
उत्तराखंड सरकार ने हरिद्वार में कुंभ मेले की अवधि इस बार घटाकर सिर्फ एक महीना रखने और स्पेशल ट्रेन-बसें न चलाने का जो फैसला लिया है, उससे हरिद्वार का व्यापारी वर्ग, छोटे दुकानदार, और तीर्थ पर्यटन से आजीविका कमाने वाला हर वर्ग आहत है. राज्य सरकार कोरोना महामारी के खतरे को देखते हुए किसी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहती. इस दिशा में केंद्र सरकार की गाइडलाइंस समेत तमाम SOP (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) पर पालन कराया जा रहा है.
वहीं हरिद्वार के व्यापारी वर्ग का कहना है कि अगर तमाम तरह के प्रतिबंधों के साथ कुंभ मेले की अवधि सिर्फ एक महीना ही रहती है तो उनका कारोबार जो पहले से ही चौपट है, उसकी पूरी तरह कमर टूट जाएगी. व्यापारियों की नाराजगी को देखते हुए विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी उत्तराखंड की बीजेपी सरकार पर निशाना साधने का मौका नहीं छोड़ रही है.
कुंभ की अवधि घटाए जाने का विरोध
उत्तराखंड व्यवसायी और प्रांतीय उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल के जिला महामंत्री संजीव नैय्यर ने कहा, “सरकार की ओर से कुंभ की अवधि घटाए जाने का व्यापारी विरोध कर रहे हैं. अगर सरकार को कुंभ नहीं कराना तो एसओपी लागू क्यों कर रही है. हमारा सरकार से स्पष्ट यह कहना है अगर कुंभ कराना है तो 1 मार्च से एसओपी हटाकर कराया जाए नहीं तो औपचारिकता ही करनी है तो एसओपी लगाकर एक हफ्ते का ही कुंभ करा लिया जाए.”
हरिद्वार व्यापार मंडल के शहर अध्यक्ष कमल बृजवासी कहते हैं, “महाकुंभ 2021 के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार की एसओपी, मेला अवधि 120 दिन से घटाकर 30 दिन करना, कोविड टेस्ट रिपोर्ट की बाध्यता, सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजनों पर रोक, बुजुर्गों और बच्चों के कुम्भ मेला में प्रवेश पर रोक, मेले की अवधि के दौरान स्पेशल ट्रेन और बस न चलाए जाना, ये सब फैसले ऐसे हैं जो धार्मिक और व्यापार, दोनों की दृष्टि से न्याय संगत नहीं हैं. इनसे तीर्थयात्रियों पर निर्भर व्यापार पर तो बुरा असर पड़ेगा ही गंगा में आस्था रखने वालों की धार्मिक भावनाएं भी प्रभावित होंगी. शासन और मेला प्रशासन को इस महाकुंभ के आयोजन के लिए समुचित व्यवस्था करनी चाहिए न कि आस्था पर रोक लगानी चाहिए.”
पुरोहित समाज भी फैसले से नाराज
हरिद्वार के पुरोहित समाज में भी उत्तराखंड सरकार के फैसले को लेकर नाखुशी है. पुरोहित उज्ज्वल पंडित मानते हैं कि “कुंभ की अवधि को घटाना, एसओपी लागू करना कोरोना सुरक्षा के नजरिए से बेहतर हो सकता है, लेकिन सनातन परम्परावादियों के लिए कुम्भ मकर संक्रान्ति के पर्व से ही प्रारम्भ हो चुका है, वे मां गंगा में पवित्र स्नान की डुबकी भी लगा रहे हैं, संतों के शाही स्नान भी समय पर ही होंगे. हां विवशताओं के कारण सरकार का भव्यता और दिव्यता का संदेश सुरक्षित कुम्भ कराने में खो गया है और यह निश्चित रूप से सनातनधर्मियों को निराश करता है.”
हरिद्वार में तीर्थयात्री बड़ी संख्या में आते हैं तो यहां धर्मशालाओं के साथ बड़ी संख्या में होटलों में रहते हैं. हरिद्वार में अधिकतर बजट होटल है जिनसे ठहरने वाले की जेब पर अधिक बोझ नहीं पड़ता. बजट होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष कुलदीप शर्मा का कहना है कि “कुंभ विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है, हर हिन्दू इस महापर्व पर मां गंगा का आशीर्वाद लेने और इसके पवित्र जल के आचमन की इच्छा रखता है. हरिद्वार के स्थानीय लोग भी 12 साल (इस बार 11 साल) तक ऐसे भव्य एवं दिव्य आयोजन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने की इच्छा रखते हैं. सरकार को कोरोना नेगेटिव टेस्ट रिपोर्ट और रजिस्ट्रेशन की बाध्यता को तत्काल खत्म करना चाहिए.”
व्यवसायी और प्रांतीय उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल हरिद्वार के जिला संगठन महामंत्री डॉक्टर संदीप कपूर ने कहा कि होटल कारोबारी और अन्य व्यवसायी कुंभ पर बहुत आस लगाए हुए थे. कोरोना की वजह से लगभग पिछला पूरा साल काम धंधे बंद रहे. अब कुंभ के भी थोड़े दिनों में ही सिमट जाने से व्यापारी को सामने पूरी तरह अंधकार नजर आ रहा है. जो कुंभ के लिए उसने निवेश किया था वो भी डूबता नजर आ रहा है.
हरिद्वार में कुंभ में ही इतनी बाध्यताएं क्यों
कपूर एक और सवाल करते हैं कि कुंभ में बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए तीन दिन पहले की कोविड-19 निगेटिव रिपोर्ट को ही मान्य करार दिया जाएगा. ऐसे में तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक के श्रद्धालुओं को हरिद्वार आने में ही तीन दिन से अधिक लगते हैं. तो उनकी लाई गई RT_PCR रिपोर्ट का क्या होगा?”
हरिद्वार के पुरोहित, व्यापारी ये सवाल भी उठा रहे हैं कि अगर यूपी में माघ मेला, वृंदावन उत्सव का आयोजन हो सकता है. किसानों के आंदोलन और बिहार-बंगाल जैसे राज्यों में चुनाव के दौरान राजनीतिक रैलियों में लोगों की भीड़ जमा हो सकती है तो हरिद्वार में कुंभ में ही इतनी बाध्यताएं क्यों लगाई जा रही हैं.
उद्योग व्यापार मंडल के प्रांतीय महामंत्री संजय त्रिवाल सवाल उठाते हैं कि सरकार को बाध्यताओं के साथ सीमित समय के लिए ही कुंभ कराना तो मेला कार्य पर इतना बजट क्यों खर्च किया जा रहा है. एक महीने के कुंभ के लिए 7 करोड़ रुपये के केवल तंबू लगाए जा रहे हैं जबकि श्रद्धालुओं का आगमन ही नहीं होगा तो यह 7 करोड़ रुपये की फिजूलखर्ची क्यों की जा रही है?
हरिद्वार में स्थानीय लोगों की नाराजगी को देखते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी राज्य सरकार और बीजेपी पर निशाना साधने का मौका नहीं चूका. रावत ने कहा “कुंभ की अवधि घटाने से पता चलता है कि राज्य सरकार की ओर से कुंभ का आयोजन न करने के लिए ये षड्यंत्र है, प्रयाग में माघ के कुंभ की अवधि बढ़ाई जा रही है और हरिद्वार का जो पौराणिक कुंभ है, उसकी अवधि घटाई जा रही है. यह उत्तराखंड और हरिद्वार का अपमान है जिसके लिए मैं राज्य सरकार और बीजेपी की निंदा करता हूं.”