी तीन स्तरों पर मार्किंग होने लगी है. जो इमारतें अतिसंवेदनशील उन्हें मंगलवार से ढहाने की शुरुआत हो गई है. सबसे पहले जोशीमठ के दो होटलों होटल मलारी इन और होटल माउंट व्यू को गिराया जा रहा है. हालांकि बहुत से ऐसे परिवार हैं, जो घर छोड़ने को तैयार नहीं हैं.

जोशीमठ संकट गहराता जा रहा जोशीमठ संकट गहराता जा रहा
कमल नयन सिलोड़ी/अंकित शर्मा/आशुतोष मिश्रा
  • देहरादून,
  • 10 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 2:41 PM IST

जोशीमठ में इमारतों में दरारें आने की घटनाएं लगातार बढ़ती ही जा रही है. यहां सोमवार को 68 और घरों में दरारें देखी गई थी. जमीन धंसने से अब यहां कुल 678 इमारतें प्रभावित हो चुकी हैं. वहीं अब तक 82 परिवारों को कस्बे में सुरक्षित पर पहुंचा दिया गया है.

वहीं राज्य के मुख्य सचिव एस एस संधू का कहना है कि इस समय एक-एक मिनट अहम है. लोगों को घरों से निकालने के लिए अफसरों को काम में तेजी लाने के लिए कहा गया है लेकिन अभी भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो अपना घर, होटल या अन्य इमारत खाली करने को तैयार नहीं हैं. लोग अपने घरों से मोह नहीं खत्म कर पा रहे हैं. वे उन्हें छोड़कर नहीं जाना चाह रहे. जो लोग अस्थायी जगहों में पहुंच गए हैं, वे भी अपने घरों को देखने पहुंच रहे हैं. 

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जगह खाली करने को तैयार नहीं लोग, छलक रहा दर्द

- जोशीमठ के जमीन धंसने से होटल मलारी इन और होटल माउंट व्यू में ऐसी दरारें आ गई हैं कि आज उन्हें ढहा जाएगा, लेकिन होटल मलारी इन के मालिक अपना होटल छोड़ने को तैयार नहीं हैं. उनका कहना है कि हमें अखबार से पता चला कि उनका होटल गिराया जाएगा. उन्होंने कहा कि उन्हें प्रशासन ने ध्वस्तीकरण का नोटिस नहीं भेजा है.

उनका कहना है कि उन्हें जगह छोड़ने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन प्रशासन पहले उन्हें नोटिस दे और उनकी प्रॉपटी का मूल्याकन करे. उन्होंने चेतावनी भी दी कि अगर ऐसा नहीं होता है तो पहले उनके ऊपर बुलडोलर चलाना होगा. वो अपनी जान दे देंगे लेकिन जीते जी जगह खाली नहीं करेंगे.

- रेखा का घर भी रेड जोन में है. वह हमेशा के लिए अपना घर छोड़कर जा रही हैं. उनका घर भी ढहा दिया जाएगा, इसलिए उन्होंने अपने घर की अंतिम झलियां अपने मोबाइल में रिकॉर्ड की. वह रोती रहीं और वीडियो रिकॉर्ड करती रहीं. रेखा कहती हैं कि उनका पूरा बचपन इस घर में भाई-बहनों के साथ बीता. अब इस घर को छोड़कर जाना एक दर्दनाक पल है.

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- एक बुजुर्ग दंपति अपना तीन मंजिला घर छोड़ने को तैयार नहीं हैं. उनके बच्चे भी बाहर हैं. उनका कहना है कि ये पुश्तैनी मकान छोड़कर हम जाएं तो हम कहां जाएं. मकान में सामान है, हमें कोई लेबर नहीं दिया गया है, कैसे जाएं. ये सामान एक कमरे में कैसे आएगा.

- मारवाड़ी वार्ड की बुजुर्ग महिला परमेश्वरी देवी ने कहा कि उन्होंने खुद का घर बनाने के लिए अपनी पूरी जमापूंजी लगा दी. अब उनसे इसे छोड़कर एक राहत शिविर में जाने को कहा जा रहा है. उन्होंने कहा,‘मैं कहीं और जाने के बजाय उसी घर में मर जाना पसंद करुंगी जो मेरा है. अपने घर जैसा सुकून मुझे और कहां मिलेगा.’ 

- सिंगधार की रहने वाली रिषी देवी का घर धीरे-धीरे धंसता जा रहा है. उन्हें अपने परिवार के साथ एक सुरक्षित जगह पर जाना पड़ा, लेकिन वह रोजाना अपने घर लौटती हैं जबकि उनके परिवार वाले उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं. देवी वहां बैठकर अपने घर की दीवारों पर पड़ी दरारों को निहारती रहती हैं.

