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उत्तराखंड: न सड़क, न मेडिकल सुविधा, कोरोना के खौफ से पुश्तैनी घर छोड़ने को मजबूर हुए लोग

उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बिनसर से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ‘सीमा’ गांव के लोगों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा है. इस गांव तक पहुंचने के लिए पैदल 3 किलोमीटर का उबड़ खाबड़ रास्ता तय करना पड़ता है. गांव में 50 परिवार रहते थे, इनमें से करीब 50 फीसदी पलायन कर चुके हैं.

सीमा गांव की एक तस्वीर सीमा गांव की एक तस्वीर
ऐश्वर्या पालीवाल
  • बिनसर,
  • 27 मई 2021,
  • अपडेटेड 3:49 PM IST
  • लोगों में कोरोना का भारी डर
  • इलाज के लिए आसपास नहीं है कोई भी व्यवस्था
  • सड़कें नहीं हैं, अस्पताल नहीं हैं

कोविड-19 की दूसरी लहर का प्रकोप इतना व्यापक है कि इससे पहाड़ भी अछूते नहीं रहे. महामारी की दस्तक दरवाजे-दरवाजे पर हो रही है. इसी से बचने के लिए उत्तरांखड के एक गांव के लोग अपने पुश्तैनी घरों के दरवाजों पर हमेशा के लिए ताले लगा कर पलायन कर रहे हैं.  

दरअसल, उत्तराखंड के दूरस्थ गांवों में कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर, मेडिकल केयर सुविधाओं की कमी और वैक्सीन का इंतजाम नही होने ने लोगों में कोविड-19 के खौफ को बढ़ाया है. गांवों के पक्की सड़क से जुड़े नहीं होने की वजह से उन्हें सामान उठाकर कई-कई किलोमीटर पैदल पहाड़ी रास्तों पर चलना पड़ता है. 

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उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बिनसर से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ‘सीमा’ गांव के लोगों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा है. इस गांव तक पहुंचने के लिए पैदल 3 किलोमीटर का उबड़ खाबड़ रास्ता तय करना पड़ता है. गांव में 50 परिवार रहते थे, इनमें से करीब 50 फीसदी पलायन कर चुके हैं. और परिवार भी जल्दी ही ऐसा करने की तैयारी में हैं. 

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कोविड-19 का खौफ और आसपास कोई मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद नहीं होने की वजह से गांव के लोगों ने पुरखों की जमीन को छोड़ने का फैसला किया है. 33 साल के सुशील कुमार कांडपाल भरी आंखों से बताते हैं कि उन्हें 100 साल पुराना पुश्तैनी घर छोड़ना पड़ा है.

सुशील ने आजतक को बताया ''मैं पिछले 5 साल से गांव से निकलने की सोच रहा था, क्योंकि यहां बुनियादी ढांचा बहुत खराब है, लेकिन जब पिछले साल कोविड-19 का प्रकोप देश में फैला, तब मैंने गांव छोड़ने पर गंभीरता से काम करना शुरू कर दिया. इस साल आंकड़ों ने बढ़ना शुरू कर दिया तो मैं अपने परिवार के साथ वहां से निकल आया.

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सुशील ने आगे बताया “जब कुछ साल पहले मेरे पिता बीमार हुए तो मैंने कुछ लोगों से मदद के लिए कहा और फिर हम पिता को कंधों पर उठाकर स्ट्रेचर के जरिए नीचे लाए. जब हमने कोविड-19 की दूसरी लहर और मौतों के बढ़ते आंकड़ों के बारे में सुनना शुरू किया तो हम गांव से निकल आए. ऐसा इसलिए किया क्योंकि किसी कोरोना संक्रमित मरीज को अस्पताल तक पहुंचाने में जितनी देर लगती तब तक वो दम तोड़ देता. गांव का सड़क से संपर्क नहीं जुड़ा है.”  

सुशील बताते हैं, “अब भी गांव के पुराने मकान में कई सारा घरेलू सामान पड़ा है. परिवार के लोग कई चक्कर में इसे वहां से लाएंगे. अगले कुछ दिन में घर बिल्कुल खाली हो जाएगा.”

गांव से पलायन करते लोग

सुशील की मां मुन्नी कांडपाल अपने घर से जुड़ी यादों को लेकर भावुक हो जाती हैं. वे कहती हैं- “ये मेरा पुश्तैनी घर है. हमारा परिवार इसी घर में पीढ़ी दर पीढ़ी 100 साल से रहता आ रहा था. लेकिन अब यहां रहना मुमकिन नही है. कैसे कोई बूढ़ा व्यक्ति ऐसे दुर्गम पहाड़ी रास्ते पर चल सकेगा. हम जानते हैं कि कोविड में क्या होता है. जिनमें गंभीर लक्षण दिखते हैं उन्हें तत्काल मेडिकल मदद की जरूरत होती है. हम सड़क तक पहुंचने के लिए ही 3 किलोमीटर का रास्ता तय करते हैं. जब तक अस्पताल पहुंचेंगे, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी.” 

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सीमा गांव के लोगों का आरोप है कि सरकारों ने वादे तो बहुत किए लेकिन पूरे नहीं किए. गांव वालों के कई बार गुहार लगाने के बाद भी इसे मुख्य सड़क से नहीं जोड़ा गया. बच्चा हो या जवान, बूढ़ा हो या बीमार सभी को जरूरी काम से नीचे आने के लिए कई किलोमीटर चलना पड़ता है. 

सुशील जैसा तरीका गांव के कई और लोग भी अपना रहे हैं. कोविड-19 के खौफ की वजह से गांव से पलायन की रफ्तार में तेजी आ गई है. 28 साल के नवल बताते हैं, “हम यहां बरसों से रह रहे थे. लेकिन अब खतरा सही में बड़ा है. हम संक्रमण के केसों की संख्या में इजाफे के साथ मौतों के आंकड़े को भी तेजी से बढ़ता देख रहे हैं. हम अपना वजूद बचाए रखने के लिए ही गांव छोड़ रहे हैं. नवल के मुताबिक वो अपने परिवार के साथ अगले एक महीने में गांव के घर को छोड़ देंगे.” 

गाव में कई दशक से रहते आ रहे लोगों के लिए पुश्तैनी घरों को छोड़ना आसान नहीं है. लेकिन उन्हें अपनी और परिवार के बाकी सदस्यों की जान बचाने के लिए यही रास्ता नजर आता है. आसपास मनोरम नजारों वाले इस पर्वतीय गांव में चहल-पहल की जगह दरवाजों पर लटके ताले अब कुछ और ही कहानी कह रहे हैं. 

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