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'कंपनी में हाउसकीपिंग का काम करने वाले भी माने जाएं कर्मचारी', कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला

कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाउसकीपिंग का काम करने वालों को लेकर बड़ी टिप्पणी की है. कर्नाटक हाईकोर्ट ने सरकारी कंपनी मैसूर इलेक्ट्रिकल इंडस्ट्रीज लिमिटेड को हाउसकीपिंग कर्मचारियों की सेवा बहाल करने का आदेश दिया और कहा कि इसकी प्रवृत्ति बारहमासी होती है. इसमें काम करने वालों को कर्मचारी की तरह माना जाना चाहिए.

कर्नाटक हाईकोर्ट (फाइल फोटोः आजतक) कर्नाटक हाईकोर्ट (फाइल फोटोः आजतक)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 03 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 3:11 PM IST

हाउसकीपिंग की नौकरियों को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है. कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि हाउसकीपिंग की नौकरी की प्रवृत्ति बारहमासी होती है और इसमें काम करने वाले को कर्मचारी की तरह माना जाना चाहिए. कर्नाटक हाईकोर्ट ने सरकारी कंपनी मैसूर इलेक्ट्रिकल इंडस्ट्रीज लिमिटेड (एमईआईएल) को हाउसकीपिंग कर्मचारियों की सेवा बहाल करने का भी आदेश दिया है.

कर्नाटक हाईकोर्ट ने ये आदेश मैसूर इलेक्ट्रिल इंडस्ट्रीज लिमिटेड के कर्मचारियों को निकाले जाने से जुड़े मामले में दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया. दरअसल, साल 2000 में शंकर नर्सरी एंड एसोसिएटेड डिटेक्टिव एंड सिक्योरिटी सर्विसेज का एमईआईएल कंपनी के साथ कर्मचारी उपलब्ध कराने का अनुबंध था.

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एमईआईएल कंपनी ने अपना अनुबंध रद्द कर दिया और 66 कर्मचारियों को काम से हटा दिया. स्थानीय स्तर पर सुलह-समझौते की कवायद हुई लेकिन फिर भी हल नहीं निकला तब श्रमिकों ने लेबर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सन 2001 में लेबर कोर्ट ने काम से हटाए गए श्रमिकों की सेवा बहाल करने के आदेश दिए. इसके खिलाफ कंपनी हाईकोर्ट पहुंच गई.

कर्नाटक हाईकोर्ट ने लेबर कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी और मामले को फिर से वापस लेबर कोर्ट भेज दिया. लेबर कोर्ट ने साल 2011 में फिर से सभी कर्मचारियों को बहाल करने का आदेश दिया. एमईआईएल कंपनी ने लेबर कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. एमईआईएल कंपनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज 23 फरवरी को फैसला सुनाया था.

हाईकोर्ट ने खारिज की कंपनी की दलील

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कंपनी ने हाईकोर्ट में ये दलील दी कि बागवानी, लोडिंग और अनलोडिंग का काम करने वाले हाउसकीपिंग स्टाफ कॉन्ट्रैक्ट पर रखे गए मजदूर थे. ये एक दिन में कुछ घंटे काम करते थे. हाईकोर्ट ने ये दलील खारिज कर दी और कहा कि ये ऐसी जॉब्स हैं जिनकी सेवाओं की जरूरत दिन-ब-दिन और महीने के अंत में भी होती है.

न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज ने अपने फैसले में कहा कि मैं मानता हूं कि ये नौकरियां प्रकृति में बारहमासी हैं और इसलिए ये अस्थायी नहीं होनी चाहिए जैसा तर्क दिया गया है. उन्होंने नियोक्ता और कॉन्ट्रैक्टर के बीच कथित समझौते को दिखावा और छलावा बताते हुए कहा कि श्रमिकों ने लंबे समय तक काम किया है और उनको उचित राशि से वंचित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया गया है.

कर्नाटक हाईकोर्ट ने सभी मजदूरों को बहाल करने का आदेश दिया और कहा कि प्रतिवादी-यूनियन से संबंधित मजदूरों को याचिकाकर्ता का कर्मचारी माना जाएगा. हालांकि, कर्नाटक हाईकोर्ट ने एमईआईएल कंपनी को थोड़ी राहत भी दी. हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता रिक्तियों के आधार पर प्रतिवादी-यूनियन के सदस्यों की सेवा नियमित करेगा. ऐसी स्थिति में जब कोई रिक्ति न हो, रिक्ति होने पर याचिकाकर्ता अधिकतम उम्र और शैक्षणिक योग्यता में छूट देकर प्रतिवादी-यूनियन के सदस्यों को वरीयता देगा.

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