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ऑपरेशन सिल्क्यारा सुरंग के वो 7 'सुपरहीरो'... जिनके जज्बे ने बचाई 41 मजदूरों की जिंदगी

उत्तरकाशी में सुरंग से मजदूरों को निकालने का ऑपरेशन एक बड़ी टीम की मदद से ही सफल हो पाया है. ये एक टीम की कोशिशों की ही कमाल है, जिसने दुनिया के सबसे मुश्किल रेस्क्यू ऑपरेशन को कामयाब बना दिया. ऑपरेशन सुरंग के 7 सुपरहीरो ने सबसे बड़े और सबसे मुश्किल रेस्क्यू ऑपरेशन को सफल बना दिया.

ये तस्वीर नई उम्मीद और नई जिंदगी की है, रेस्क्यू टीम ने 41 मजदूरों को टनल से सुरक्षित निकाल लिया है ये तस्वीर नई उम्मीद और नई जिंदगी की है, रेस्क्यू टीम ने 41 मजदूरों को टनल से सुरक्षित निकाल लिया है
aajtak.in
  • उत्तरकाशी,
  • 29 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 12:02 AM IST

उत्तरकाशी में सबसे बड़े रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम देने वाली टीम पर देश गर्व महसूस कर रहा है. क्योंकि ये वो टीम है, जो पहाड़ का सीना चीरकर सुरंग के अंदर घुसती है. वहां फंसे हुए 41 मजदूरों को बाहर निकालकर लाती है और ये बताती है कि हौसला हो तो, पहाड़ भी झुक जाते हैं. ऑपरेशन सुरंग के 7 सुपरहीरो ने मिलकर सबसे बड़े और सबसे मुश्किल रेस्क्यू ऑपरेशन को सफल बना दिया. जानते हैं उन 7 सुपरहीरो के बारे में, जिन्होंने सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकालने के लिए ना सिर्फ सॉलिड स्ट्रैटजी बनाई, बल्कि चट्टान के सामने एक चट्टान की तरह रात और दिन डंटे रहे.

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ये हैं ऑपरेशन सुरंग के 7 सुपरहीरो

1- ऑपरेशन सुरंग के हीरो नंबर वन हैं रैट माइनर्स, जिन्होंने ऑगर मशीन टूटने के बाद उम्मीद टूटने नहीं दी और सबसे बड़ी कामयाबी दिला दी.
 
2- दूसरे हीरो हैं इंटरनेशनल टनलिंग एक्सपर्ट आर्नोल्ड डिक्स, इनको ऑस्ट्रेलिया से बुलाया गया. प्रोफेसर डिक्स भूमिगत और परिवहन बुनियादी ढांचे में विशेषज्ञ हैं. वो भूमिगत निर्माण से जुड़े जोखिमों पर सलाह देने के साथ-साथ भूमिगत सुरंग बनाने में दुनिया के टॉप विशेषज्ञों में से एक हैं.

3 - माइक्रो टनलिंग विशेषज्ञ क्रिस कूपर इस रेस्क्यू ऑपरेशन के तीसरे हीरो हैं, जैसे ही वो इस ऑपरेशन से जुड़े, उन्होंने लगातार टीम का हौसला बढ़ाया. माइक्रो टनलिंग एक्सपर्ट ने ऑगर मशीन से पहाड़ को भेदने का काम अपनी टीम से बखूबी करवाया. 

4- जब सिल्कयारा टनल में ऑगर मशीन फंसी, तो एक और हीरो सामने आता है, वो हैं प्रवीण कुमार यादव. मशीन को फिर से चालू करने के लिए 3 घंटे तक अथक परिश्रम किया.

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5- सिलक्यारा सुरंग बनाने वाली संस्था- नेशनल हाईवे इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट कॉर्पोरेशन के प्रबंध निदेशक महमूद अहमद भी इस ऑपरेशन के हीरो बनकर उभरे. एनडीआरएफ, एसडीआरएफ की टीमों के साथ मिलकर स्केप टनल और वर्टिकल ड्रिलिंग के काम को पूरा करने के लिए वो जुटे रहे.

6- PMO के पूर्व सलाहकार भास्कर खुल्वे रेस्क्यू ऑपरेशन के 7 सुपरहीरो में से एक हैं. उन्होंने टनल में अपने तजुर्बे का पूरा इस्तेमाल किया.

