
बॉम्बे हाई कोर्ट ने पत्रकार बदसलूकी मामले में एक्टर सलमान खान की याचिका पर सुनवाई के बाद अंधेरी मजिस्ट्रेट कोर्ट के समन पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. जस्टिस भारती डांगरे की बेंच ने कहा कि लोगों की अपनी निजता होनी चाहिए. चाहे वह अभिनेता हो, वकील या जज. जस्टिस डांगरे ने आगे कहा- आप में से कोई भी कानून से ऊपर नहीं है. ना कोई एक्टर और ना प्रेस के लोग. उन्हें भी कानून का पालन करना होता है. इस मामले मे अब 30 मार्च को फैसला आएगा.
शिकायत कर्ता के मुताबिक, सलमान खान ने मुंबई की सड़कों पर साइकिल चलाते हुए पत्रकार का मोबाइल फोन छीन लिया था. यह घटना तब हुई जब मीडियाकर्मी ने उनकी तस्वीरें क्लिक करनी शुरू कीं. एक्टर ने कथित तौर पर बहस की और पत्रकार को धमकी दी. सुनवाई के दौरान कोर्ट में पत्रकार के बयान बदलने पर भी चर्चा हुई. कोर्ट को बताया गया कि पत्रकार पहले पुलिस के पास गया था और उसने कथित तौर पर सिर्फ अपना फोन लिए जाने का उल्लेख किया था. जबकि हमले के बारे में कुछ भी नहीं बताया था. बाद में जब उसने मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज कराई तो कथित तौर पर मारपीट का जिक्र किया.
दो महीने बाद मारपीट का जिक्र क्यों?
इस संबंध में जस्टिस डांगरे ने पूछा- दो महीने के बाद आपको पता चला कि मारपीट की गई थी, हमला किया था? आपने तुरंत मारने या हमला करने की बात नहीं कही, लेकिन दो महीने बाद आप कहते हैं कि आप पर हमला किया गया है. पुलिस को अपनी पहली शिकायत देखें.
'झपट्टा मारकर फोन ले गए'
पत्रकार की तरफ से पक्ष रख रहे अधिवक्ता फाजिल शेख ने कहा कि पहली शिकायत में भी ऐसा उल्लेख किया गया था. बयान में लिखा है- झपट्टा मारते हुए वो जबरन फोन ले गए और चले गए. हाथापाई हुई, सलमान खान वहां थे. उन्होंने बल का प्रयोग किया. जब पत्रकार ने पुलिस कंट्रोल को 100 डायल किया, तब उन्होंने फोन वापस कर दिया.
'कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ?'
सलमान खान के वकील आबाद पोंडा ने हाई कोर्ट में कहा कि पत्रकार के बयान में बदलाव हुआ है. उसने घटना के दिन पुलिस के सामने बयान दिया था और कुछ महीने बाद उसने अंधेरी कोर्ट में शिकायत दर्ज की. जस्टिस डांगरे ने आगे कहा कि प्रोसेस फॉलो करते समय मजिस्ट्रेट ने कानून की उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया. कृपया तारीखें देखें. उसने 200 से पहले 202 किया है. पहले 200, फिर 202 करना है.
कोर्ट ने कार्रवाई पर उठाए सवाल
आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 200 में कहा गया है कि मजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता और गवाहों की जांच करेगा, यदि कोई हो तो शपथ पर और इसे लिखित रूप के बाद दस्तावेज पर हस्ताक्षर करेगा. सीआरपीसी की धारा 202 में कहा गया है कि शिकायत मिलने पर यदि मजिस्ट्रेट को उचित लगता है तो उसे या तो स्वयं मामले की जांच करनी चाहिए या कार्यवाही के लिए पर्याप्त आधार है या नहीं, यह तय करने के उद्देश्य से एक पुलिस अधिकारी द्वारा जांच करने का निर्देश देना चाहिए. इसलिए बेंच का मानना था कि शिकायतकर्ता के बयान को लिखित रूप में दर्ज करने से पहले मजिस्ट्रेट पुलिस को मामले की जांच करने के लिए नहीं कह सकते थे.
अब 30 मार्च को फैसला सुनाएगा कोर्ट
मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 504 और 506 भी लगाई गई है. धारा 504 उन लोगों के खिलाफ लगाई जाती है जो जानबूझकर किसी व्यक्ति को उकसाने के लिए उसका अपमान करते हैं, इस इरादे से या यह जानते हुए कि इस तरह के उकसावे से सार्वजनिक शांति भंग होगी, या कोई अन्य अपराध होगा. धारा 506 आपराधिक धमकी के लिए है. जस्टिस डांगरे ने कहा- धमकी के संबंध में धारा 504, 506 जरूरी है, जबकि शिकायत में धमकी का जिक्र नहीं है. बेंच ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि आदेश 30 मार्च को सुनाया जाएगा.