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जलते पहाड़, बेबस सरकार... क्यों हर साल उत्तराखंड की जंगलों में लगती है आग?

उत्तराखंड में वनाग्नि हर साल की समस्या बन गई, जिसकी वजह से प्रदेश में तापमान भी लगातार बढ़ रहा है.अब 584 वनाग्नि के मामले सामने आए हैं, जिसमे कुमाऊं को 322 मामलों के साथ सबसे अधिक प्रभावित माना जा रहा है. गढ़वाल में 211 वनाग्नि के मामले सामने आए, प्रशासनिक फॉरेस्ट क्षेत्र 51 मामले सामने आए हैं.

नैनीताल के जंगल में लगी भीषण आग. (फाइल फोटो) नैनीताल के जंगल में लगी भीषण आग. (फाइल फोटो)
अंकित शर्मा
  • नैनीताल,
  • 27 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 1:41 PM IST

गर्मी शुरू होते ही उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने का सिलसिला फिर से शुरू हो गया है. नैनीताल के पास नैनीताल-भवाली रोड पर जंगलों में भीषण आग लग गई है. जिससे जंगल का एक बड़ा हिस्सा और आईटीआई भवन चपेट में आ गया.

उत्तराखंड में वनाग्नि हर साल की समस्या बन गई, जिसकी वजह से प्रदेश में तापमान भी लगातार बढ़ रहा है. राज्य में इस साल अब तक 708 हेक्टेयर वन भूमि आग से नष्ट हो चुकी है. इसको लेकर कुछ मामले दर्ज भी किए गए हैं. उत्तराखंड में अब 584 वनाग्नि के मामले सामने आए हैं, जिसमे कुमाऊं को 322 मामलों के साथ सबसे अधिक प्रभावित माना जा रहा है. गढ़वाल में 211 वनाग्नि के मामले सामने आए, प्रशासनिक फॉरेस्ट क्षेत्र 51 मामले सामने आए हैं.

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नैनीताल और आसपास के क्षेत्र भी प्रभावित हुए हैं, जिसमे लगभग 100 हैक्टेयर भूमि वनाग्नि में जल कर खाक हो गई. कुमाऊं क्षेत्र में बागेश्वर क्षेत्र में भी लगातार वनाग्नि जारी है. मुख्यमंत्री पुष्कर धामी लगातार वनाग्नि पर नजर बनाए हुए हैं और अधिकारियों को 24 घंटे अलर्ट रहने का निर्देश दिया है. साथ ही सीएम आज हल्द्वानी में बैठक कर अधिकारियों से स्थिति का जायजा लेंगे.

 

 

यह भी पढ़ें: सुलगते पहाड़, धधकते जंगल और सांसों की तबाही... नैनीताल की हाईकोर्ट कॉलोनी तक पहुंची जंगल की आग, बुलाई गई सेना

हर साल होती ही वनाग्नि से तबाही

साल 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होकर अलग राज्य बने उत्तराखंड में अब तक 50 हजार हेक्टेयर जंगल भूमि को आग से भारी नुकसान हुआ है. दिसंबर, 2023 और जनवरी, 2024 में सर्दियों में भी 1006 आग चेतावनियां मिलीं थी. 

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वहीं, राज्य के वन मंत्री सुबोध ने हाल ही में आजतक से खास बातचीत करते हुए कहा था कि पहले जब सरकारें नहीं होती थी, तब भी वनाग्नि की घटनाएं होती थी और पहाड़ के लोग उस पर काबू पाते थे. अब जमाना बदल गया है और लोग पहाड़ और जंगलों से अलग हो रहे हैं. हमने 11230 वन पंचायतों का गठन किया, जिसमे 25 लाख लोग हमसे जुड़े हैं. जंगलों को बचाने के लिए उन्हें प्रोत्साहन मिले इसके लिय हमने 600 करोड़ की योजना के तहत उन्हें आयुर्वेदिक खेती की आजीविका से जोड़ा है.

क्यों लगती है पहाड़ों पर आग

पहाड़ों पर जंगल में आग लगने की कई कारण हैं, विशेषकर उत्तराखंड के ज्यादा तर इलाका के चीड़ के जंगलों से भरे हैं. चीड़ के पेड़ की पत्तियां ही आग के फैलने का मुख्य कारण हैं. दरअसल चीड़ के पेड़ के कई फायदे हैं तो कई नुकसान भी हैं. गर्मियों में चीड़ के पेड़ की पत्तियां सूख जाती हैं और इस दौरान तेज हवा चलते के कारण पेड़ों के आपस में टक्कराने से भी कई बार खुद-ब-खुद आग लग जाती है. उन्हीं पेड़ों से लेसी (चीड़ के पेड़ से निकलने वाला एक तरल पदार्थ) निकलता है, जिसमें पेट्रोल की तरह आग फैसलती है.

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दूसरा मुख्य कारण रास्तों से गुजरने वाले लोग कभी-कभी बीड़ी या सिगरेट पीते वक्त बिना ध्यान दिए माचिस की  तिल्ली या जली हुई सिगरेट-बिड़ी फेंक देते हैं. जिससे कभी-कभी आग लग जाती है.

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