
अगले साल की शुरुआत में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसे लेकर अभी से राजनीतिक हलचलें तेज हो गई हैं. कांग्रेस के राष्ट्रीय महासिचव और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पार्टी से आगामी विधानसभा चुनाव के लिए किसी नेता को सेनापति घोषित करने की मांग उठाकर सर्द मौसम में उत्तराखंड की सियासी तपिश को बढ़ा दिया है. ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस आलाकमान से सीएम चेहरा घोषित करने की मांग के पीछे हरीश रावत अपने लिए सियासी पिच तो नहीं तैयार कर रहे हैं, क्योंकि खुद कह भी रहे हैं कि इस कदम से पार्टी बेहतर फाइटिंग पोजिशन पर आ सकेगी.
उत्तराखंड के कांग्रेस प्रभारी देवेंद्र यादव के चार दिवसीय दौरा पूरा होने के दूसरे दिन ही सोमवार को हरीश रावत ने पहले सुबह और दिन भर की प्रतिक्रियाओं के बाद देर शाम ट्वीट कर सात दिन के पहाड़ के दौरे पर भी निकल गए. गढ़वाल दौरे पर निकलने से पहले रावत ने प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव को इंगित करते हुए ट्वीट में कहा कि पार्टी को बिना लाग लपेट के 2022 के चुनावी रण का सेनापति घोषित कर देना चाहिए. पार्टी को यह भी घोषित कर देना चाहिए कि कांग्रेस के विजयी होने की स्थिति में वही व्यक्ति प्रदेश का मुख्यमंत्री भी होगा.
हरीश रावत ने कहा कि उत्तराखंड, वैचारिक रूप से परिपक्व राज्य है. लोग जानते हैं, राज्य के विकास में मुख्यमंत्री की क्षमता व नीतियों का बहुत बड़ा योगदान रहता है. हम चुनाव में यदि अस्पष्ट स्थिति के साथ जाएंगे तो यह पार्टी के हित में नहीं होगा. इससे गुटबाजी भी थमेगी और इस समय अनावश्यक कयासबाजियों तथा मेरा-तेरा के चक्कर में कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट रहा है और कार्यकर्ताओं के स्तर पर भी गुटबाजी पहुंच रही है. मुझको लेकर पार्टी को कोई असमंजस नहीं होना चाहिए, पार्टी जिसे भी सेनापति घोषित कर देगी मैं उसके पीछे खड़ा रहूंगा और यथा आवश्यकता सहयोग करूंगा. राज्य में कांग्रेस को विशालतम अनुभवी व अति ऊर्जावान लोगों की सेवाएं उपलब्ध हैं, उनमें से एक नाम की घोषणा करिये व हमें आगे ले चलिए.
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सोमवार देर शाम फिर ट्वीट किया और लिखा कि चुनाव के बाद नेता तय करने की परंपरा रही है पर ऐसा हर राज्य में नहीं हुआ है. पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, केरल, दिल्ली सहित अन्य कई राज्यों में पार्टी ने स्पष्ट चेहरा घोषित किया और चुनाव लड़ा. अधिकतर राज्यों में परिणाम बेहतर रहा. रावत के मुताबिक परंपरा हमारी बनाई हुई है और स्थितियों को देखकर बदलाव लाया जा सकता है, रावत ने यह भी कहा कि बीजेपी ने चुनाव को एक राजनीतिक घटना के स्थान पर एक राजनीतिक युद्ध में बदल दिया है इसलिए कमांड लाइन बिल्कुल स्पष्ट होनी चाहिए.
बता दें कि हरीश रावत की यह प्रतिक्रिया पार्टी के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव के सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की प्रतिक्रिया के बाद आयी है. प्रदेश प्रभारी ने साफ कहा था कि पार्टी में चुनाव पूर्व चेहरा घोषित करने की परंपरा नहीं है, ऐसे में चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाएगा. लेकिन हरीश रावत ने चेहरे की मांग उठाकर संदेश दे दिया है कि इस बार बिना चेहरे के चुनाव लड़ना कांग्रेस के लिए जोखिम भरा हो सकता है.
कांग्रेस में गुटबाजी जग जाहिर है. यही वजह है कि कांग्रेस 2022 में बिना किसी चेहरे की उतरने की रणनीति पर काम कर रही है, लेकिन हरीश रावत मौजूदा समय में उत्तराखंड के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं. विजय बहुगणा और हरक सिंह रावत के बीजेपी में जाने के बाद कद्दावर चेहरे के तौर पर हरीश रावत का नाम ही आता है.
इतना ही नहीं हाल के दिनों में रावत राज्य में राजनीतिक तौर पर काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं, लेकिन नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश का भी उत्तराखंड में अपना सियासी कद है. इसीलिए हरीश रावत के बयान पर इंदिरा हृदयेश ने महज इतना ही कहा कि कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं और राहुल गांधी भी पार्टी मामलों को देखते हैं. ऐसे में उनकी ओर से जो निर्देश दिए जाएंगे, उसे माना जाएगा बाकी कुछ कहना ठीक नहीं है.
वहीं, दूसरी ओर हरीश रावत के करीबी माने जाने वाले नेता खुलकर समर्थन में आ गए हैं. कांग्रेस विधायक करन माहरा ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सर्वमान्य नेता हैं. वे कुछ कह रहे हैं तो सोच समझकर ही कह रहे होंगे. उनकी बात को तवज्जो दी जानी चाहिए. हरीश रावत के बेहद करीबी पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने कहा कि पार्टी जितनी जल्दी हो सके चेहरा घोषित करे. कार्यकर्ताओं में कोई असमंजस की स्थिति न रहे.
ऐसे ही कांग्रेस के उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने भी कहा कि हरीश रावत हमारे वरिष्ठतम नेता हैं और उनका आशीर्वाद कांग्रेस को हमेशा चाहिए. ऐसे में अब देखना होगा कि हरीश रावत के नजरिए के साथ कांग्रेस किसे सेनापित बनाती है या फिर बिना किसी चेहरे के चुनावी मैदान में उतरेगी.