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'नाबालिग मुस्लिम लड़की बिना पेरेंट्स की इजाजत के कर सकती है शादी', दिल्ली HC की अहम टिप्पणी

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम कानून के अनुसार यौवन आयु (puberty) प्राप्त करने वाली एक नाबालिग लड़की को अपने माता-पिता की सहमति के बिना शादी करके पति के साथ रहने का अधिकार है भले ही उसकी उम्र 18 वर्ष से कम हो.

दिल्ली हाईकोर्ट ने मुस्लिम कानून का जिक्र किया (सांकेतिक फोटो) दिल्ली हाईकोर्ट ने मुस्लिम कानून का जिक्र किया (सांकेतिक फोटो)
संजय शर्मा/कनु सारदा
  • नई दिल्ली,
  • 23 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 4:35 PM IST

दिल्ली हाई कोर्ट ने आज मुस्लिम लड़की की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि युवावस्था (puberty) प्राप्त करने पर लड़की अपने माता-पिता की सहमति के बिना शादी कर सकती है. जिस लड़की की याचिका वह यहां सुनवाई हो रही थी, उसने अपनी मर्जी से शादी की थी. अब परिजनों से सुरक्षा की मांग को लेकर किशोरी की तरफ से याचिका दायर की गई थी. किशोरी की याचिका को स्वीकार करते हुए जस्टिस जसमीत सिंह की बेंच ने मार्च-2022 में मुस्लिम रीति-रिवाजों से शादी करने वाले इस मुस्लिम जोड़े को सुरक्षा प्रदान की.

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दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम कानून के अनुसार यौवन आयु (puberty) प्राप्त करने वाली एक नाबालिग लड़की को अपने माता-पिता की सहमति के बिना शादी करके पति के साथ रहने का अधिकार है भले ही उसकी उम्र 18 वर्ष से कम हो.

माता-पिता ने 15 साल बताई लड़की की उम्र, आधार कार्ड में लिखा 19 साल

जस्टिस जसमीत सिंह जिस केस की सुनवाई कर रहे थे, उसमें मुस्लिम कपल ने 11 मार्च को लड़की के मां-बाप की बिना इजाजत के शादी की थी. इस केस में लड़के की उम्र 25 साल है. वहीं लड़की की उम्र उसके घरवालों के हिसाब से 15 साल है. हालांकि, लड़की के आधार कार्ड के हिसाब से उसकी उम्र 19 साल है.

जज ने इस केस को पहले के कुछ केसों से अलग बताया. कोर्ट ने कहा कि इस केस में शादी से पहले शारीरिक संबंध नहीं बने हैं. बल्कि याचिकार्ताओं ने पहले मुस्लिम कानून के हिसाब से शादी की. फिर बाद में शारीरिक संबंध बने. दंपती ने याचिका दायर कर यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग की थी कि कोई उन्हें अलग न करे. हाई कोर्ट की बेंच ने कहा कि मुस्लिम कानूनों के तहत उन्होंने शादी की और इसके बाद शारीरिक संबंध बनाए.

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बेंच ने स्पष्ट किया कि पाक्सो अधिनियम का उद्देश्य बच्चों की कोमल उम्र को सुरक्षित करने के साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि उनके साथ दुर्व्यवहार न हो. बेंच ने कहा कि अगर याचिकाकर्ताओं को अलग किया जाता है तो इससे याचिकाकर्ता किशोरी और उसके अजन्मे बच्चे के साथ और अधिक आघात होगा. राज्य का उद्देश्य याचिकाकर्ता किशोरी के सर्वोत्तम हित की रक्षा करना है.

 

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