200 से ज्यादा घरों में लगाए गए रेड मार्क

जानकारी के मुताबिक जिला प्रशासन ने 200 से ज्यादा असुरक्षित घरों पर लाल निशान लगा दिया है. उसने इन घरों में रहने वाले लोगों को या तो अस्थायी राहत केंद्रों या किराए के घर में जाने के लिए कहा है. इसके लिए हर परिवार को अगले छह महीने तक राज्य सरकार से 4000 रुपये मासिक सहायता मिलेगी.

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जोशीमठ में 16 जगहों पर प्रभावित लोगों के लिए अस्थायी राहत केंद्र बनाए गए हैं. इनके अलावा, जोशीमठ में 19 होटलों, अतिथि गृहों और स्कूल भवनों, शहर से बाहर पीपलकोटी में 20 भवनों को प्रभावित लोगों के ठहरने के लिए चिह्नित किया गया है.

विशेषज्ञ समिति ने दिए अहम सुझाव

- भू-तकनीकी जांच की जानी चाहिए, जरूरत पड़ने पर नींव की रेट्रोफिटिंग का भी अध्ययन किया जाए. 

- क्षेत्र के उप-स्तरों को समझने के लिए जियोफिजिकल जांच की जानी चाहिए. 

- क्षेत्र में भूकंपीय निगरानी होनी चाहिए. 

- हाइड्रोलॉजिकल जांच होनी चाहिए, ताकि जल निकासी, झरनों, लोकल वॉटर टेबल स्रोत की पहचान हो सके. 

- भू-धंसाव की रियल टाइम निगरानी होनी चाहिए. 

- घरों को पहुंची क्षति का आकलन होना चाहिए, रेट्रोफिटिंग होनी चाहिए.

केंद्रीय एजेंसियां कर रहीं  जांच

अब जोशीमठ की मौजूदा स्थिति पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM), जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी और सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञों की टीम सर्वे कर रही हैं. उन्हें जल्द से जल्द अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है.

इसलिए धंस रही जोशीमठ की जमीन

एचएनबी गढ़वाल यूनिवर्सिटी में जियोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड प्रोफेसर वाईपी सुंदरियाल ने न्यूज एजेंसी से कहा कि सरकार ने 2013 की केदारनाथ बाढ़ और 2021 की ऋषि गंगा बाढ़ से सबक नहीं लिया है. उत्तराखंड के ज्यादातर इलाके भूकंप प्रभावित हैं.

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उन्होंने 'सेंट्रल हिमालय' बुक के हवाले से बताया कि जोशीमठ लैंडस्लाइड से निकले मलबे पर बसा है. 1971 में भी कुछ घरों में दरारें आई थीं. उस समय भी यही कहा गया था कि ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने की जरूरत है और जोशीमठ में ज्यादा विकास कार्य नहीं करना चाहिए, पर इन सबका पालन नहीं किया गया.

सुंदरियाल ने कहा कि जोशीमठ का मौजूदा संकट इंसानों ने ही खड़ा किया है. आबादी कई गुना बढ़ गई है, जिस वजह से पर्यटकों की संख्या भी बढ़ रही है. इसके अलावा बेकाबू तरीके से इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के लिए सुरंग बनाई जा रही है और इसके लिए ब्लास्ट किए जा रहे हैं, जिस कारण मलबा निकल रहा है और घरों में दरारें पड़ रहीं हैं.

इसके अलावा 2019 और 2022 में भी IPCC की रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने कहा था कि हिमालयी इलाका आपदाओं के लिए बेहद संवेदनशील है. 

1976 में मिश्रा आयोग ने दी थी चेतावनी

मिश्रा आयोग ने 1976 में अपनी एक रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी, जिसमें कहा गया था कि जोशीमठ की जड़ से छेड़खानी करना खतरनाक साबित होगा, क्योंकि ये मोरेन पर बसा शहर है. मोरेन यानी ग्लेशियर पिघल जाने के बाद जो मलबा बचता है.

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गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में बने इस आयोग ने कहा था कि जोशीमठ के नीचे की जड़ से जुड़ी चट्टानों को बिल्कुल न छेड़ा जाए और विकास कार्य भी एक सीमित दायरे में किए जाएं.

आयोग का कहना था कि जोशीमठ रेतीली चट्टान पर स्थित है, इसलिए इसकी तलहटी में कोई विकास कार्य न किया जाए. खनन तो बिल्कुल भी नहीं. इसमें सुझाव दिया गया था कि अलकनंदा नदी के किनारे एक दीवार बनाई जाए और यहां के नालों को सुरक्षित किया जाए. लेकिन सरकार ने इस पूरी रिपोर्ट को दरकिनार कर दिया.

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