
कोरोना वायरस के महामारी के चलते कई लोग बेरोजगार हो गए. इस महामारी का असर खेल जगत पर भी पड़ा. कोरोना की वजह से कई टूर्नामेंट रद्द हो गए जिसकी वजह से कई नेशनल और स्टेट लेवल के खिलाड़ियों को मजबूरी में मजदूरी और सब्जी बेचनी पड़ रही है. उत्तराखंड व्हीलचेयर क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान राजेंद्र सिंह धामी आजीविका के लिए मनरेगा में मजदूरी का काम करने के लिए मजबूर हैं.
विशेष रूप से विकलांग भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान राजेंद्र सिंह धामी बल्लेबाजी, गेंदबाजी सहित क्रिकेट के विभिन्न पहलुओं में विशेष रूप से दिव्यांग किशोरों को प्रशिक्षित कर रहे हैं. उनका कहना है कि मैंने अपने जीवन में कई 'दिव्यांग' लोगों को तनाव में आशा खोते हुए देखा है. मैं भी कभी इसी अंधेरे में रहा हूं लेकिन मैंने हार नहीं मानी.
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धामी दृढ़ संकल्प के साथ कहते हैं कि मैं अपने प्रयासों से दिव्यांग लोगों के जीवन को एक उद्देश्य देने पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूं, जिस पर वह सभी पकड़ बना सकें और हमेशा के लिए एक तारे की तरह चमकते रहे. इन दिनों धामी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत सड़क के निर्माण में इस्तेमाल किए जाने वाले पत्थरों को तोड़ने का काम कर रहे हैं.
राजेंद्र भारतीय व्हीलचेयर क्रिकेट टीम के कप्तान रह चुके हैं जिनकी उम्र 30 साल है. वह इस समय उत्तराखंड व्हीलचेयर क्रिकेट टीम के कप्तान थे. राजेंद्र सिंह धामी 90% दिव्यांग हैं. धामी 3 साल की उम्र में लकवा ग्रस्त हो गए थे. इसके बावजूद हिम्मत न हारते हुए उन्होंने अपने प्रदर्शन से कई पुरस्कार जीते हैं. उनका कहना है कि मैं दिव्यांग बच्चों को प्रशिक्षित करता था और भविष्य के टूर्नामेंट की तैयारी के लिए खुद अभ्यास करता था लेकिन कोरोना महामारी ने सब कुछ रोक दिया.
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राजेंद्र सिंह धामी ने इतिहास में मास्टर डिग्री ली है. साथ ही बीएड की डिग्री भी हासिल की है. उन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से वर्ष 2014 में विशेष रूप से विकलांग क्रिकेट टीम के बारे में पता चला. उनका कहना है कि शुरुआत में खेल के लिए जुनून से ज्यादा यह शौक था लेकिन जैसे-जैसे इसमें शामिल होता गया, खेल मेरी जिंदगी बन गया.