
प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई कैबिनेट और आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की बैठक में कुछ अहम फैसले लिए गए. इस दौरान कैबिनेट ने राष्ट्रीय रोपवे विकास कार्यक्रम और पर्वतमाला परियोजना के तहत उत्तराखंड में रोपवे की दो अहम परियोजनाओं को मंजूरी दी.
इसमें सोनप्रयाग से केदारनाथ (12.9 किमी) तक रोपवे परियोजना और गोविंदघाट से हेमकुंड साहिब जी (12.4 किमी) तक रोपवे परियोजना का विकास शामिल है.
परियोजनाओ पर आएगा करीब 7 हजार करोड़ का खर्च
गोविंदघाट से हेमकुंड साहिब जी तक 12.4 किलोमीटर रोपवे परियोजना को डिजाइन, निर्माण, वित्त, संचालन और हस्तांतरण (डीबीएफओटी) मोड पर विकसित किया जाएगा, जिसकी कुल पूंजीगत लागत 2,730.13 करोड़ रुपये होगी. सोनप्रयाग से केदारनाथ तक 12.9 किमी रोपवे परियोजना को सार्वजनिक-निजी भागीदारी में विकसित करने की योजना है. परियोजना को डिजाइन, निर्माण, वित्त, संचालन और स्थानांतरण (डीबीएफओटी) मोड पर 4,081.28 करोड़ रुपये की कुल लागत पर विकसित किया जाएगा.
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सोनप्रयाग से केदारनाथ तक पहुंचेंगे हर दिन 18000 यात्री
केदारनाथ 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से एक है जो रुद्रप्रयाग जिले में 3,583 मीटर (11968 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है. यह मंदिर साल में अक्षय तृतीया (अप्रैल-मई) से दीपावली (अक्टूबर-नवंबर) तक लगभग 6 से 7 महीने तीर्थयात्रियों के लिए खुला रहता है और इस मौसम के दौरान सालाना लगभग 20 लाख तीर्थयात्री यहां आते हैं.
यह रोपवे सबसे उन्नत ट्राई-केबल डिटेचेबल गोंडोला (3एस) तकनीक पर आधारित होगा. इसकी डिजाइन क्षमता 1,800 यात्री प्रति घंटे प्रति दिशा (पीपीएचपीडी) होगी, जो प्रति दिन 18,000 यात्रियों को ले जाएगी. रोपवे परियोजना केदारनाथ आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए वरदान होगी क्योंकि यह पर्यावरण-अनुकूल, आरामदायक और तेज़ कनेक्टिविटी प्रदान करेगी और एक दिशा में यात्रा का समय लगभग 8 से 9 घंटे से घटाकर लगभग 36 मिनट कर देगी.
रोपवे परियोजना निर्माण और संचालन के साथ-साथ आतिथ्य, यात्रा, खाद्य और पेय पदार्थ (एफ एंड बी) और पर्यटन जैसे संबद्ध पर्यटन उद्योगों में पूरे वर्ष रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराएगी. गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर तक की यात्रा 16 किमी की चुनौतीपूर्ण चढ़ाई है. यहां फिलहाल इसे पैदल या टट्टू, पालकी और हेलीकॉप्टर द्वारा तय किया जाता है. प्रस्तावित रोपवे की योजना मंदिर में आने वाले तीर्थयात्रियों को सुविधा प्रदान करने और सोनप्रयाग तथा केदारनाथ के बीच हर मौसम में कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई है.
गोविंदघाट से हेमकुंड साहिब तक का सफर भी होगा आसान
हेमकुंड साहिब चमोली जिले में 15,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है. इस पवित्र स्थल पर स्थापित गुरुद्वारा मई से सितम्बर के बीच साल में लगभग 5 महीने के लिए खुला रहता है और हर साल लगभग 1.5 से 2 लाख तीर्थयात्री यहां आते हैं. हेमकुंड साहिब जी की यात्रा फूलों की प्रसिद्ध घाटी के प्रवेश द्वार के रूप में भी काम करती है, जो प्राचीन गढ़वाल हिमालय में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान है जिसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है.
