
'आजतक' के नए फैक्ट ने उत्तराखंड सरकार के उन तमाम दावों की पोल खोल दी, जिसमें कहा गया कि कोरोना मरीजों के शवों का न तो खुले जंगल में दाह संस्कार हुआ और न ही प्रशासन की गैरमौजूदगी में उन्हें जलाया गया. जबकि हमारी रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में कोरोना मरीजों के शवों का खुले जंगल में अंतिम संस्कार किया जा रहा है. जंगल के बीच में ही अस्थाई श्मशान घाट बनाया गया और यहीं बिना किसी सरकारी मदद या प्रशासन की मौजूदगी के परिजनों को खुद ही अपनों को अंतिम विदाई देनी पड़ रही है.
स्टोरी के सनसनीखेज होने का आरोप
इस खबर को जब 'आजतक' ने प्रमुखता से दिखाया तो प्रशासन ने अपनी नाकामी छुपाने के लिए इस खबर पर ही सवाल उठा दिए. लेकिन उसके तमाम दावों के बीच हमने फिर से नए फैक्ट जारी किए हैं, जो प्रशासन के दावों की हवा निकालने के लिए काफी है.
दरअसल, आजतक के कोविड-19 मरीजों के शवों को संभालने में उत्तराखंड सरकार की घोर विफलता को उजागर करने के एक दिन बाद, राज्य सरकार ने एक बयान जारी किया है. सरकार ने दावा किया है कि अल्मोड़ा जिले में जिस स्थान पर खुले जंगल में शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा था, वह “दाह संस्कार के लिए प्रशासन द्वारा बनाई गई जगह है, जहां कोविड प्रोटोकॉल के तहत शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है.” साथ ही यह भी आरोप लगाया गया कि स्टोरी "सत्यापित नहीं है और सनसनीखेज है."
उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग ने एक के बाद एक कई ट्वीट किए
'आजतक' की स्टोरी के बाद उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग ने एक के बाद एक कई ट्वीट किए, जिसमें कहा गया कि “एसडीएम अल्मोड़ा, AMA-ZP और EO-NP अल्मोड़ा साइट के प्रभारी हैं, वे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहे हैं. पहाड़ों पर डेजिग्नेटेड शवदाह गृह नहीं है, लेकिन घाटों को दाह संस्कार के लिए चिन्हित किया गया है. पीपीई किट में दिख रहा आदमी एक सरकारी कर्मचारी है, जो अपने कर्तव्यों को पूरा कर रहा है.”
जमीनी हकीकत उत्तराखंड सरकार के लंबे-चौड़े दावों से अलग
हालांकि, हमारी पड़ताल में अल्मोड़ा की जमीनी हकीकत उत्तराखंड सरकार के लंबे-चौड़े दावों से काफी अलग है. ऐसे में 'आजतक' अपनी रिपोर्ट पर कायम है. जिसमें 20 मई को हमने बताया था कि अल्मोड़ा में कोविड मरीज़ों के अंतिम संस्कार पारंपरिक श्मशान घाट में होने पर जब ग्रामीणों ने आपत्ति जताई तो फिर जंगल के बीच में अस्थाई श्मशान घाट बनाया गया. ग्रामीणों ने प्रशासन को इस बाबत कई पत्र भी लिखे और अनुरोध किया कि शवों का अंतिम संस्कार उनके गांवों से दूर किसी स्थान पर किया जाना चाहिए. लेकिन सरकार या प्रशासन ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.
राज्य सरकार की सहायता के बिना खुले जंगल में दाह संस्कार!
जब 'आजतक' ने इस साइट का दौरा किया, तो पाया कि ये खुले जंगल में दाह संस्कार राज्य सरकार की सहायता के बिना किया जा रहा था. यानी कोविड मरीजों के परिजन खुद से अपने परिजनों का अंतिम संस्कार कर रहे थे. कई मृतकों के परिजनों ने 'आजतक' से कैमरे पर बात की और कहा कि उन्हें खुले जंगल में अपने परिवार के सदस्यों का अंतिम संस्कार करने में कोई सरकारी सहायता नहीं मिली.
हमारी ग्राउंड रिपोर्ट ने प्रशासन के दावों की हवा निकाल दी. सरकार का दावा है कि जंगल क्षेत्र एक डेजिग्नेटेड शवदाह गृह बनाया गया है, जबकि हकीकत यह है कि अंतिम संस्कार के मौके पर कोई सरकारी अधिकारी मौजूद नहीं था, लोग खुद ही अपनों का अंतिम संस्कार कर रहे थे.
उत्तराखंड सरकार के दावे और उसकी हकीकत
उत्तराखंड सरकार ने दावा किया है कि Bhainswara Farm (जहां सामूहिक दाह संस्कार किया जा रहा है) को आधिकारिक तौर पर कोरोना मरीजों के शवों के दाह संस्कार के लिए नामित किया गया है. लेकिन अगर यह सच है तो सरकार के नोडल अधिकारी को दाह संस्कार से पहले और बाद में मौके पर मौजूद रहना चाहिए, ताकि लोगों को कोविड प्रोटोकॉल के अनुसार दाह संस्कार करने में मदद मिल सके, लेकिन ऐसा नहीं था.
19 मई की सुबह साढ़े नौ बजे आजतक की टीम जब मौके पर पहुंची तो श्मशान घाट के पास एक जेसीबी मशीन काम में लगी थी और श्मशान घाट की ओर जाने वाली सड़क काफी क्षतिग्रस्त थी. दोपहर करीब 12:30 बजे, वाहन एक कोरोना मरीज के शव को लेकर श्मशान घाट पहुंचा. वाहन में मृतक के परिजन भी साथ थे. हमने देखा कि दाह संस्कार करने में परिजनों के साथ राज्य प्रशासन की ओर से कोई भी मौके पर मौजूद नहीं था. उन्होंने खुद से ही चिता को जलाया (जैसा कि हमारी वीडियो रिपोर्ट में दिखाई दे रहा है). यही नहीं दाह संस्कार के दौरान कोई नोडल अधिकारी भी मौजूद नहीं था. यानी कि मौके पर जो दिखा वो सरकार के दावे से बिल्कुल उलट था.
'आजतक' से बात करते हुए, परिवार ने कहा कि वे शव का अंतिम संस्कार करने के लिए काफी दूर से यहां आए हैं. 'आजतक' की टीम शाम साढ़े चार बजे तक मौके पर रही. दाह संस्कार समाप्त होने के बाद हम वहां से चले गए, फिर भी राज्य प्रशासन से कोई भी दिन भर मौके पर मौजूद नहीं था. कुल मिलाकर सच्चाई यह है कि प्रशासन की ओर से कोई भी श्मशान स्थल पर जाता ही नहीं, इसकी पुष्टि आसपास के ग्रामीणों ने भी की है.
ग्राम प्रधान ने आजतक से बताई हकीकत
स्थानीय ग्राम प्रधान कमल अधिकारी ने 'आजतक' से कहा, “जब मैं साइट पर गया, तो मुझे वहां प्रशासन का कोई आदमी नहीं मिला. हमने अधिकारियों से शिकायत भी की कि कोविड मरीजों के रिश्तेदार अपनी पीपीई किट खुले में छोड़ देते हैं. कई बार जिस स्ट्रेचर पर बॉडी को लाया जाता है, वह भी यहीं छूट जाता है. परिवारों को गाइडलाइन बताने के लिए मौके पर प्रशासन की ओर से कोई मौजूद नहीं होता है.” यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने 19 मई को (जब आजतक ने घटनास्थल का दौरा किया) प्रशासन से किसी को देखा था, कमल अधिकारी ने कहा, "नहीं मैंने नहीं देखा."
'आजतक' से 35 वर्षीय मुन्ना लाल ने कहा कि उनके पिता को पिछले 10 दिनों से बुखार था और बड़ी मुश्किलों के बाद उन्हें अस्पताल मिल सका. लेकिन “भर्ती होने के 24 घंटे के भीतर, पिता की कोविड से मौत हो गई. हमें उनके शव को जंगल में ले जाना पड़ा और बिना प्रशासन की मदद के उनका अंतिम संस्कार करना पड़ा.”
SDRF को लेकर भी सरकार का दावा गलत निकला
उत्तराखंड सरकार का दावा है कि एसडीआरएफ की टीम कोविड मरीजों का अंतिम संस्कार कर रही है. लेकिन सच्चाई यह है कि वह लावारिस शवों का ही अंतिम संस्कार कर रही है. जिस दिन 'आजतक' ने अल्मोड़ा में जंगल के अंदर श्मशान घाट का दौरा किया, वहां पर मृतकों के परिवारों की सहायता के लिए एसडीआरएफ का कोई कर्मी मौजूद नहीं था.
'आजतक' से बात करते हुए, एसडीआरएफ कमांडर नवनीत भुल्लर ने कहा कि SDRF टीम दाह संस्कार कर रही है, लेकिन "केवल लावारिस शवों का." एसडीआरएफ के प्रवक्ता प्रवीण आलोक ने भी यही बात दोहराई. इस बाबत 'आजतक' ने उत्तराखंड सरकार से जवाब मांगने की कोशिश की, लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया.
सवालों से बचते नजर आए जिम्मेदार
इस मामले को लेकर अल्मोड़ा के जिलाधिकारी नितिन सिंह भदौरिया और स्थानीय विधायक रेखा आर्य से संपर्क करने की कोशिश की गई. लेकिन, बार-बार कॉल और मैसेज करने के बावजूद दोनों ने कोई जवाब नहीं दिया. इसके बाद 'आजतक' की टीम 21 मई को डीएम ऑफिस गई, लेकिन ऑफिस से किसी ने कोई जवाब नहीं दिया, इसलिए हमें वापस लौटना पड़ा.
उधर, ग्रामीण खुले जंगल में कोविड मरीजों के दाह संस्कार का विरोध कर रहे हैं. इस बाबत उन्होंने प्रशासन को पत्र भी लिखा है. 'आजतक' के पास प्रशासन को ग्रामीणों (जो पुराने श्मशान घाट के करीब रहते हैं) द्वारा लिखे गए पत्रों की कॉपियां हैं, जिसमें अधिकारियों से उनके गांव के श्मशान में कोविड मरीजों के शवों का अंतिम संस्कार बंद करने के लिए कहा गया है.