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Delhi: 'सोशल मीडिया पोस्ट नहीं हो सकते PIL का आधार', HC ने याचिकाकर्ता को लगाई फटकार

दिल्ली हाई कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म कोई कुछ भी लिख देता है. उनकी बातों को किसी याचिका का आधार नहीं बनाया जा सकता है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को याचिका में सुधार करने या धर्म परिवर्तन के आंकड़े देने की बात कही है. 

धर्म परिवर्तन रोकने के संबंध में दाखिल याचिका पर HC ने की टिप्पणी (फाइल फोटो) धर्म परिवर्तन रोकने के संबंध में दाखिल याचिका पर HC ने की टिप्पणी (फाइल फोटो)
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 03 जून 2022,
  • अपडेटेड 11:33 PM IST
  • धर्म परिवर्तन रोकने के संबंध में दाखिल की थी याचिका
  • अब 25 जुलाई को होगी मामले की अगली सुनवाई

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि सिर्फ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर डाले गए पोस्ट जनहित याचिका का आधार नहीं हो सकते. बिना ठोस आंकड़ों और तथ्यों के अदालत किसी भी जनहित याचिका का आधार नहीं परख सकती.

हाई कोर्ट ने शुक्रवार को याचिकाकर्ता से कहा कि कोर्ट के सामने तथ्य रखिए न कि सोशल मीडिया और व्हाट्सएप की बातें. दरअसल अश्विनी उपाध्याय ने अपनी जनहित याचिका में सोशल मीडिया पर डाले गए पोस्ट्स की भरमार के आधार पर धर्म परिवर्तन रोकने का आदेश देने की दलील पर यह प्रतिक्रिया दी.

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अपनी मर्जी से धर्म चुनने का है अधिकार

जस्टिस संजीव सचदेव और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि अपनी मर्जी से अपना धर्म तय करना यह तो संविधान में दिया गया बुनियादी अधिकार है. संविधान या कानून इस पर रोक भी नहीं लगाता है.

कोर्ट ने कहा कि याचिका में दबाव और प्रभाव का जिक्र तो किया गया है लेकिन इसके सबूत के तौर पर कोई ठोस आधार नहीं दिया गया है, सिवाय सोशल मीडिया पर लगाए गए आरोपों या पोस्ट के. जबकि याचिका के साथ अदालत को अपने तर्क से सहमत करने के लिए समुचित सबूत, साक्ष्य और सामग्री होनी चाहिए.

सोशल मीडिया पोस्ट कोई डाटा नहीं

पीठ ने याचिकाकर्ता की दलीलों पर कहा कि सोशल मीडिया कोई डाटा नहीं है. वहां कोई कुछ भी लिख देता है. फर्जीवाड़ा भी होता है. अब इस संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल लोग करते हैं, लेकिन कोई किसी को जबरन धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर करता है तो मायने और स्थितियां बदल जाती हैं. याचिका में ऐसा कोई उदाहरण नहीं दिया गया है. याचिका में कुछ भी नहीं है जिस पर सुनवाई हो. आंकड़े कहां हैं, केस स्टडी कहां है, तथ्य कहां हैं? सोशल मीडिया की पोस्ट और कटिंग से क्या होगा?

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ब्योरा देने या याचिका सुधारने को कहा

कोर्ट ने पूछा कि आपकी याचिका में जबरन धर्म परिवर्तन कराने की एक भी घटना का ब्योरा या कोई आधिकारिक सूचना, शिकायत नहीं है. या तो आप ये ब्योरा लेकर आएं या अपनी याचिका में सुधार संशोधन करें. इसके बाद कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 25 जुलाई तय कर दी.

केंद्र को नोटिस भेजने से किया इनकार

उपाध्याय ने कोर्ट से केंद्र सरकार को नोटिस भेजकर जवाब मांगने की गुहार लगाई तो पीठ ने मुस्कुराते हुए कहा कि आपने याचिका में जो सीधे-सीधे नहीं किया वो हमसे घुमा फिराकर करवाना चाहते हैं? हम ऐसा नहीं करेंगे. इसके लिए आपको गहराई से अध्ययन और मेहनत करनी होगी. सोशल मीडिया की बातों में सच्चाई है या नहीं, यह अलग बात है लेकिन यह किसी जनहित याचिका का आधार नहीं हो सकता, ये बात आपको साफ-साफ समझ लेनी चाहिए.

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