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मशीनें हुईं नाकाम तो रैट माइनर्स ने हाथों से ही खोद डाला पहाड़... ऑपरेशन सिल्क्यारा फतह की पूरी कहानी

उत्तरकाशी की सुरंग में फंसे इन मजदूरों को निकालने की खुशखबरी देश को मंगलवार को दिन में ही मिल गई, कि किसी भी पल मजदूर बाहर आ सकते हैं. लेकिन ऑपरेशन को सफलतापूर्वक पूरा होने में देर शाम हो गई. और शाम 7.47 बजे पहला मजदूर निकाला. जहां एक ओर इस ऑपरेशन में सारी मशीनें फेल हो गईं तो वहीं इस चट्टान को चीरने में सिर्फ भारतीय मजदूर ही काम आए. जहां मशीनी ताकत खत्म हो गई, वहां मानव का साहस काम आया है.

सुरंग से बाहर आए सभी 41 मजदूर सुरंग से बाहर आए सभी 41 मजदूर
aajtak.in
  • उत्तरकाशी,
  • 28 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 7:01 AM IST

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में वो जंग जीत ली गई है, जहां पिछले 17 दिनों से 41 मजदूरों की जान फंसी हुई थी. गौर करने वाली बात यह है कि जहां एक ओर इस ऑपरेशन में सारी मशीनें फेल हो गईं तो वहीं इस चट्टान को चीरने में सिर्फ भारतीय मजदूर ही काम आए. जहां मशीनी ताकत खत्म हो गई, वहां मानव का साहस काम आया है.

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सुरंग के सिलक्यारा छोर से हॉरिजोंटली खुदाई कर रही अमेरिकन ऑगर ड्रिलिंग मशीन, सुरंग के अंदर ही टूट जाती है. क्योंकि ऑगर मशीन से ही 41 मजदूरों के सफल रेस्क्यू ऑपरेशन की उम्मीद जगी थी. लेकिन 47 मीटर ड्रिलिंग करने के बाद, ऑगर मशीन का ब्लेड टूट जाता है. सबको लगा कि ये तो बहुत ही बड़ा झटका है, फिर सेना बुलाई जाती है और 50 जवान रेस्क्यू टीम के साथ मिलकर ऑगर मशीन का मलबा पाइप में से निकालते हैं. इसके बाद शुरू होती है रैट माइनिंग, यानी चूहों की तरह पहाड़ की खुदाई. या ऐसे समझें कि हाथों से पहाड़ की खुदाई. 

26 नवंबर से रैट माइनर्स ने शुरू किया ऑपरेशन

सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बचाने के लिए रविवार यानी 26 नवंबर को साइट पर 6 'रैट होल' माइनर्स की एंट्री होती है. इन रैट माइनर्स को प्राइवेट कंपनी ट्रेंचलेस इंजिनियरिंग सर्विसेज की ओर से बुलाया गया. ये दिल्ली समेत कई राज्यों में वाटर पाइपलाइन बिछाने के समय अपनी टनलिंग क्षमता का प्रदर्शन कर चुके हैं. उत्तरकाशी में इनके काम करने का तरीका 'रैट होल' माइनिंग से अलग था. इस काम के लिए केवल वही लोग बुलाए गए थे जो टनलिंग में माहिर हैं.

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2-2 करके अंदर गए रैट माइनर्स

रैट माइनर्स की टीम ड्रिल मशीनों के साथ पहुंचती है, इन्हीं की मदद से मलबे की खुदाई कर रास्ता बनाया जाता है. 2 रैट माइनर्स पाइपलाइन में जाते हैं. एक आगे का रास्ता बनाता है और दूसरा मलबे को ट्रॉली में भरता है. अंदर के दो लोग जब थक जाते हैं तो बाहर से दो अंदर जाते हैं.

उत्तरकाशी टनल रेस्क्‍यू में रैट माइनर्स की दिलेरी ने उम्मीदों को पंख दिए हैं. रेस्क्यू साइट पर उनकी एंट्री कुछ वैसे ही हुई, जैसे फिल्म में हीरो की होती है. सब मामला फंस जाने पर हीरो आता है और सब ठीक कर देता है. उत्तरकाशी की सुरंग में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने में इन माइनर्स की भूमिका किसी नायक सरीखी ही है. इनकी मेहनत रंग लाई.

7:47 बजे निकला पहला मजदूर

इन मजदूरों को निकालने की खुशखबरी देश को मंगलवार को दिन में ही मिल गई, कि किसी भी पल मजदूर बाहर आ सकते हैं. लेकिन ऑपरेशन को सफलतापूर्वक पूरा होने में देर शाम हो गई. और शाम 7.47 बजे पहला मजदूर निकाला. 

रात 7.55 बजे 5 मजदूर निकाले गए. रात 8.05 बजे 9 मजदूर निकाले गए. रात 8.17 बजे 22 मजदूर निकाले. रात 8.27 बजे 33 मजदूर निकाले. रात 8.36 बजे सभी 41 मजदूर निकाले गए. 

