
नाबालिग लड़की के साथ रेप की कोशिश से जुड़े मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के विवादित फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. इस मामले में अब सोमवार को सुनवाई होगी. SC में जस्टिस बेला माधुर्य त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की बेंच इस जनहित याचिका पर सुनवाई करेगी.
17 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने अपने आदेश में जिला अदालत को एक समन में संशोधन करने को कहा था. हाई कोर्ट ने जिला अदालत के समन में रेप की कोशिश का आरोप हटाने और सिर्फ छेड़छाड़ या हमला करने की धाराओं में समन करने का आदेश दिया था.
दरअसल, आरोप था कि एक नाबालिग लड़की के निजी अंगों को छुआ गया और सलवार का नाड़ा तोड़कर घसीटते हुए पुलिया के नीचे ले जाया गया. मामले में दो आरोपियों पर रेप की कोशिश करने का आरोप लगा था.
इलाहाबाद HC ने क्या कहा?
इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनवाई की और कहा, पीड़िता के प्राइवेट पार्टस को छूना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे खींचकर भागने का प्रयास करना रेप या रेप की कोशिश के अपराध के अंतर्गत नहीं आएगा. इसे यौन उत्पीड़न जरूर कहा जाएगा. समन आदेश में संशोधन करते हुए दो आरोपियों के खिलाफ आरोपों में कोर्ट ने बदलाव किया.
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शुरुआत में आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 18 के तहत मुकदमे में समन किया गया था. लेकिन हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि इन धाराओं के बजाय आरोपी पर आईपीसी की धारा 354 बी (कपड़े उतारने के इरादे से हमला या आपराधिक बल प्रयोग) के मामूली आरोप के साथ पॉक्सो अधिनियम की धारा 9/10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुकदमा चलाया जाए.
यह पूरा मामला कासगंज जिले के पटियाली थाना इलाके का है. स्पेशल जज पॉक्सो एक्ट के समन आदेश को पुनरीक्षण याचिका में इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. हाईकोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया रेप की कोशिश का आरोप नहीं बनता है.
सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका
अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. वकील अंजले पटेल की ओर से यह अर्जी उनके वकील संजीव मल्होत्रा ने दायर की है. इस याचिका में जजमेंट के उस विवादित हिस्से को हटाने की मांग की गई है, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि पीड़ित के प्राइवेट पार्ट को पकड़ना और पायजामे का नाड़ा तोड़ने के बावजूद आरोपी के खिलाफ रेप की कोशिश का मामला नहीं बनता है. इस स्थिति में भी सिर्फ हमला करने के आरोप वाली धाराओं में ही ट्रायल कोर्ट आरोपियों को समन करे.
याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट केंद्र सरकार/ हाईकोर्ट रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दे कि वो अपने आदेश के इस विवादित हिस्से को हटाएं. इसके साथ ही याचिका में मांग की गई है कि जजों की ओर से की जाने वाली ऐसी विवादित टिप्पणियों को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट अपनी ओर से एक दिशा-निर्देश जारी करे.