
भारत की तीनों सेनाओं ने देश के युद्धों को जीतने के साथ-साथ सदैव ही प्राकृतिक आपदाओं, जैसे कि भूकंप, बाढ़ और सुनामी जैसी चुनौतियों के दौरान अपने जीवन की परवाह नहीं करते हुए राहत कार्यों में अपना योगदान दिया और पीड़ितों को मौत के मुंह से निकाल कर जान-माल की रक्षा की. जोशीमठ पर आपदा के गहराते संकट के बीच भारतीय सेना के जवान आपदा से निपटने और सरहद पर निगरानी की दोहरी चुनौती से निपटने की तैयारी में जुट गई है.
जोशीमठ में भू-धंसाव से 800 से ज्यादा बिल्डिंग प्रभावित हुईं. जिनमें दरारें मिली है. इसमें से 148 भवन ऐसे हैं जिनको डेंजर जोन के अंतर्गत रखा गया है. सुरक्षा की नजर से जिला प्रशासन द्वारा अबतक 223 परिवारों के 754 व्यक्तियों को विभिन्न सुरक्षित स्थानों पर अस्थायी रूप से विस्थापित किया गया है. ऐसे में जोशीमठ के पास औली में राहत और बचाव ऑपरेशन की तैयारी शुरू कर दी है. इसके लिए कंट्रोल रूम से लेकर सारे संसाधन तैयार रखे गए हैं.
आपदा प्रबंधन अथवा राहत और बचाव कार्य में सेना महत्वपूर्ण योगदान देती है. प्राकृतिक हो या कृत्रिम आपदा, सेना हर तरह की परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार रहती है. सेना ऐसे महत्वपूर्ण कार्यों में कैसे सफलतापूर्वक परिणाम प्राप्त करती है, इसके जवाब में आपको बता दें कि आपदा से निपटने के लिए सेना एक कंट्रोल रूम स्थापित करती है जो क्षेत्र की पल पल की खबर रखता है और राहत टीमों को प्रभावित क्षेत्र की सूचना देता है.
सेना की आपदा प्रबंधन की संरचना में मुख्यत: चार दल होते हैं -
1. QRT (Quick Response Team) जो प्रभावित क्षेत्र कि सटीक जानकारी हासिल करके कंट्रोल स्टेशन को सूचित करती है.
2. Rescue Team, Picketing Party, Search and Rescue Party (जो घायलों को बाहर निकालती है).
3. Specialized Team जो Mountaineering में निपुण होती है.
4. Medical Team जो मौके पर ही तुरंत उपचार प्रदान करती है.
अगर किसी घायल को किसी ऊंची चट्टान या बिल्डिंग से स्ट्रेचर के सहारे उतारना हो तो उसे कैसे सुरक्षित उतारा जाएगा? सवाल के जवाब में- इसके लिए पहले ख़ास तैयारी की जाती है. घायल को सावधानी के साथ स्ट्रेचर पर मजबूती से बांधा जाता है. सिर पर हेलमेट, आंखों में चश्मा और दूसरे सुरक्षा उपकरण पहनाये जाते हैं. उसके बाद रस्सी के सहारे ऊंची चट्टान से घायल को सावधानी के साथ नीचे उतारना शुरू किया जाता है. हालांकि ऐसे में दुर्घटना के हालात भी बने रहते हैं.
रेस्क्यू टीम में शामिल Picketing Party उस क्षेत्र की घेराबंदी करके लोगों को उस तरफ जाने से रोकती है. वहीं सर्च टीम, रेस्क्यू डॉग्स की मदद से अन्य तरीकों से फंसे हुए लोगों का पता लगाती है. इसके बाद स्ट्रेचर बियरर टीम (Stretcher Bearer Team) घायलों को तुरंत बाहर निकालती है. मेडिकल टीम घायलों को तुरंत उपचार देकर एम्बुलेंस के जरिए नज़दीक के अस्पताल पहुंचाती है.
ताकि केदारनाथ जैसे ना हालत हों
मई 2013 में केदारनाथ आपदा के वक्त, समय रहते राहत और बचाव नहीं होने की वजह से सैकड़ों लोगों की जान चली गई. ऐसे में औली के मुश्किल पहाड़ों में सेना के जवान आने वाले दिनों में किसी भी प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन की बारीकियों पर हाथ आजमा रहे हैं. कंट्रोल रूम में सूचना प्राप्त होने पर तुरंत ही QRT को घटना स्थल पर रवाना किया जाता है जो सटीक स्थल व सूचना हासिल करके कंट्रोल रूम को बताती है. रेस्क्यू टीम को जानकारी मिलते ही घटना स्थल पर रवाना किया जाता है.