मोदी का उदय और तीन साल का कामकाज भले ही मोदी के लिए और भाजपा के लिए एक स्वर्णिम समय हो लेकिन इसी पार्टी के लिए सांगठनिक रूप से यह समय कई तरह के सवालों को भी अपने गर्भ में समेटे हुए है. हालांकि जीत के बुखार में भाजपा चमचमाती ही नज़र आएगी लेकिन विचार को व्यक्ति से बड़ा और संगठन को नेतृत्व से बड़ा बताने वाली पार्टी फिलहाल एक व्यक्ति की सत्ता बन गई है. सांगठनिक विकास की दृष्टि से यह बहुत अच्छी स्थिति नहीं है. मोदी के विकल्प के तौर पर जननायक भाजपा के पास हैं नहीं और जिनकी फौज आज पार्टी चला रही है, उनसे मोदी के करिश्मे को दोहरा पाने की उम्मीद बेकार है.