
नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडिया वीमेन ने आठ राज्यों में धर्म की स्वतंत्रता अधिकार में बदलाव कर बनाए गए नए नियमों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. संगठन ने याचिका दायर कर कहा कि ये राज्य यूपी, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, एमपी, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक हैं. याचिका में महिलाओं पर कानूनों के असंगत प्रभाव और स्वायत्तता के उनके अधिकार को लेकर दायर की गई है. याचिका में कहा गया है कि इन राज्यों में बनाए गए नियम विश्वास और विवाह के मामलों में पसंद के अधिकार पर अनुचित और असंवैधानिक प्रतिबंध लगाते हैं.
महिला की स्वतंत्रता पर पड़ रहा असर
संगठन ने याचिका में कहा कि गोपनीयता और मानवीय गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करते हुए लोगों के निजी जीवन और निर्णयों में दखल देने वाले मनमाने कानून को इन आठ राज्यों ने स्वीकृति दी हैं. इससे महिलाओं पर खास तौर से उनके मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता पर असर पड़ रहा है.
उन्होंने कहा कि उनके द्वारा बनाए गए नियम गहरी जड़ें जमा चुकी पितृ सत्तात्मक धारणाओं को कायम रखने की कोशिश है, जो समाज के बहुसंख्यक लोगों द्वारा परिवार और सामुदायिक नैतिकता की नाम पर महिलाओं को उनके अधिकार से वंचित करती हैं.
मुस्लिम संगठन ने भी दी है चुनौती
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के धर्मांतरण विरोधी कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद संगठन का कहना है कि इस कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है. अंतर-धर्म वाले शादीशुदा जोड़ों को 'परेशान' किया जा रहा है, इसलिए इस कानून को असंवैधानिक घोषित किया जाए.
याचिका में कहा गया है कि JUH ने इस मसले पर पहले से मौजूद याचिकाओं में पक्षकार बनाने की कोशिश की थी, लेकिन उसे पक्षकार बनाने से इनकार कर दिया गया, इसलिए नई रिट याचिका दायर की गई है. याचिका में मांग की गई है कि पांच राज्यों के धर्मांतरण कानून को असंवैधानिक घोषित किया जाए.
जमीयत उलेमा की यह है मांग
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की है. इसमें धर्मांतरण विरोधी कानून को संवैधानिक वैधता की चुनौती दी गई है. उन्होंने उत्तर प्रदेश धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021, उत्तराखंड धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2018, हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2019, मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्र अधिनियम, 2021 और गुजरात धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 को रद्द करने की मांग की है.