
देश के हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच खींचतान बनी हुई है. दोनों ओर से आ रहे बयानों से लग रहा है कि ये अधिकार क्षेत्र की लड़ाई है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम सिस्टम के जरिए जजों के चयन की अपनी शक्ति किसी से साझा नहीं करनी चाहती. वहीं सरकार भी संविधान का हवाला देते हुए अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर कोलेजियम की सिफारिशों को ज्यादा से ज्यादा समय तक रोके रखने की जुगत में रहती है.
कोलेजियम के जरिए हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति का सिस्टम 1993 में सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की संविधान पीठ ने अन्य जजों के मामले में निर्णय दिया था. इस निर्णय के साथ ही कॉलेजियम सिस्टम अस्तित्व में आया. इस सिस्टम के जरिए जजों की नियुक्ति का जिक्र न हमारे संविधान में है, न ही इसका कोई कानून संसद ने कभी पास किया है. यह तो सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के मुताबिक जजों के द्वारा जजों की नियुक्ति का सिस्टम चल रहा है.
क्या कहते हैं संविधान के अनुच्छेद
संविधान के अनुच्छेद 124(2) और 217 सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया वर्णित हैं. ये नियुक्तियां राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं, जिसे न्यायालय (सर्वोच्च न्यायालय और उच्चाधिकारियों के ऐसे न्यायाधीशों) के साथ परामर्श करने की आवश्यकता है.
संविधान का अनुच्छेद 124 (2 न्यायालय) कहता है कि सुप्रीम कोर्ट के हर जज को राष्ट्रपति द्वारा अपने हस्ताक्षर और मुहर के तहत सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के ऐसे न्यायाधीशों के साथ परामर्श के बाद नियुक्त किया जाएगा.
इस उद्देश्य के लिए 65 वर्ष की उम्र तक पद पर बने रहेंगे. मुख्य न्यायाधीश के अलावा किसी अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में, सीजेआई से हमेशा परामर्श किया जाएगा."
राष्ट्रपति के भाषण के बाद से चर्चा फिर तेज
पिछले हफ्ते भर की घटनाओं को गौर से देखिए तो पता चलेगा कि 25 नवंबर को सरकार ने बीस फाइलें कोलेजियम को वापस भेज दीं, जिनमें जजों के नाम की सिफारिश भेजी गई थी.
अगले दिन संविधान दिवस समारोह में सरकार और न्यायपालिका यानी सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज एक ही मंच और एक ही सभागार में मौजूद थे. खैर उस दिन 26 नवंबर को साथ सहयोग से आगे बढ़ने के वादे और कसमें खाई गईं. हालांकि राष्ट्रपति ने अपने लंबे-चौड़े आंकड़ों वाले भाषण से विधि और न्याय प्रणाली का सच सामने लाकर रख दिया.
...तो खुद ही कर लें जजों की नियुक्ति
अगले ही दिन कानून मंत्री का बयान आया कि जब हमारी आपत्तियों पर कोलेजियम ध्यान नहीं दे रहा तो फिर खुद ही जजों की नियुक्ति कर लें. हमारी क्या जरूरत है? इस बयान को चौबीस घंटे भी नहीं हुए थे कि सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल ने सरकार को आड़े हाथों ले लिया.
जस्टिस कौल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एनजेएसी को असंवैधानिक बताते हुए रद्द किया, इससे सरकार चिढ़ गई है. इसके बाद सरकार ने सितंबर में भेजी गई कोलेजियम की सिफारिशों में से दो अतिरिक्त जज बॉम्बे हाईकोर्ट में नियुक्त करने की अधिसूचना जारी कर दी.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
- संविधान विशेषज्ञ सीनियर एडवोकेट पीएच पारिख का कहना है कि दोनों पक्ष को बीच का और व्यवहारिक रास्ता अपनाना चाहिए. कोई यह नहीं कह सकता कि सरकार को कोलेजियम की सिफारिश पर कुछ कहने का अधिकार नहीं है. सरकार चुपचाप कोलेजियम की सिफारिशें ही मानती जाए, यह भी सही नहीं होगा. सरकार गंभीर आपत्तियां प्रमाण और आधार के साथ भेजे तो उसे कोलेजियम को भी मानना चाहिए.
- वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह के मुताबिक कोर्ट इस मुद्दे पर सरकार के प्रति कुछ ज्यादा ही नरम है. कोर्ट के आदेश के बाद सरकार के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के सामने तो यह अवमानना याचिका आई थी. कोर्ट को चाहिए था कि अवमानना की कार्रवाई शुरू करने को लेकर हो सरकार को नोटिस भेजा जाता.
- सीनियर एडवोकेट संजीव सेन के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की सिफारिशों को सरकार बिना कारण बताए कितने समय तक लंबित रख सकती है, उसकी समय सीमा तय होनी चाहिए.