Advertisement

उत्तराखंड की करीब एक तिहाई तहसीलों पर बर्फीली बाढ़ का जोखिम

उत्तराखंड में पाई जाने वाली एक तिहाई झीलें ‘मोरीन’(झील का प्रकार) कैटेगरी की हैं. ऐसी झीलें बहुत कमजोर होती हैं और थोड़े से झटकों या दबाव से चाहे वो भूस्खलन से हो या भूकंप या फिर भारी बर्फबारी या अवलांच से टूटने का खतरा ज्यादा होता है.

पहाड़ी राज्यों में उत्तराखंड से जनसंख्या घनत्व सबसे ज्यादा (DIU-ITGD) पहाड़ी राज्यों में उत्तराखंड से जनसंख्या घनत्व सबसे ज्यादा (DIU-ITGD)
दीपू राय
  • नई दिल्ली,
  • 13 फरवरी 2021,
  • अपडेटेड 6:03 PM IST
  • वैज्ञानिकों ने 500 हिमखंडों के पास बनी झीलों को खतरनाक माना
  • उत्तराखंड में चमोली जैसी क्षेत्रों में बाढ़ की त्रासदी का खतरा ज्यादा
  • बर्फीली बाढ़ राज्य के 78 में से 26 तहसीलों को चपेट में ले सकता है

उत्तराखंड में करीब एक तिहाई तहसीलें ऐसी हैं, जिन्हें वैज्ञानिकों ने झीलों के फटने से आने वाली बर्फीली बाढ़ के लिहाज से संवेदनशील माना है. एक ताजा अध्ययन के मुताबिक करीब 500 हिमखंडों से बनी ऐसी झीलें हैं जिनके टूटने की आशंका ज्यादा है. ज्यादातर ये इलाके उत्तराखंड के ऊपरी हिस्से में है, जहां हाल के चमोली जिले जैसी क्षेत्रों में बाढ़ की त्रासदी का खतरा ज्यादा है.

Advertisement

पिछले रविवार को चमोली के तपोवन क्षेत्र में अचानक आई तेज बाढ़ ने दो दर्जन से अधिक लोगों की जान ले ली. सैलाब इतना भयानक था कि रास्ते में जो भी आया तबाह हो गया. पुल, सड़कें और इमारतों के साथ सैकड़ों लोग इसमें बह गए. हालांकि अभी तय नहीं है कि यह बाढ़ कैसे आई. लेकिन वैज्ञानिकों का एक बड़ा हिस्सा मान रहा है कि यह बाढ़ किसी झील के फटने से आई थी और ऐसी कई झीलें हैं जो त्रासदी का कारण बन सकती हैं.

वैज्ञानिकों के एक दल ने भारत में पड़ने वाले हिमालय के करीब पांच हजार से ज्यादा हिमखंडों (ग्लेशियर) का अध्ययन करने के बाद पाया कि अकेले उत्तराखंड में 500 ऐसे ग्लेशियर हैं जिनके नीचे अस्थायी झीलों के बनने का सिलसिला जारी है और जो किसी भी वक्त फट सकती हैं. ऐसी बर्फीली बाढ़ राज्य के 78 तहसीलों में से 26 को अपनी चपेट में ले सकता है.

Advertisement

इंडिया टुडे की डाटा टीम, डीआईयू ने इस नई रिपोर्ट के विश्लेषण के बाद पाया कि झीलों के फटने से आने वाली बर्फीले बाढ़ का सबसे ज्यादा खतरा भटवारी, जोशीमठ और धारचुला जैसी तहसीलों पर है.

वैज्ञानिकों ने सैटेलाइट के जरिए भारत में पड़ने वाले हिमालय की हजारों इमेज और डाटा का अध्ययन किया. बढ़ते तापमान से बर्फ पिघल रही है. वैज्ञानिकों ने ग्लैशियर के नीचे बनने वाली झीलों के आकार और बनावट में आ रहे बदलाव के आधार पर जोखिम वाली झीलों की पहचान की.

तिहाई झीलें बेहद कमजोर

उत्तराखंड में पाई जाने वाली एक तिहाई झीलें ‘मोरीन’ (झील का प्रकार) कैटेगरी की हैं. ऐसी झीलें बहुत कमजोर होती हैं और थोड़े से झटकों या दबाव से चाहे वो भूस्खलन से हो या भूकंप या फिर भारी बर्फबारी या अवलांच से टूटने का खतरा ज्यादा होता है.

वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में ऐसी मौजूदा झीलों के किसी वजह से फटने पर होने वाली तात्कालिक और भविष्य के प्रभावों का अध्ययन किया है. उनका मानना है कि उत्तराखंड का बड़ा हिस्सा इस तरह के झीलों के फटने से आने वाली बाढ़ के दायरे में है.

वैज्ञानिकों की टीम में से एक और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर एपी डिमरी ने आजतक से कहा कि “हमारा अध्ययन बताता है कि आने वाले दिनों में बर्फीली बाढ़ की जद में घाटी के वे सभी क्षेत्र आ सकते हैं. लेकिन नई झीलों के बनने की रफ्तार बढ़ रही है और उसका परिणाम पहले मौजूदा क्षेत्रों के साथ-साथ कुछ नए इलाकों में कई गुना बढ़ सकता है”.

Advertisement

प्रोफेसर डीमरी और उनके सहयोगियों ने एक जोखिम सूचकांक (Hazard Index) के आधार पर झीलों के फटने से आने वाली बाढ़ और उसके दायरे में आने वाली आबादी के साथ खेती, सड़कों, और बिजली परियोजना का आकलन किया है.

भारत के 11 राज्य हिमालय से जुड़े हुए हैं. लेकिन उत्तराखंड में आबादी का घनत्व (182/km2) बाकियों के मुकाबले ज्यादा है जिससे यहां बर्फीले बाढ़ का असर ज्यादा होने की आशंका है.

पन-बिजली परियोजनाओं को होगा नुकसान

प्रोफेसर डिमरी का आगे कहना कि वैसे तो ऐसी बाढ़ से सभी क्षेत्रों को नुकसान होगा लेकिन खेती और सड़कों की तुलना में आमलोग और पन-बिजली परियोजनाएं ज्यादा चपेट में आएंगी.

हिमखंडों के नीचे बनी बर्फीली झील के फटने से आने वाली बाढ़ भयानक होती है. पर्यावरण से जुड़ी एक अन्य रिपोर्ट कहती है कि “बर्फीली झीलों के फटने से घाटियों में भारी तबाही आती है ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनमें हाइड्रोलिक एनर्जी ज्यादा होती है जो कि हजारों लोगों की जान के साथ नदी के आसपास बने हर किस्म की बनावट को तहस-नहस कर सकती है.”

दुनियाभर में जैसे-जैसे धरती गर्म हो रही है. पहाड़ों की बर्फ पहले से ज्यादा तेजी से पिघलने लगी है. बर्फ पिघलने से सैकड़ों की संख्या में अस्थायी किस्म की झीलें बन रही हैं और जो समय-समय पर किसी भी झटके से टूट जाती है. नेचर पत्रिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब पिछले तीस सालों में (1990 से लेकर 2018) के दौरान ग्लैशियल झील के आयतन में करीब 48 फीसदी की इजाफा हुआ है. जिससे साफ है कि समय रहते तापमान में होने वाली बढ़ोतरी और संवेदनशील हिमालय की बनावट से मानवीय छेड़छाड़ नहीं रोकी गई तो चमोली और चोराबारी (केदारनाथ, 2013) जैसी आपदाओं को रोकना मुश्किल होगा.

Advertisement

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement