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100 साल से बसे लोग, पक्की रजिस्ट्री, स्कूल-अस्पताल... हल्द्वानी की गफूर बस्ती की कहानी जहां रुका 'अतिक्रमण हटाओ' अभियान

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रेलवे की जमीन पर 'अतिक्रमण हटाओ' अभियान चलाने पर रोक लगा दी है. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर को बनभूलपुरा इलाके में रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था. इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. क्या है ये पूरा मामला? अदालतों तक कैसे पहुंचा? समझें

हल्द्वानी में लोग लंबे वक्त से प्रदर्शन कर रहे थे (फोटो- PTI) हल्द्वानी में लोग लंबे वक्त से प्रदर्शन कर रहे थे (फोटो- PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 05 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 7:07 PM IST

उत्तराखंड के हल्द्वानी में फिलहाल बुलडोजर नहीं चलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें अदालत ने हल्द्वानी में रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट सात फरवरी को सुनवाई करेगा. 

दरअसल, आरोप है कि हल्द्वानी में लगभग साढ़े चार हजार परिवारों ने रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण कर रखा है. ये जमीन 29 एकड़ की है. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पिछले साल 20 दिसंबर को अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था. इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. 

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सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए कहा कि 50 हजार लोगों को रातो-रात बेघर नहीं किया जा सकता. रेलवे को विकास के साथ-साथ इन लोगों के पुनर्वास और अधिकारों के लिए योजना तैयार करनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर रेलवे और राज्य सरकार समेत सभी पक्षों से जवाब मांगा है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भावुक लोग (फोटो- PTI)

जस्टिस संजय कौल और जस्टिस एएस ओका की बेंच ने कहा ये 'मानवीय मुद्दा' है और इसका कारगर समाधान ढूंढने की जरूरत है.

क्या है पूरा मामला?

रेलवे की जिस 29 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जे की बात कही जा रही है, वो हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में गफूर बस्ती नाम की जगह है.

रेलवे का दावा है कि यहां पर 4 हजार 365 परिवारों ने अवैध कब्जा कर रखा है. यानी, तकरीबन 50 हजार लोग. 

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रेलवे ने 2.2 किलोमीटर लंबी पट्टी पर बने मकानों और दूसरे ढांचों को गिराने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. सूत्रों का कहना है कि जिस जगह से अतिक्रमण हटाया जाना है, वहां करीब 20 मस्जिदें, 9 मंदिर और स्कूल हैं.

उत्तराखंड हाईकोर्ट के अतिक्रमण हटाने के आदेश के बाद से ही लोग सड़कों पर हैं. बताया जा रहा है कि जिन लोगों के घर गिराए जाने हैं, उनमें ज्यादातर मुस्लिम हैं.

लोगों का क्या है कहना?

यहां रहने वाले कुछ लोगों का दावा है कि वो यहां 100 साल से भी लंबे समय से रह रहे हैं. उनका दावा है कि उनके पास यहां के सारे दस्तावेज भी हैं.

कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने नीलामी में यहां घर खरीदे हैं. उनका कहना है कि 1947 में बंटवारे के बाद जब लोग पाकिस्तान चले गए, तो सरकार ने उनके घरों की नीलामी की थी, जिसे उन्होंने खरीद लिया था.

लोगों का दावा है कि बनभूलपुरा में 29 एकड़ जमीन पर न सिर्फ घर हैं, बल्कि स्कूल, धार्मिक स्थल और दुकानें बनीं हैं.

सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर लोगों ने दावा किया है कि यहां के स्थानीय निवासियों का नाम नगर पालिका में भी दर्ज है और वो हाउस टैक्स भी भर रहे हैं.

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बताया जा रहा है कि जिन पर बुलडोजर चलना है उनमें स्कूल, अस्पताल, मंदिर, मस्जिद, घर और दुकानें शामिल हैं.

क्या रेलवे की है ये जमीन?

रेलवे आज जिस जमीन पर दावा कर रहा है, उस पर कभी राज्य सरकार ने भी दावा किया था. 2017 में सरकार बदलने के बाद सरकार ने अपना दावा छोड़ दिया.

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान रेलवे की ओर से पेश हुईं एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने रेलवे की जरूरतों के बारे में बताया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बारे में भी विचार करना होगा कि क्या ये पूरी जमीन रेलवे की ही है या कुछ हिस्से पर राज्य सरकार भी दावा कर रही है.

वहीं, विवादित जमीन पर रहने वाले लोगों का कहना है कि अगर ये रेलवे की जमीन है तो फिर राज्य सरकार यहां क्या कर रही है? यहां कई सारे सरकारी स्कूल हैं, सरकारी अस्पताल हैं, इंटर-कॉलेज हैं, क्या वो सब अब अवैध हो जाएंगे?

हालांकि, रेलवे दावा करता है कि उसके पास पुराने नक्शे हैं, 1959 का नोटिफिकेशन है, 1971 का रेवेन्यू रिकॉर्ड है और 2017 की सर्वे रिपोर्ट है.

स्थानीय लोगों ने कैंडल मार्च निकाला था. (फाइल फोटो-PTI)

अदालतों में कैसे पहुंचा मामला?

लगभग 10 साल पहले गौला नदी में अवैध रेत खनन का मामला उठा. तब ऐसा आरोप लगा कि नदी किनारे रहने वाले लोग ही अवैध खनन में शामिल है.

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लिहाजा, लोगों को यहां से हटाने के लिए 2013 में पहली बार हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई. 9 नवंबर 2016 को हाईकोर्ट ने 10 हफ्ते के अंदर अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया. हालांकि, इस आदेश को लागू नहीं किया गया.

पिछले साल हाईकोर्ट में फिर याचिका दायर हुई, जिसमें कहा गया कि रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया में देरी की गई. इस पर 20 दिसंबर 2022 को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बनभूलपुरा से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया. 

इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उनके पास वैध दस्तावेज हैं, लेकिन हाईकोर्ट ने इस पर गौर नहीं किया.

अब आगे क्या होगा?

फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है. इस मामले में अब 7 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. 

सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे, राज्य सरकार और सभी पक्षों से जवाब मांगा है. कुल मिलाकर 7 फरवरी तक तो अतिक्रमण को नहीं हटाया जा सकता.

जस्टिस कौल और जस्टिस ओका की बेंच ने कहा कि ये एक मानवीय मुद्दा है और इसका कारगर हल निकालने की जरूरत है. 50 हजार लोगों को ऐसे अचानक बेदखल नहीं किया जा सकता.

क्या कोई सियासी कनेक्शन भी?

2022 के विधानसभा चुनाव में हल्द्वानी सीट से कांग्रेस के सुमित हृदयेश ने जीत हासिल की थी. उन्होंने बीजेपी के उम्मीदवार को 7,814 वोटों से हराया था. 

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इस सीट पर लंबे समय से कांग्रेस का कब्जा रहा है. लोगों का कहना है कि बनभूलपुरा कांग्रेस का बड़ा गढ़ है और बीजेपी इसमें सेंध लगाना चाहती है.

हृदयेश ने न्यूज एजेंसी से कहा कि बनभूलपुरा में 100 साल से लोग रह रहे हैं. यहां 70 साल से भी ज्यादा पुरानी मस्जिद और मंदिर हैं. उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार ने कभी उत्तराखंड हाईकोर्ट को ये बताने की कोशिश नहीं कि यहां से हटाने के बाद लोगों का क्या होगा.

 

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