7- उत्तरकाशी टनल में फंसे 41 मजदूरों को बचाने के लिए भारतीय सेना ने भी बड़ा किरदार निभाया. जब सुरंग में खुदाई करते-करते मशीन टूट गई, तो सेना के 50 जवानों ने मलबा साफ करके मजदूरों को बाहर निकालने के लिए खुदाई का रास्ता बनाया.

यही वो 7 सुपरहीरो हैं, जिनके जज्बे ने 41 जिंदगियां बचा लीं

पढ़िए इन सातों सुपरहीरों की कहानी

41 मजदूरों ने पूरे 18 दिन बाद सुबह का पहला सूरज देखा, मजदूरों के परिवारों की खुशी का ठिकाना नहीं है. ऑपरेशन सुरंग के सबसे बड़े सुपरहीरो हैं रैट माइनर्स. जब अमेरिकन ऑगर मशीन टूट गई तो उन्होंने हाथों से सुरंग खोद डाली. 29 साल के मुन्ना कुरैशी वो रैट माइनर्स हैं, जिन्होंने अपनी रैट माइनिंग की कला दिखाकर कमाल कर दिया है. 17 दिन से सुरंग में फंसे मजदूरों को बाहर निकाल दिया. मुन्ना ने सुरंग के आखिरी हिस्से को खोदा तो 41 मजदूरों ने इन्हें गले से लगा लिया. मुन्ना कुरैशी दिल्ली की एक ट्रेंचलेस इंजीनियरिंग कंपनी में काम करते हैं. ये कंपनी सीवर लाइन और पानी की लाइनों की सफाई करती है. कुरैशी इस कंपनी की रैट माइनिंग टीम का हिस्सा हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके जज्बे को सलाम किया है, मुन्ना कह रहे हैं सुरंग खोदने के बाद उन्हें जो सम्मान मिला है, वो ज़िंदगी भर नहीं भूलेंगे. उन्होंने कहा कि 41 आदमियों के चक्कर में एक आदमी चला भी जाए तो दिक्कत नहीं होती. 41 लोगों के पीछे बहुत लोग होते हैं, मां-बहन-बच्चे सबको देखना होता है.

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रैट माइनर्स मुन्ना कुरैशी

कैसे हुई रैट माइनर्स की एंट्री

सुरंग में फंसे 41 मजदूरों तक पहुंचने के लिए सबकुछ ठीक-ठाक चलता है, अमेरिकी ऑगर ड्रिलिंग मशीन को हॉरिजोंटली 60 मीटर की खुदाई करनी थी. 47 मीटर खुदाई करने के बाद टनल के अंदर ऑगर मशीन का ब्लेड्स टूटता है, शाफ्ट टूट  जाती है. ऑगर मशीन पाइप के अंदर मलबे में बदल जाती है. टनल के बाहर खड़ी रेस्क्यू टीम के हाथ-पांव फूलने लगते हैं. दिलों की धड़कनें बढ़ जाती हैं. इंटरनेशनल टनलिंग एक्सपर्ट आर्नोल्ड डिक्स कहते हैं कि मजदूर क्रिसमस तक बाहर आएंगे. तब होती है रैट माइनर्स की एंट्री. वो रैट माइनर्स, जो हाथों से पहाड़ खोद डालते हैं या फिर कहें कि चूहों की तरह से खुदाई करते हैं. 21 घंटे में रैट माइनर्स ने 12 मीटर खुदाई कर दी और 26 घंटे में बची हुई खुदाई का पूरा मिशन खत्म कर मजदूरों को सुरंग से बाहर निकालने का रास्ता बना दिया. 400 घंटे बाद मजदूरों को सुरंग से बाहर निकालकर ही रैट माइनर्स से सुकून की सांस ली है. रैट माइनर्स की टीम को उत्तराखंड के सीएम धामी ने 50-50 हज़ार रुपए का इनाम दिया है. 

