भारतीय सेना ने एक बार फिर ये जता दिया है कि हर घर से ताल्हा निकलेगा तो हर घर में घुस कर मारेंगे. और ये तब है जब केंद्र के वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा अभी कश्मीर पहुंचे ही हैं. विपक्ष सवाल उठा रहा है कि सरकार जब ये तय ही नहीं कर पाई कि मामले से संबंधित पक्ष हैं कौन कौन, तो बातचीत किससे होगी ? तस्वीर साफ़ है. बोली का जवाब बोली है. गोली का जवाब गोली है.
180 से ज़्यादा आतंकवादियों को मौत के घाट उतार देने के बाद - क्या घाटी में बातचीत के लिए माहौल बन गया है? क्या एक तरफ गोली और एक तरफ बोली से कश्मीर में अमन-चौन लौट आएगा ? मसूद अज़हर के भांजे की मौत के बाद, आतंकवादियों को आज़ादी की लड़ाई के परवाने बताने वाले हुर्रियत और अलगाववादी नेताओं की आंखें खुलेंगी ? और सबसे बड़ी बात - हाईटेक हथिय़ारों के साथ पाकिस्तान से आ रहे आतंकवादी दुनिया को दिखाई देंगे या नहीं ?