
कोरोना महामारी ने देश में जो तबाही मचाई है, उससे स्वास्थ्य व्यवस्था पर खूब सवाल खड़े हुए. दूसरी लहर के बीच जब मौतों का आंकड़ा बढ़ने लगा तो एक बड़ी समस्या कोविड मरीज़ों के अंतिम संस्कार को लेकर भी खड़ी हुई. देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में भी कुछ यही हाल है, यहां कोविड मरीज़ों के अंतिम संस्कार श्मशान में होने पर जब ग्रामीणों ने आपत्ति जताई तो फिर जंगल के बीच में अस्थाई श्मशान घाट बनाया गया.
उत्तराखंड के अल्मोड़ा में कोविड मरीजों के अंतिम संस्कार को लेकर यही खौफ है. यहां जंगल के बीच में ही एक जगह बनाई गई है, ताकि कोविड मरीजों का अंतिम संस्कार किया जा सके. बिना किसी सरकारी मदद या प्रशासन की मौजूदगी के परिजनों को खुद ही मरीजों को अंतिम विदाई देनी पड़ रही है.
'कोविड मरीजों के अंतिम संस्कार से स्थानीयों ने रोका'
अल्मोड़ा में बीते एक हफ्ते में कोविड से 40 लोगों की मौत हुई है. लेकिन यहां मौजूद श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार करने से जब स्थानीय लोगों ने आपत्ति जाहिर की, तो परिजनों के पास कोई रास्ता नहीं बचा. ऐसे में जंगल के बीच में ही एक जगह बनाई गई, जहां अंतिम संस्कार हो रहा है.
'गांव से बहुत दूर है कोविड अस्पताल'
उत्तराखंड के निवासी मुन्ना लाल जिनकी उम्र 35 साल है, उनके लिए पिछले दस दिन किसी बुरे सपने से कम नहीं थे. पिता को बुखार था, बड़ी मुश्किल से अस्पताल में भर्ती कराया गया. पिता के बाद परिवार के अन्य सदस्य भी कोविड पीड़ित हो गए. लेकिन दुखों का पहाड़ तब टूटा जब अस्पताल में भर्ती होने के 24 घंटे बाद ही पिता की मौत हो गई. इसके बाद उन्होंने यहां जंगल के बीच में ही बिना किसी सरकारी मदद से अपने पिता का अंतिम संस्कार किया.
ऐसा ही हाल चंदन रावत का है, जो अल्मोड़ा से दस किमी. दूर से आए हैं और यहां अपने पिता का अंतिम संस्कार करने पहुंचे हैं. चंदन रावत के मुताबिक, गांवों में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, कोविड का अस्पताल ही वहां से दस किमी. दूर है. ऐसे में जब पिता बीमार हुए तो गांव में कोई दवाई ही नहीं थी.
उत्तराखंड में बिगड़ रहे हैं हालात, गांवों में स्थिति बदतर
देवभूमि उत्तराखंड में हालात लगातार बिगड़ रहे हैं. राज्य में मृत्य दुर 1.73 फीसदी तक पहुंच गया है, जबकि 1.2 लाख लोगों पर सिर्फ एक ही कोविड अस्पताल है. ऐसे में स्थिति हाथ से निकलती दिख रही है.
अगर गांवों की बात करें तो यहां बीमारों की संख्या बढ़ रही है. ग्रामीणों के मुताबिक, पिछली लहर में गांव वालों ने बाहर ही कोविड सेंटर बनाया था, ताकि बाहर से आने वाले लोगों को रोका जा सके. लेकिन इस बार ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, ऐसे में शहर से आने वाला सीधा गांव में जा रहा है.
क्या हैं सबसे बड़ी दिक्कतें?
गांवों में कोविड लक्षणों से जुड़ी दवाओं का ना होना.
वैक्सीनेशन की गति काफी धीमी होना.
गांव वालों का श्मशान में कोविड मरीजों का अंतिम संस्कार होने से रोकना.
बिना किसी सरकारी मदद, पीपीई किट के जंगलों के बीच में अंतिम संस्कार के लिए जगह बनाने को मजबूर लोग.