
संसद में वोट के बदले नोट मामले में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने सुप्रीम कोर्ट में 7 जजों के संविधान पीठ का गठन कर दिया है. गणपति उत्सव की छुट्टियों के बाद 4 अक्टूबर को इस अहम मामले में सुनवाई होगी. इस संविधान पीठ में CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पामिदिघंटम श्री नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच सुनवाई करेगी.
ये पीठ सदन में वोट के लिए रिश्वत लेने के आरोपी सांसदों/विधायकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई से छूट मिलने पर फिर से विचार करेगी. पिछले हफ्ते ही सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने 1998 के पी वी नरसिम्हा राव मामले में पांच जजों की संविधान पीठ के फैसले पर फिर से विचार करने का फैसला लिया है. लिहाजा इस मामले को पुनर्विचार यानी रिव्यू के लिए सात जजों की संविधान पीठ के पास भेजने की सिफारिश सीजेआई की अगुआई वाली संविधान पीठ ने की थी.
अब तक क्या है नियम?
पीवी नरसिम्हा राव बनाम भारत सरकार मामले में पांच जजों की संविधान पीठ के फैसले के मुताबिक संसद में किसी मुद्दे या विधेयक पर वोट देने के लिए रिश्वत लेने के मामले में मुकदमा चलाने से छूट को अनुच्छेद 194(2) के तहत सांसदों को प्राप्त विशेषाधिकार के तहत रखा था.
7 जजों की संविधान पीठ करेगी दोबारा विचार
लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह राजनीति की नैतिकता पर प्रभाव डालने वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. अब कोर्ट ही यह तय करेगा कि अगर सांसद या विधायक सदन में मतदान के लिए रिश्वत लेते हैं तो क्या तब भी उस पर मुकदमा नहीं चलेगा? बता दें कि 1998 का नरसिम्हा राव का फैसला सांसदों को मुकदमे से छूट देता है. सात जजों की संविधान पीठ इसी फैसले पर दोबारा विचार करेगी.