कैसे काम करते हैं रैट माइनर्स

- सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बचाने के लिए रविवार यानी 26 नवंबर को साइट पर 6 'रैट होल' माइनर्स की एंट्री होती है.
- रैट माइनर्स को प्राइवेट कंपनी ट्रेंचलेस इंजिनियरिंग सर्विसेज़ की ओर से बुलाया गया.
- ये दिल्ली समेत कई राज्यों में वाटर पाइपलाइन बिछाने के समय अपनी टनलिंग क्षमता का प्रदर्शन कर चुके हैं.
- उत्तरकाशी में इनके काम करने का तरीका 'रैट होल' माइनिंग से अलग था. इस काम के लिए केवल वही लोग बुलाए गए थे जो टनलिंग में माहिर हैं.
- 6-6 रैट माइनर्स की दो टीम, अपनी ड्रिल मशीनों के साथ, खुदाई में जुटती हैं, एक टीम में 2 रैट माइनर्स रहते हैं और पाइपलाइन में जाते हैं.
- एक आगे का रास्ता बनाता है और दूसरा मलबे को ट्रॉली में भरता है. अंदर के 2 लोग जब थक जाते हैं तो बाहर से दो अंदर जाते हैं. रैट माइनर्स की ये टीम वो कर दिखाती है, जिसका देश को इंतज़ार था. 41 मजदूर सुरंग से बाहर आ जाते हैं. रैट माइनर्स का अथक परिश्रम और कैसे वो इस पूरे मिशन के सुपरहीरो बने हैं.

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कौन हैं अर्नोल्ड डिक्स, जो बन गए सुपरहीरो

इस टीम के सुपरहीरो के तौर पर इंटरनेशनल टनलिंग एक्सपर्ट अर्नोल्ड डिक्स और इंटरनेशनल माइक्रो टनलिंग विशेषज्ञ क्रिस कूपर की भूमिका भी बहुत बड़ी है. जब कुछ समझ में नहीं आ रहा था, तब इस ऑपरेशन में अर्नोल्ड डिक्स और क्रिस कूपर की एंट्री होती है. सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को 8 दिन बीत चुके होते हैं. 20 नवंबर की सुबह एक बुजुर्ग व्यक्ति सीन में आता है. ये कोई आम शख्स नहीं बल्कि इंटरनेशनल टनलिंग एक्सपर्ट अर्नोल्ड डिक्स  थे. अर्नोल्ड डिक्स अपनी टीम के साथ टनल वाली चोटी के ऊपर मुआयना करते हुए नज़र आते हैं. अर्नोल्ड ऑस्ट्रेलिया के नागरिक हैं. स्विट्ज़रलैंड के इंटरनैशनल टनलिंग ऐंड अंडरग्राउंड स्पेस एसोसिएशन यानी जेनेवा के प्रमुख हैं. 3 दशकों से भूमिगत निर्माण की सुरक्षा के इर्द-गिर्द काम कर रहे हैं. उत्तरकाशी जैसी घटनाओं की तरह ही उन्हें भूमिगत निर्माण से संबंधित क़ानूनी, तकनीकी और पर्यावरणीय एक्सपर्टीज़ के लिए तलब किया जाता है.

अर्नोल्ड डिक्स

क्रिस कूपर की क्या थी ऑपरेशन सुरंग में भूमिका

एक और विदेशी ऑपरेशन सुरंग का सुपरहीरो बना. इनका नाम है क्रिस कूपर. ये भी ऑस्ट्रेलियाई हैं, क्रिस कूपर ने माइक्रो टनलिंग विशेषज्ञ के तौर पर बड़ी भूमिका निभाई. उन्होंने लगातार रेस्क्यू टीम के साथ काम किया. उन्हें कार्य को तेजी से पूरा कराए जाने पर जोर दिया. माइक्रो टनलिंग विशेषज्ञ के तौर पर जुड़ने के बाद उन्होंने लगातार टीम को मोटिवेट किया. क्रिस कूपर ने ऑगर मशीन की ड्रिलिंग पर पूरी तल्लीनता के साथ काम किया.