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सुरंग से मजदूरों के बाहर निकलने की पहली तस्वीर रात 8.01 बजे सामने आई. मजदूरों को सुरंग से बाहर लाने का वीडियो भी रात 8.05 बजे सामने आया.  इस रेस्क्यू ऑपरेशन में बीते 17 दिनों से सैकड़ों लोग लगे हुए थे. आपको बता दें कि कुल 652 लोग बचाव अभियान का हिस्सा थे. 

106 - स्वास्थ्यकर्मी

189 - पुलिस अधिकारी

39 - एसडीआरएफ

62 - एनडीआरएफ

17 - आईटीबीपी 35 बीएन

60 - आईटीबीपी 12 बीएन

12 - फायर मैन उत्तरकाशी

7- वायरलेस पुलिस

24-डीडीएमए

46 - जल संस्थान उत्तरकाशी

7- जल निगम को भुगतान करें

9-डीएसओ उत्तरकाशी

3 सूचना विभाग

32 - यूपीसीएल

1 - सीडी पीडब्लूडी चिन्यालिसोर

यह ऑपरेशन इतना भी आसान नहीं रहा. सरकारों और तमाम बचावकर्मियों को इस सफलता को पाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी है. कई एजेंसियों के लगभग 17 दिनों के गहन प्रयासों के बाद, उत्तराखंड की सिल्कयारा सुरंग में फंसे सभी 41 श्रमिकों को मंगलवार को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रात में सफल ऑपरेशन की सराहना करते हुए देश का नेतृत्व किया.

अब इस ऑपरेशन की टाइमलाइन समझ लेते हैं,

12 नवंबर: दिवाली के दिन सुबह लगभग 5.30 बजे भूस्खलन के बाद ब्रह्मखाल-यमुनोत्री राजमार्ग पर निर्माणाधीन सिल्क्यारा-दंदालगांव सुरंग का एक हिस्सा ढह जाने से मजदूर फंस गए.

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एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, बीआरओ, परियोजना निष्पादन एजेंसी एनएचआईडीसीएल और आईटीबीपी सहित कई एजेंसियों ने बचाव प्रयास शुरू कर दिए हैं और एयर-कंप्रेस्ड पाइप के जरिए फंसे हुए मजदूरों को ऑक्सीजन, बिजली और खाने की आपूर्ति करने की व्यवस्था की गई है.

13 नवंबर: फंसे हुए श्रमिकों से ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाली पाइप के जरिए संपर्क स्थापित किया गया और उनके सुरक्षित होने की सूचना दी गई. ऊपर से ताजा मलबा गिरता रहता है जिसके कारण लगभग 30 मीटर के क्षेत्र में जमा हुआ मलबा 60 मीटर तक फैल जाता है.

14 नवंबर: 800- और 900-मिलीमीटर व्यास के स्टील पाइपों को होरिजोन्टल खुदाई के लिए ऑगर मशीन की मदद से मलबे के जरिए डालने के लिए सुरंग स्थल पर लाया गया. हालांकि, इस दौरान दो मजदूरों को मामूली चोटें आईं.

15 नवंबर: पहली ड्रिलिंग मशीन से असंतुष्ट, NHIDCL ने एक अत्याधुनिक ऑगर मशीन की मांग की, जिसे ऑपरेशन में तेजी लाने के लिए दिल्ली से हवाई मार्ग से लाया जाता है.

16 नवंबर: ड्रिलिंग मशीन को असेंबल और स्थापित किया गया. यह आधी रात के बाद काम करना शुरू कर देता है.

17 नवंबर: मशीन दोपहर तक 57 मीटर के मलबे के बीच लगभग 24 मीटर ड्रिल करती है और चार एमएस पाइप डाले जाते हैं. जब पांचवां पाइप किसी बाधा से टकराता है तो ऑपरेशन कुछ समय के लिए रुक गया. बचाव प्रयासों के लिए एक और उच्च प्रदर्शन वाली ऑगर मशीन को नीचे लाया गया. शाम को पांचवें पाइप की पोजीशनिंग के दौरान सुरंग में बड़ी चटकने की आवाज सुनाई दी आसपास के क्षेत्र में और अधिक ढहने की आशंका के डर से ऑपरेशन को तत्काल रोक दिया गया.

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18 नवंबर: शनिवार को ड्रिलिंग फिर से शुरू नहीं हुई क्योंकि विशेषज्ञों का मानना था कि सुरंग के अंदर डीजल चालित 1,750-हार्स पावर अमेरिकी ऑगर द्वारा उत्पन्न कंपन के कारण अधिक मलबा गिर सकता है, जिससे बचाव कर्मियों के जीवन को खतरा हो सकता है. पीएमओ के अधिकारियों और विशेषज्ञों की एक टीम विकल्पों की खोज रही थी, जिन्होंने फंसे हुए मजदूरों को बचाने के लिए सुरंग के ऊपर से वर्टिकल ड्रिलिंग सहित एक साथ पांच एग्जिट प्लान पर काम करने का फैसला लिया.

