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उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग अभी भी चिंता का विषय बनी हुई है. जंगलों में लगी आग की तपिश अब हिमालय में मौजूद ग्लेशियरों तक पहुंच रही है, जिससे ग्लेशियरों की सेहत पर खतरा बढ़ता जा रहा है. वैज्ञानिकों के मुताबिक जंगलों के जलने से बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड निकल रही है.
साथ ही आग से निकलने वाली राख और सूक्ष्म कण ग्लेशियरों पर चिपककर सीधे तौर पर भी बर्फ पिघलने की गति को बढ़ा रहे हैं. ऐसे में अगर उत्तराखंड सरकार ने जल्द ही कोई कदम नहीं उठाया तो बेहद खराब हालात होने वाले हैं. जिनसे इंसान ही नहीं बल्कि ग्लेशियर भी खतरे में आ गए हैं
हिमालय की इकोलॉजी पर नज़र रखने वाले वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल का कहना है कि जिस तरह उत्तराखंड के जंगल चौतरफा आग से धधक रहे हैं उससे पूरे क्षेत्र का वातावरण गर्म हो रहा है. जो कि ग्लेशियरों के लिए ठीक नहीं है.
उन्होंने कहा कि आग लगने की वजह से उड़ने वाली राख ऊपर उड़ कर ग्लेशियरों पर जमा हो रही है और इससे ग्लेशियरों के पिघलने कि रफ्तार बढ़ रही है.
बता दें कि उत्तराखंड में इस बार भीषण आग लगी हुई है और इसकी वजह से वन संपदा से भी ज़्यादा नुकसान पर्यावरण का हो रहा है. डॉ. डोभाल ने बताया कि ग्लेशियरों के पिघलने की रफ़्तार बढ़ने से हिमालय में एवलांच आने का खतरा और बढ़ जाता है, जिससे बड़ा नुकसान हो सकता है.
कोलकाता-उत्तराखंड में कोई अंतर नहीं!
दूसरी ओर चारधाम यात्रा पर आए हुए कोलकाता के यात्री भी बेहद आश्चर्य में हैं. उन्होंने कहा कि पूरे प्रदेश में जहां-जहां से भी वो घूम कर आ रहे हैं वहां जंगल ही जंगल जल रहे हैं जिसकी वजह से पहाड़ में भी जबरदस्त गर्मी महसूस हो रही है. उन्होंने कहा कि वह ऐसा पहली बार देख रहे हैं कि पहाड़ों में इतनी गर्मी है, हालांकि केदारनाथ धाम में कुछ ठंड थी. उन्होंने कहा कि अब ऐसा लग रहा है कि कोलकाता और उत्तराखंड में कोई अंतर ही नहीं है.