Advertisement

पिता के बाद अब बेटे डीवाई चंद्रचूड़ संभालेंगे CJI का पद, लंबी है ऐतिहासिक फैसलों की लिस्ट

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ अगले महीने भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभालेंगे. उनके पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ भी CJI रह चुके हैं. यह एकमात्र पिता-पुत्र की जोड़ी है, जो CJI के पद पर पहुंची है. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नाम अनगिनत ऐतिहासिक फैसले हैं.

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ (फाइल फोटो) न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ (फाइल फोटो)
कनु सारदा/संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 11 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 11:33 PM IST

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ अगले महीने भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभालेंगे. इसके साथ ही एक अनोखा इतिहास भी बन जाएगा. दरअसल, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ भी CJI रह चुके हैं. लिहाजा यह एकमात्र पिता-पुत्र की जोड़ी है, जो CJI के पद पर पहुंची है. पूर्व CJI वाईवी चंद्रचूड़ 1978 में मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किए गए थे. वह 1985 में सेवानिवृत्त हुए थे. इस पद पर 7 साल तक कार्य करने का सबसे लंबा कार्यकाल भी उन्हीं के नाम है. 

Advertisement

भारत के पूर्वCJI वाईवी चंद्रचूड़ ने अपने कार्यकाल के दौरान संजय गांधी को 'किस्सा कुर्सी का' नामक फिल्म को लेकर सजा सुनाई थी. यह फिल्म इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी की राजनीति पर एक व्यंग्य थी और आपातकाल के दौरान भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दी गई थी.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने पिता के 2 फैसले पलटे


जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान अपने पिता वाईवी चंद्रचूड़ के 2 फैसलों को पलट दिया था. दरअसल, ये फैसले व्यभिचार और निजता के अधिकार से संबंधित थे. कुख्यात बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने आपातकाल के दौरान सभी मौलिक अधिकार निलंबित करने की अनुमति दी थी. जिसे बाद में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने खारिज कर दिया था, जिसमें अन्य न्यायाधीशों ने सहमति व्यक्त की थी. उनके पिता 1975 में बहुमत के पक्ष में थे. इस फैसले को एडीएम जबलपुर मामले के रूप में जाना जाता है, जिसमें पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ उन न्यायाधीशों में शामिल थे, जिन्होंने आपातकाल लगाने के राष्ट्रपति के आदेश को बरकरार रखा था.

Advertisement

जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने पिता के एक और ऐतिहासिक फैसले को खारिज कर दिया था. जिसमें औपनिवेशिक युग के व्यभिचार कानून को बरकरार रखा था. दरअसल, यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ ने धारा 497 की वैधता को बरकरार रखा था. हालांकि, उनके बेटे न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने कानून को रद्द करते हुए कहा था कि हमें अपने निर्णयों को वर्तमान समय के लिए प्रासंगिक बनाना चाहिए.

हार्वर्ड से ली डिग्री, ऐसा रहा सफर
 

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से कानून में दो डिग्री प्राप्त की थी. 39 वर्ष की उम्र में वह वरिष्ठ अधिवक्ता बनने वाले भारत के सबसे कम उम्र के वकीलों में से एक थे. इसके बाद 1998 में उन्हें भारत का अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया. बतौर वकील उन्होंने ओक्लाहोमा यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय कानून पढ़ाया और 1988 से 1997 तक बॉम्बे यूनिवर्सिटी में तुलनात्मक संवैधानिक कानून में गेस्ट प्रोफेसर रहे.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को 2000 में बॉम्बे हाईकोर्ट में जज नियुक्त किया गया था. जहां उन्होंने 13 साल तक सेवाएं दीं. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को 2013 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था और 3 साल बाद उन्हें शीर्ष अदालत में प्रमोट किया गया था.

कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए 

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नाम अनगिनत ऐतिहासिक फैसले हैं. अयोध्या का मामला हो या महिलाओं के अधिकार का या सेना और नेवी में महिला अधिकारियों को कमीशन दिलाने का मिशन... उनके फैसलों की फेहरिस्त काफी लंबी है. हाल ही में जस्टिस चंद्रचूड़ ने एक ऐतिहासिक फैसले में महिलाओं के प्रजनन या गर्भपात कराने के अधिकारों को कानूनी जामा पहनाया था. उस फैसले में अविवाहित या अकेली गर्भवती महिला को 24 सप्ताह तक गर्भपात करने से रोकने के कानून को रद्द कर सभी महिलाओं को ये अधिकार दिया. साथ ही पहली बार मैरिटल रेप को परिभाषित करते हुए पति द्वारा जबरन यौन संबंध बनाने से गर्भवती विवाहित महिलाओं को भी नया अधिकार दिया. फैसला लिखते समय उन्होंने उल्लेख किया कि पुराना प्रावधान समानता के अधिकार की भावना का उल्लंघन करता है. 

Advertisement

कई संविधान पीठों का हिस्सा रहे हैं जस्टिस चंद्रचूड़


जस्टिस चंद्रचूड़ कई संविधान पीठों का हिस्सा रहे हैं. अयोध्या का ऐतिहासिक फैसला, निजता के अधिकार और समलैंगिता को अपराध यानी IPC की धारा 377 से बाहर करने, सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश और लिविंग विल जैसे बड़े फैसले दिए हैं. वह उन जजों में से एक हैं, जिन्होंने कभी-कभी अपने साथी जजों के साथ सहमति भी नहीं जताई. आधार के फैसले में जस्टिस चंद्रचूड़ ने बहुमत से असहमति जताते हुए कहा था कि आधार को असंवैधानिक रूप से धन विधेयक के रूप में पारित किया गया था और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन था.

हमेशा प्रेरित करते हैं जस्टिस चंद्रचूड़

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के साथ काम करने वाले सहयोगियों में से एक ने कहा कि वह एक चपरासी को भी खुले तौर पर श्रेय देते हैं और काम के लिए प्रत्येक की प्रशंसा करते हैं और हमें पूरे समय प्रेरित करते रहते हैं.

ये भी देखें

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement