जिस्म जख्मी, सांसें मशीनों के सहारे, जुुबान खामोश क्योंकि मशीनोंं ने मुंह बंद कर रखा था. खाना खा नहीं सकती थी. क्योंकि जिस पेट में खाना पहुंचता है वो पेट भी घायल था. खुद डाॅक्टर हैरान थे कि वो जी कैसे रही है? और फिर खुद ही डाॅक्टर इसका राज भी खोल रहे थे कि वो जीना चाहती थी. जीतना चाहती थी. 16 दिसंबर 2012 की उस रात से लेकर आजतक निर्भया की जिंदगी, मौत और इंसाफ की लड़ाई में हर मोड़, हर कदम पर आजतक लगातार साथ रहा. हैवानियत 16 दिसंबर 2012 की रात हुई थी, लेकिन हैवानियत की पूरी कहानी 17 दिसंबर 2012 की सुबह दिल्ली के सामने आई. इसके बाद तो जिसने भी हैवानियत की दास्तान सुनी, वही कांप उठा. देखते ही देखते दिल्ली से लेकर देश तक सिहर उठा. किसी लड़की के साथ दरिंदगी की ऐसी कहानी ना इससे पहले किसी ने सुनी थी, ना सुनाई थी. दरिंदगी की इसी इंतेहा को देखते हुए और रेप पीड़ित की पहचान को छुपाते हुए मीडिया ने तब उसे एक नया नाम दिया- निर्भया.