
Domestic Violence Act: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई में साफ कर दिया कि घरेलू हिंसा कानून में पुरुष को कोई प्रोटेक्शन नहीं मिलता है. हाई कोर्ट ने कहा कि इस कानून के तहत परिवार का पुरुष सदस्य खासकर पति तो संरक्षण के दायरे में नहीं आता.
ये आदेश हाई कोर्ट के जस्टिस जसमीत सिंह ने दिया है. वो एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे.
जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा कि डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट की धारा 2(a) कहती है कि 'पीड़ित व्यक्ति' का मतलब एक ऐसी महिला है जो पुरुष के साथ साझे घर में रह रही है या कभी रह चुकी है.
क्या है पूरा मामला?
ये मामला राजधानी दिल्ली का है. एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी के खिलाफ घरेलू हिंसा कानून के तहत कड़कड़डूमा कोर्ट में अर्जी दी थी.
पति की अर्जी पर मजिस्ट्रेट कोर्ट ने महिला को समन जारी किया था. इसमें महिला को 'आरोपी' बनाया गया था.
मजिस्ट्रेट कोर्ट के इसी आदेश को महिला ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. इस सुनवाई पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी. रोक लगाते हुए जस्टिस जसमीत सिंह ने पूछा भी था- 'ये क्या है? ट्रायल कोर्ट के जज ने अपना दिमाग नहीं लगाया?'
हाई कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा, मौजूदा मामले में महिला (याचिकाकर्ता) के पति ने डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट की धारा 12 के तहत कार्यवाही शुरू की है. पर इस कानून की धारा 2(a) के तहत परिवार के किसी पुरुष, खासकर कि पति को कोई संरक्षण नहीं है.
14 फरवरी को हाईकोर्ट ने कड़कड़डूमा कोर्ट में मजिस्ट्रेट के सामने चल रही इस मामले की सुनवाई पर अगली तारीख तक रोक लगा दी थी. इससे पहले 23 जनवरी को पत्नी के खिलाफ केस करने वाले पति को हाईकोर्ट ने नोटिस भी जारी किया था.
महिला की ओर से पेश हुए वकील ने हाईकोर्ट में यही दलील दी थी कि घरेलू हिंसा कानून की धारा 2(a) के तहत 'पीड़ित व्यक्ति' सिर्फ एक महिला ही हो सकती है और इसमें परिवार के किसी भी पुरुष सदस्य को संरक्षण नहीं है.
क्या है ये कानून?
एक महिला को घर के भीतर होने वाली हिंसा से बचाने के लिए 2005 में घरेलू हिंसा कानून लाया गया था.
इस कानून के दायरे में वो सभी महिलाएं आती हैं जो किसी साझे घर में मां, बहन, पत्नी, बेटी, विधवा हो सकती है. लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को भी इसमें शामिल किया गया है.
कानून के तहत साझे घर में रहने वाली महिला के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन, शरीर के अंग या मानसिक स्थिति को नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता. इस कानून में शारीरिक, मानसिक, मौखिक, भावनात्मक, आर्थिक और यौन हिंसा को शामिल किया गया है. आर्थिक रूप से परेशान करने का मतलब है कि अगर कोई पति या बेटा खर्च के लिए अपनी पत्नी या मां से जबरदस्ती पैसे या कोई चीज मांगता है तो वो महिला घरेलू हिंसा कानून के तहत केस दर्ज करवा सकती है.
इतना ही नहीं, एक शादीशुदा महिला को दहेज के लिए भी प्रताड़ित नहीं किया जा सकता है. साथ ही महिला या उनसे संबंध रखने वाले लोगों के साथ गाली-गलौच नहीं की जा सकती और न ही उन्हें डराया या धमकाया जा सकता है.
कौन कर सकता है शिकायत?
घरेलू हिंसा कानून के तहत एक महिला ही शिकायत कर सकती है. अगर महिला शिकायत नहीं कर सकती है तो उसकी ओर से कोई ओर भी शिकायत कर सकता है.
इस कानून के तहत एक बच्चा भी शिकायत कर सकता है. ऐसे बच्चे की मां अपने नाबालिग बच्चे की ओर से शिकायत दर्ज करवा सकती है. फिर वो बच्चा चाहे लड़का हो या लड़की.
घरेलू हिंसा कानून की धारा- 2(A) में एक महिला को ही 'पीड़ित व्यक्ति' माना गया है. 'पीड़ित व्यक्ति' से किसी ऐसी महिला से मतलब है जो घरेलू हिंसा शिकार रही है.
दिल्ली हाईकोर्ट में भी उस महिला ने धारा- 2(A) के तहत ही 'आरोपी' शब्द को चुनौती दी है. क्योंकि ये धारा कहती है कि एक 'पीड़ित' सिर्फ कोई महिला या लड़की ही हो सकती है.
किसके खिलाफ शिकायत कर सकते हैं?
इस कानून के तहत किसी भी बालिग पुरुष के खिलाफ शिकायत की जा सकती है, जिसके साथ महिला का घरेलू संबंध रहा हो. फिर चाहे वो पति हो सकता है, पिता हो सकता है, भाई हो सकता है या कोई और रिश्तेदार हो सकता है.
इस कानून के तहत एक पुरुष के पुरुष और महिला, दोनों ही रिश्तेदार शामिल होते हैं. इसे ऐसे समझिए कि अगर कोई महिला ससुराल में घरेलू हिंसा का शिकार हो रही है तो वो अपने पति के साथ-साथ सास-ससुर, पति की बहन के खिलाफ भी शिकायत करवा सकती है.
कौन शिकायत नहीं करवा सकता?
इस कानून के तहत, कोई भी पुरुष किसी महिला के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं करवा सकता. एक सास भी अपनी बहू के खिलाफ शिकायत नहीं करवा सकती.
हालांकि, अगर किसी महिला के साथ उसका बेटा हिंसा करता है तो वो अपने बेटे का साथ देने के लिए बहू के खिलाफ शिकायत कर सकती है.