आसनसोल में दंगे की आग तो बुझ गई, लेकिन तपिश अब भी तेज है. लोग घरों को लौट रहे हैं, लेकिन डरे हैं, सहमे हैं. इंसान-इंसान पर भरोसा नहीं कर पा रहा है. और ये भी नहीं पता है कि भरोसा कब बन पाएगा.