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इस रोपवे को सार्वजनिक-निजी भागीदारी में विकसित करने की योजना है और यह गोविंदघाट से घांघरिया (10.55 किमी) तक मोनोकेबल डिटैचेबल गोंडोला (एमडीजी) पर आधारित होगा. इसे घांघरिया से हेमकुंड साहिब जी (1.85 किमी) तक सबसे उन्नत ट्राइकेबल डिटैचेबल गोंडोला (3 एस) तकनीक से जोड़ा जाएगा. इसका डिजाइन इस तरीके से तैयार किया जाएगा जिससे इसकी क्षमता प्रति घंटे प्रति दिशा 1,100 यात्री (पीपीएचपीडी) होगी और यह प्रतिदिन 11,000 यात्रियों को ले जाएगा.
वर्तमान में हेमकुंड साहिब जी की यात्रा गोविंदघाट से 21 किलोमीटर की चुनौतीपूर्ण चढ़ाई है और इसे पैदल या टट्टू या पालकी द्वारा पूरा किया जाता है. प्रस्तावित रोपवे की योजना हेमकुंड साहिब जी के दर्शन करने वाले तीर्थयात्रियों और फूलों की घाटी में आने वाले पर्यटकों को सुविधा प्रदान करने के लिए बनाई गई है और यह गोविंदघाट और हेमकुंड साहिब जी के बीच हर मौसम में अंतिम मील की कनेक्टिविटी सुनिश्चित करेगी.
स्थानीय कोराबारियों ने बताया सकारात्मक कदम
हमने जब स्थानीय लोगों से इस रोपवे परियोजना को लेकर बात की तो उन्होंने इसे एक सकारात्मक कदम बताया और कहा कि केदारनाथ जाने वाले यात्रियों की संख्या बढ़ेगी और स्थानीय कारोबारियों को भी फायदा मिलेगा. होम स्टे व्यसायी मयंक कर्नाटकी ने Aajtak.in से बात करते हुए कहा कि इससे लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे. उन्होंने उम्मीद जताई कि इसकी वजह से अगर स्थानीय कारोबार प्रभावित होता है तो निश्चित ही सरकार उस दिशा में भी कदम उठाएगी.
वहीं एक अन्य ऊखीमठ के निवासी और केदारनाथ में कारोबार करने वाले आयुष पुष्पवान ने Aajtak.in को बताया कि रोपवे बनने से फायदा यह होगा कि यात्रियों की संख्या बढ़ेगी और लोग एक ही दिन में बाबा केदार के दर्शन करके वापस सोनप्रयाग आ सकते हैं और स्थानीय लोगों के होमस्टेट और अन्य खानपान के कारोबार को बढ़ावा मिल सकता है. उन्होंने इस बात पर चिंता जाहिर की कि इससे स्थानीय रोजगार भी प्रभावित हो सकता है क्योंकि सोनप्रयाग से गौरीकुंड और उसके बाद पैदल मार्ग में जो कारोबारी काम करते हैं, रोपवे शुरू होने से उनका व्यवसाय वैसा नहीं चल पाएगा जैसा पहले चलता था.
वहीं एक स्थानीय कोरोबारी अजय ने बताया कि इसका एक फायदा यह होगा कि अगर कभी बारिश या मौसम की वजह से कहीं यात्रा का पैदल मार्ग क्षतिग्रस्त होता है तो यात्रा रोपवे के जरिए जारी रह सकती है. इससे यात्रा एकदम बंद नहीं होगी और निर्बाध रूप से यात्रा चलने स्थानीय कारोबार भी प्रभावित नहीं होगा. उन्होंने कहा कि इससे इको फ्रेंडली तीर्थाटन को तो बढ़ावा मिलेगा ही साथ में स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे.
यात्रा के समय में आएगी कमी
रोपवे बनने से दोनों तीर्थ स्थलों की यात्रा के समय में कमी आएगी. इसके अलावा, स्थानीय व्यवसायों को फायदा होगा और पर्यटन पर बहुत अधिक निर्भर क्षेत्र में आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा. रोपवे से विशेष रूप से वृद्ध और दिव्यांग लोगों को बड़ी राहत मिलेगी. लीगल फ्रेमवर्क की बात करें तो उत्तराखंड रोपवे अधिनियम, 2014 रोपवे के लिए लाइसेंसिंग, संचालन की निगरानी, सुरक्षा और टैरिफ के लिए कानूनी आधार प्रदान करेगा.