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प्रवीण ने झोंक दी थी पूरी ताकत

अब बात करते हैं एक और सुपरहीरो की. उनका नाम है प्रवीण यादव, जब छोटे पाइपों में NDRF के जवान नहीं जा पा रहे थे, तब प्रवीण ने जान जोखिम में डाली और रेस्क्यू ऑपरेशन को सफल बनाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी. जब ऑगर ड्रिल मशीन के रास्ते एक लोहे का गार्डर आया, तब वो 45 मीटर से अधिक दूरी तक पाइप में रेंगते हुए मोर्चे पर पहुंचे. यहां पहुंचने के बाद उन्होंने मशीन को फिर से चालू करने के लिए 3 घंटे तक अथक परिश्रम कर गैस कटर की मदद से पाइप को काटा. प्रवीण यादव बताते हैं कि गैस कटर का उपयोग करते समय चिंगारी उनके चेहरे और शरीर पर लग रही थीं, लेकिन उनके पास एक सुरक्षा जैकेट, दस्ताने, चश्मा और एक हेलमेट था. उन्होंने कहा कि उस वक्त हमारा अनुभव काम आया, हमें पता था कि किस कोण पर काटना है, ताकि खतरा कम से कम हो. प्रवीण यादव को 14 साल का तजुर्बा है. उन्हें साथी मैकेनिक बलविंदर के साथ इस ऑपरेशन को चलाया.

इन सुपरहीरो ने सूझबूझ से दिखाया कमाल

ऑपरेशन सुरंग के 2 और सुपरहीरो हैं. पीएमओ के पूर्व सलाहकार भास्कर खुल्वे और एनएचआईडीसीएल के प्रबंध निदेशक महमूद अहमद. इन दोनों ने ऑपरेशन में बड़ी भूमिका निभाई. महमूद अहमद, सिलक्यारा सुरंग बनाने वाली संस्था नेशनल हाईवे इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट कॉर्पोरेशन यानी NHIDCL के प्रबंध निदेशक. इस पूरे रेस्क्यू ऑपरेशन में महमूद ने भी अहम भूमिका निभाई. इस अभियान के दौरान वे लगातार अभियान के हर पहलू को मीडिया के सामने रखा. साथ ही टनल निर्माण से संबंधित तमाम जानकारियों  को रेस्क्यू ऑपरेशन में लगने वाली टीमों से साझा करते रहे. 

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महमूद अहमद ने तैयार किए प्लान

शुक्रवार यानी 24 नवंबर को मजदूरों की लोकेशन से महज 10 मीटर पहले मशीन की ब्लेड्स टूट गए. इस वजह से रेस्क्यू रोकना पड़ा, मलबे में ड्रिलिंग मशीन का 13.9 मीटर लंबा ब्लेड फंसा था, इसे लेजर और प्लाज्मा कटर से काटकर बाहर निकाला गया. ड्रिलिंग मशीन के सामने सरिया आ जाने से ड्रिलिंग मशीन की शाफ्ट उसमें फंस गई, प्रेशर डाला गया तो शाफ्ट टूट गई. ऐसे में महमूद ने देश और मजदूरों के परिवारों का हौसला बढ़ाया और ये भी बताया कि उनके पास एक के बाद एक कई प्लान हैं.

खुल्वे के अनुभवों का मिला लाभ

इस कामयाबी के पीछे पीएमओ के पूर्व सलाहकार भास्कर खुल्वे का नाम भी आता है. उन्होंने टनल में अपनी एक्सपर्टाइज का पूरा उपयोग किया. आगे की रणनीति क्या होगी, खुल्वे ये बताते रहे. भास्कर खुल्वे रेस्क्यू ऑपरेशन से संबंधित बाधाओं को लेकर वैज्ञानिक तरीके से अपनी बात रखते नजर आए. उन्होंने रेस्क्यू टीम को भी अपने अनुभवों का लाभ दिया.

NDRF-SDRF, BRO की मेहनत लाई रंग

उत्तरकाशी में सुरंग से मजदूरों को निकालने का ऑपरेशन एक बड़ी टीम की मदद से ही सफल हो पाया है. ये एक टीम की कोशिशों की ही कमाल है, जिसने दुनिया के सबसे मुश्किल रेस्क्यू ऑपरेशन को 17 दिन में कामयाब बना दिया. इस बचाव अभियान में 652 कर्मचारी लगे. 189 पुलिसकर्मी, 106 स्वास्थ्यकर्मी, एनडीआरएफ के 62 सदस्य, एसडीआरएफ के 39 सदस्य, आईटीबीपी की दो कंपनियों के 77 जवान, एक दर्जन फायरमैन, यूपी बिजली विभाग के कर्मचारियों की बड़ी टीम, 38 सीमा सड़क संगठन यानी बीआरओ के कर्मचारी लगे. 

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