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गोकशी, मॉब लिचिंग और 5 साल तक ट्रायल..., हापुड़ केस में 10 दोषियों को उम्रकैद और 58-58 हजार रुपए जुर्माना

यूपी के हापुड़ की स्थानीय कोर्ट ने गोकशी की झूठी अफवाह फैलाने पर इन 10 लोगों को 45 वर्षीय कासिम की हत्या और समयदीन (62) पर हमला करने का दोषी ठहराया है. सरकारी वकील विजय चौहान के मुताबिक, कोर्ट ने सभी दोषियों पर 58-58 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है. अभियोजन पक्ष ने दलील दी कि पीड़ित पक्ष की दोषियों से कोई दुश्मनी नहीं थी.

2018 में हापुड़ मॉब लिंचिंग केस में यह तस्वीर सामने आई थी. (फाइल फोटो) 2018 में हापुड़ मॉब लिंचिंग केस में यह तस्वीर सामने आई थी. (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 13 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 2:52 PM IST

उत्तर प्रदेश के हापुड़ की एक स्थानीय अदालत ने मंगलवार को 2018 मॉब लिंचिंग केस में सभी 10 लोगों को दोषी ठहराया है और आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. कोर्ट ने दोषियों पर 58-58 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है. 6 साल पहले भीड़ के हमले में कासिम की जान चली गई थी, लेकिन उसके घायल साथी समयदीन की जोरदार पैरवी ने उसे न्याय दिलवा दिया और दोषियों को जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया. कासिम और समयदीन पर भीड़ ने गोकशी के शक में हमला कर दिया था और उस भीड़ को इन दोषियों ने उकसाया था.

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यह पूरा मामला हापुड़ जिले के पिलखुवा गांव का है. कासिम अपने साथी समयदीन के साथ पशुओं की खरीदारी का व्यापार करता था. 16 जून 2018 को दोनों गांव जा रहे थे. रास्ते में भीड़ ने उन्हें गोकशी के शक में बुरी तरह पीट दिया. इसमें कासिम की मौत हो गई थी. जबकि समयदीन गंभीर रूप से घायल हो गया था. हापुड़ की अतिरिक्त जिला जज (POCSO) श्वेता दीक्षित की अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद मंगलवार को फैसला सुनाया. स्थानीय कोर्ट ने धौलाना के बझैड़ा गांव के राकेश, हरिओम, युधिष्ठिर, रिंकू, करनपाल, मनीष, ललित, सोनू, कप्तान और मांगेराम को दोषी पाया है. 

यह भी पढ़ें: हापुड़ मॉब लिंचिंग: SC का आदेश- आईजी करें जांच की निगरानी

पीड़ित पक्ष ने कहा था, दोषियों को मौत की सजा दी जाए

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कोर्ट ने गोकशी की झूठी अफवाह फैलाने पर इन 10 लोगों को 45 वर्षीय कासिम की हत्या और समयदीन (62) पर हमला करने का दोषी ठहराया है. सरकारी वकील विजय चौहान के मुताबिक, कोर्ट ने सभी दोषियों पर 58-58 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है. अभियोजन पक्ष ने दलील दी कि पीड़ित पक्ष की दोषियों से कोई दुश्मनी नहीं थी. वे सिर्फ न्याय चाहते हैं. उन्होंने कोर्ट से दोषियों को मौत की सजा ना देने का भी अनुरोध किया था. परिवार का कहना था कि 16 जून को किसी ने फोन कर कासिम को पशु खरीदने के लिए बुलाया था. बाद में पता चला कि उनकी हत्या कर दी गई.

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'सुप्रीम कोर्ट पहुंचा समयदीन और पुलिस जांच में आई तेजी'

सरकारी वकील चौहान ने बताया कि पुलिस ने इस घटना को बाइक एक्सीडेंट का एंगल देते हुए झूठी एफआईआर दर्ज की थी, लेकिन समयदीन के सुप्रीम कोर्ट जाने के बाद जांच पटरी पर आई. समयदीन ने 2018 में सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की थी. उसके बाद कोर्ट ने सुरक्षा प्रदान करने और सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान दर्ज करने का निर्देश दिया था. SC ने आईजी (मेरठ जोन) को जांच की निगरानी करने का निर्देश दिया था. इसके बाद इस मामले की जांच में तेजी आई.

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जब पीड़ित परिवार को हजम नहीं हुई पुलिस थ्योरी?

सोशल मीडिया पर दो वीडियो सामने आए थे. उनमें एक में दिख रहा है कि बुरी तरह घायल कासिम को भीड़ घसीटते ले जा रही है. दूसरे वीडियो में देखा गया कि समयदीन को धमकाते हुए गोकशी में शामिल होना कबूल करने के लिए दबाव डाला जा रहा है. इसी घटना से जुड़ी ऐसी तस्वीर भी सामने आई थी, जिसमें कुछ लोग कासिम के हाथ-पैर पकड़कर घसीटते ले जा रहे थे. उनके आगे पुलिसकर्मी चल रहे थे. ये तस्वीर वायरल हुई तो यूपी पुलिस ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से माफी मांगने में देर नहीं लगाई थी. उस समय पुलिस ने यह दावा भी कर दिया था कि ये घटना रोडरेज की वजह से हुई, जिसके बाद गुस्साई भीड़ ने कासिम पर हमला कर दिया और समयदीन कासिम को बचाने आया तो उस पर भी हमला किया गया. पीड़ित परिवार का कहना था कि गोरक्षा के नाम पर आतंक फैलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही इसलिए वो बेखौफ हैं. 

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