
ज्ञानवापी मामले के लिहाज से सोमवार का दिन बड़े फैसलों वाला रहा है. एक तरफ वाराणसी जिला कोर्ट ने हिंदू पक्ष में फैसला सुना दिया है तो वहीं दूसरी तरफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में भी पांच मामलों को लेकर अहम सुनवाई हुई है. 5 में से 3 मुकदमे में सुनवाई पूरी होने के बाद अदालत ने अपना जजमेंट रिजर्व भी कर किया है. अब सिर्फ सर्वे आदेश से जुड़ी दो याचिकाओं पर 28 सितम्बर को सुनवाई होगी.
इसके अलावा इलाहाबाद हाई कोर्ट में 1991 में दाखिल मुकदमे की पोषणीयता वाली तीन अर्जियों पर भी सुनवाई हुई है. असल में ये 1991 वाला विवाद काशी विश्वानाथ-ज्ञानवापी प्रॉपर्टी को लेकर है. 1998 से ही ये मामला कोर्ट में लंबित चल रहा है, साल 2018 में फिर सुनवाई का दौर शुरू किया गया था. इस मामले में दोनों पक्षों की तरफ से कई दलीलें रखी गई थीं. अब कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.
वैसे वाराणसी जिला कोर्ट का सोमवार वाला फैसला काफी मायने रखता है. ज्ञानवापी केस में हिंदू पक्ष की दलीलों को सुनने योग्य मान लिया गया है. मामले में आगे की सुनवाई को हरी झंडी दिखा दी गई है. कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि मामला यूपी श्री काशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट, 1983 के अंतर्गत आता है और इसपर सुनवाई नहीं हो सकती. कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया है कि हिंदू पक्ष की तरफ से दायर याचिका में पूजा का अधिकार मांगा गया है, जो कि मेरिट (गुण-दोष) के आधार पर सुनवाई योग्य है. अब इस मामले में 22 सितंबर को सुनवाई होने वाली है.
जिला कोर्ट के इस फैसले को एक तरफ हिंदू पक्ष ने दिल खोलकर स्वागत किया है तो मुस्लिम पक्ष थोड़ा निराश है. AIMIM चीफ असुदद्दीन ओवैसी ने कहा है कि जो ऑर्डर आया है उससे देश में बहुत सी चीजें शुरू हो जाएंगी. हर कोई कोर्ट में जाकर यह कहेगा कि 15 अगस्त 1947 से पहले से हम यहां पर थे. ऐसे में 1991, वर्शिप एक्ट का मकसद ही फेल हो जाता है. जिला कोर्ट का फैसला अस्थिरता पैदा करेगा. जब बाबरी मस्जिद पर फैसला आया था, तब भी मैंने चेताया था कि इससे देश के लिए दिक्कतें पैदा होंगी. क्योंकि फैसला आस्था के हिसाब से दिया गया था.