
देवभूमि उत्तराखंड के चमोली में रविवार को कुदरत ने ऐसा कहर बरपाया कि देखने वाले सहम गए. ग्लेशियर टूट जाने के कारण चमोली में काफी नुकसान हुआ है. कई पुल के साथ दो पावर प्रोजेक्ट्स भी तबाह हो गए हैं. 15 शव बरामद किए जा चुके हैं जबकि 200 से ज्यादा लोग लापता हैं. स्थानीय प्रशासन से लेकर सेना तक अब रेस्क्यू में जुटी है और राज्य-केंद्र सरकार मिलकर काम कर रही हैं. ग्लेशियर टूटने से बड़ा नुकसान ऋषि गंगा हायड्रो प्रोजेक्ट को भी हुआ है. आइए आपको बताते हैं इस प्रोजेक्ट से जुड़े विवाद और कुछ खास बातें.
नीति घाटी का रैणी गांव धौलीगंगा और ऋषि गंगा का संगम स्थल है. ऋषि गंगा पर 13 मेगावाट की जल विद्युत परियोजना है. ऋषिगंगा प्रोजेक्ट को साल 2011 में कमीशन किया गया था. इसके बाद साल 2016 में जब इसे नुकसान पहुंचा तो बिजली उत्पादन बंद हो गया. इसके बाद, एनसीएलटी के माध्यम से कुंदन समूह ने अपना कार्यभार संभाला. जून 2020 में इसे फिर से शुरू किया गया.
विवादों से भी रहा नाता
करीब दो साल पहले रैणी गांव के लोगों ने उत्तराखंड हाई कोर्ट में कहा था कि ऋषि गंगा हायड्रो प्रोजेक्ट के निर्माण के कारण उन्हें नुकसान हो सकता है. 7 फरवरी 2021 को उनका ये डर हकीकत में बदल गया. उनके घर से महज कुछ ही मीटर पर स्थित यह हायड्रो प्रोजेक्ट ग्लेशियर टूटने के कारण पानी के सैलाब में ताश के पत्तों की तरह बह गया.
साल 2019 की गर्मियों में ग्रामीणों ने उत्तराखंड हाई कोर्ट में एक पीआईएल दायर की थी. इसके बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को यह आदेश दिया कि वह इस चीज की जांच करे कि चमोली के रैणी गांव में हायड्रो प्रोजेक्ट के निर्माण को लेकर क्या हो रहा है.
पत्थर तोड़ने के कारण हाई कोर्ट ने जनहित याचिका में लगाए गए पर्यावरण संबंधी आरोपों और स्थानीय लोगों पर पड़ने वाले प्रभाव के संबंध में चमोली के जिला मजिस्ट्रेट और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव को प्रोजेक्ट साइट का निरीक्षण करने के लिए एक संयुक्त टीम गठित करने का निर्देश दिया था. अदालत ने अगले आदेश तक परियोजना क्षेत्र में पत्थर तोड़ने पर भी रोक लगा दी थी.
रैणी गांव स्थित प्रोजेक्ट साइट नंदा देवी बायोस्फेयर रिजर्व में आता है. नंदा देवी नेशनल पार्क से यह कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर है. चिपको आंदोलन शुरू करने वाली गौरा देवी रैणी गांव की ही रहने वाली थीं. मार्च 1973 को इसी इलाके से ही उन्होंने चिपको आंदोलन की शुरुआत की थी. गांव की अनुसूचित जाति की ओर से कुंदन सिंह ने एक याचिका दायर की थी. इसमें कहा गया था कि पत्थर तोड़ने और ब्लास्टिंग के कारण जंगली जानवर भागकर रैणी गांव में आ जाते हैं.
कई पर्यावरणविद् भी जता चुके हैं चिंता
कई पर्यावरणविद जैसे भरत झुनझुनवाला और रवि चोपड़ा कई बार यह सवाल उठा चुके हैं कि उत्तराखंड में लगातार बनाए जा रहे डैम के कारण गंगा नदी और स्थानीय पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंच रहा है. चोपड़ा ने कहा था, 'कोई भी यहां आकर विकास के नाम पर हायड्रो प्रोजेक्ट के लिए पहाड़ों में ब्लास्ट करता है. कोई भी इसका पर्यावरण पर असर और स्थानीय लोगों पर उसके प्रभाव के बारे में नहीं सोचता है. ग्लेशियर टूटने के कारण आया सैलाब भी इसी का उदाहरण है, जो हमने पर्यावरण के साथ गलत किया है.'
रैणी गांव के वकील अभिजय नेगी ने कहा कि 2005 से ऋषि गंगा परियोजना के समर्थकों ने नदी के तल पर पत्थर तोड़ने और वहां के इलाके में विस्फोट करने जैसी खतरनाक पर्यावरण गतिविधियां शुरू कीं, जिससे जंगली जानवरों को नंदा देवी बायोस्फेयर से भागकर रैणी गांव में आने के लिए मजबूर होना पड़ा. नेगी ने कहा कि रैणी गांव के लोगों ने पहले ही अनहोनी की आशंका जताई थी कि उनके इलाके में चीजें अच्छी नहीं है. कोर्ट के दो आदेशों के बाद भी सरकार ने कुछ नहीं किया.