डीयू परिसरों में स्वतंत्र चिंतन की वकालत करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि अशांति की संस्कृति का प्रचार करने के बदले छात्रों और शिक्षकों को चर्चा एवं बहस में शामिल होना चाहिए. इसके अलावा उन्होंने कहा कि छात्रों में तार्किक बहस हो.उन्होंने कहा कि छात्रों को अशांति और हिंसा के भंवर में फंसा देखना दुखद है.