19 नवंबर: ड्रिलिंग निलंबित रही, जबकि बचाव अभियान की समीक्षा करने वाले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि विशाल ऑगर मशीन के साथ होरिजोंटल रूप से बोरिंग करना सबसे अच्छा विकल्प प्रतीत होता है.

20 नवंबर: पीएम नरेंद्र मोदी ने ऑपरेशन का जायजा लेने के लिए सीएम पुष्कर धामी से फोन पर बात की. हालाकि, टीम ने अभी तक होरिजोंटल ड्रिलिंग को फिर से शुरू नहीं किया था जो ऑगर मशीन की प्रगति को अवरुद्ध करने वाली एक चट्टान दिखाई देने के बाद निलंबित कर दी गई थी.

21 नवंबर: बचावकर्मियों ने फंसे हुए मजदूरों का पहला वीडियो जारी किया गया. पीले और सफेद हेलमेट पहने हुए कार्यकर्ता पाइपलाइन के जरिए भेजे गए खाद्य पदार्थों को प्राप्त करते हुए और एक-दूसरे से बात करते हुए दिखाई दिए. सुरंग के बालकोट-छोर पर दो विस्फोट किए गए, जिससे एक और सुरंग खोदने की प्रक्रिया शुरू होती है - जो सिल्कयारा की साइड से ड्रिलिंग का एक विकल्प था. लेकिन विशेषज्ञों ने कहा कि इस दृष्टिकोण में 40 दिन तक का समय लग सकता है. एनएचआईडीसीएल ने सिल्क्यारा छोर से होरिजोंटल बोरिंग ऑपरेशन रात भर फिर से शुरू किया जिसमें एक ऑगर मशीन शामिल थी.

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22 नवंबर: 800 मिमी व्यास वाले स्टील पाइपों की होरिजोंटल ड्रिलिंग लगभग 45 मीटर तक पहुंच गई और लगभग 57 मीटर के मलबे के हिस्से में केवल 12 मीटर शेष रह गया. एम्बुलेंस को स्टैंडबाय पर रखा गया है. हालांकि, देर शाम के घटनाक्रम में, ड्रिलिंग में बाधा आती है जब कुछ लोहे की छड़ें ऑगर मशीन के रास्ते में आ जाती हैं.

23 नवंबर: लोहे की बाधा को हटा दिया गया जिसके कारण ड्रिलिंग में छह घंटे की देरी हुई. अधिकारियों का कहना है कि ड्रिल से 48 मीटर बिंदु तक पहुंच गया है. लेकिन जिस प्लेटफॉर्म पर ड्रिलिंग मशीन टिकी हुई थी, उसमें दरारें दिखाई देने के बाद जाहिरा तौर पर मलबे के जरिए बोरिंग को फिर से रोक दिया गया है.

24 नवंबर: 25 टन की मशीन को फिर से शुरू किया गया और ड्रिलिंग फिर से शुरू की गई. हालांकि, एक ताजा बाधा में, ड्रिल एक धातु गर्डर से टकराई जिससे ऑपरेशन फिर से रुक जाता है.

25 नवंबर: मलबे में ड्रिलिंग करने वाली ऑगर मशीन के ब्लेड मलबे में फंस गए, जिससे अधिकारियों को उन विकल्पों पर विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिससे बचाव कार्य में कई दिन, यहां तक ​​कि सप्ताह भी लग सकते थे. अधिकारी अब दो विकल्पों पर विचार कर रहे थे: मलबे के शेष 10-12 मीटर में मैन्युअल ड्रिलिंग या ऊपर से 86 मीटर नीचे ड्रिलिंग.

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26 नवंबर: वैकल्पिक निकास मार्ग बनाने के लिए 19.2 मीटर की वर्टिकल ड्रिलिंग की गई. जैसे-जैसे ड्रिलिंग आगे बढ़ी, एग्जिट रूट बनाने के लिए 700 मिमी चौड़े पाइप डाले गए.

27 नवंबर: रैट-होल खनन विशेषज्ञों को बचावकर्ताओं की सहायता के लिए बुलाया गया, जिन्हें लगभग 10 मीटर मलबे को होरिजोंटल रूप से खोदने की जरूरत थी. इसके साथ ही सुरंग के ऊपर से वर्टिकल ड्रिलिंग करके 36 मीटर की गहराई तक पहुंचा दिया गया है.

28 नवंबर: रैट-होल खनन विशेषज्ञ शाम लगभग 7 बजे मलबे के आखिरी हिस्से को तोड़ते हैं. एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के जवान फंसे हुए श्रमिकों तक पहुंचने के लिए स्टील शूट में अंदर घुसे और उन्हें एक-एक करके व्हील-स्ट्रेचर पर बाहर निकालना शुरू किया. थोड़ी ही देर में मजदूरों को बाहर निकाल लिया गया. 

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