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'सजा का मकसद सुधारना और हम सुधर गए', सुप्रीम कोर्ट में बोला बिलकिस बानो केस का दोषी

दोषी शख्स ने कोर्ट को बताया कि उसे दोष सिद्धि और सजा सुनाए जाते वक्त जुर्माना अदा करने का आदेश कोर्ट ने दिया था. वो भरना चाहता था लेकिन नहीं भर पाया. ऐसे में जुर्माने को उसकी सजा में रियायत के साथ जोड़कर देखना उचित नहीं है.

बिलकिस बानो (File Photo) बिलकिस बानो (File Photo)
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 01 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 5:49 AM IST

गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप और उसके परिवार के 14 लोगों की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा में समय से पहले रिहा होने वाले दोषियों में से एक सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है. उसने कोर्ट से गुहार लगाई है कि हमारा कानून सजा के जरिए अपराधी के सुधार पर जोर देता है. उसे और अन्य दोषियों को मिली समय पूर्व रिहाई इसी तथ्य के तहत हुई है. इसलिए गुजरात सरकार के कदम में कोई गलती या गड़बड़ नहीं है.

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दोषी शख्स ने कोर्ट को बताया कि उसे दोष सिद्धि और सजा सुनाए जाते वक्त जुर्माना अदा करने का आदेश कोर्ट ने दिया था. वो भरना चाहता था लेकिन नहीं भर पाया. ऐसे में जुर्माने को उसकी सजा में रियायत के साथ जोड़कर देखना उचित नहीं है. 

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया हलफनामा

दरअसल, बिलकिस बानो मामले में दोषी ठहराए गए अपराधियों में से एक जसवंत भाई चतुर भाई नाई ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है. उन्होंने इसके जरिए 15 साल पहले उम्रकैद के साथ 34 हजार रुपए जुर्माना अदा करने की इच्छा जताई है. 

2008 में दोषियों को हुई थी सजा

गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में 2002 में हुए दंगों के दौरान बिलकिस बानो से गैंगरेप और कई हत्याओं के जुर्म में  2008 में ट्रायल कोर्ट के आदेश पर सभी आरोपियों को दोषी मानते हुए उम्रकैद और 34 हजार रुपए अर्थ दंड अदा करने का आदेश दिया था. उम्र कैद के शुरुआती दस साल सश्रम कारावास यानी कैद बा मशक्कत के तय किए गए. 

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कॉलेज में क्लर्क था अविवाहित दोषी

पंद्रह साल सात महीने जेल में रहने के बाद नाई को भी 10 अगस्त 2022 को रिहा किया गया. नाई ने अपनी सजा पूरी होने से पहले रिहाई के लिए अपनी अर्जी में बताया कि वो आर्ट कॉलेज में क्लर्क था. वह अविवाहित और बेरोजगार है. उसकी आंखों में मोतियाबिंद है और ऑपरेशन की सख्त जरूरत है.

जुर्माना अदा करने की शर्त अनिवार्य नहीं

सिद्धार्थ लूथरा ने एक सजायाफ्ता दोषी की पैरवी करते हुए कहा कि समयपूर्व रिहाई के लिए नकद जुर्माना अदा करने की कोई अनिवार्य शर्त नहीं लागू होती है. वो सजा काट चुका है. भारतीय कानून के मुताबिक कोई भी अदालत किसी अपराध के लिए दो बार आजीवन कारावास की सजा नही दे सकती. 

जुर्मान भरने का उच्छुक है दोषी

उन्होंने आगे कहा कि वैसे भी उम्रकैद का प्रावधान मृत्युदंड को रोकने के लिए ही किया गया है. समय पूर्व सजा खत्म करने से दोष सिद्धि यानी कनविक्शन के आधार पर भी कोई असर नहीं पड़ता. दरअसल, सुनवाई के दौरान जस्टिस नागरत्ना ने पूछा था कि क्या जुर्माना अदा न करना समय पूर्व रिहाई में बाधा बन सकता है? इस पर जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने कहा था कि रिहाई के समय तक जुर्माना नहीं भरा गया था. इस पर सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि हमारे मुवक्किल ने जुर्माना भरने की इच्छा से एक अर्जी भी दाखिल की थी.

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