
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद आजम खान को भड़काऊ भाषण मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई है. सुप्रीम कोर्ट ने 2007 में रामपुर में समुदाय विशेष के खिलाफ आपत्तिजनक बयानबाजी से जुड़े मामले में वॉयस सैंपल देने के निचली अदालत के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है. साथ ही आजम खान की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को नोटिस जारी किया है.
दरअसल, आजम खान पर आरोप है कि 2007 में उन्होंने रामपुर में एक सार्वजनिक सभा में समुदाय विशेष के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया था. इस अपराध में उनके खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था. इस मामले में निचली अदालत ने आजम खान को वॉयस सैंपल देने का आदेश दिया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट से भी आजम खान को राहत नहीं मिली थी. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ आजम खान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है.
बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भड़काऊ भाषण देने के एक मामले में सपा नेता आजम खान को दोषी ठहराते हुए रामपुर की एमपी-एमएलए कोर्ट ने दो साल कारावास की सजा सुनाई थी. इसके पहले भी भड़काऊ भाषण देने के एक अन्य मामले में खान को सजा सुनाई जा चुकी है, जिसके चलते उन्होंने अपनी विधानसभा की सदस्यता गंवा दी थी.
जानिए क्या होती है हेट स्पीच?
कानूनी रूप से हेट स्पीच की अलग से कोई व्याख्या नहीं की गई है. संविधान के अनुच्छेद 19 में अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के कुछ बिंदुओं को स्पष्ट किया गया है. इसमें अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार पर 8 तरह के प्रतिबंध लगाए गए हैं. इसके अनुसार, कुछ मामलों पर विवादित बयान देने को हेट स्पीच के दायरे में रखा जाएगा. इसमें राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ दोस्ताना संबंध, लोक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, कोर्ट की अवहेलना, मानहानि, हिंसा, भड़काऊ, भारत की अखंडता व संप्रभुता पर चोट आदि पर कोई भड़काऊ बात कहने को शामिल किया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में हेट स्पीच पर एक फैसला सुनाया था. इसमें कहा गया था कि अगर सांसदों और विधायकों को किसी भी मामले में 2 साल से ज्यादा की सजा हुई है, तो उनकी संसद या विधानसभा की सदस्यता रद्द हो जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (4) को निरस्त किया था. इसमें यह उल्लेख किया गया था कि सदस्यता निरस्त करने का आदेश उस राज्य की विधानसभा के अध्यक्ष अलग से भी पारित करेंगे.