
बिलकिस बानो केस के सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया गया है. दोषियों पर बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप करने और उसके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या करने का इल्जाम था. दोषियों की रिहाई पर फैसला गुजरात सरकार ने लिया है. सभी दोषियों को 2008 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी.
2002 में गुजरात के गोधरा में जब दंगे भड़के थे, तब बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप हुआ था. इस दौरान उसके परिवार के 7 सदस्यों की भी हत्या कर दी गई थी. सभी आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार कर लिया गया था.
2008 में सीबीआई कोर्ट ने दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. एक आरोपी की ट्रायल के दौरान मौत हो गई थी. जबकि, बाकी 7 आरोपियों को सबूतों के अभाव में रिहा कर दिया गया था. दोषियों की सजा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा था.
11 दोषियों में से एक राधेश्याम शाह ने रिहाई के लिए गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. गुजरात हाईकोर्ट ने उसकी याचिका को ये कहते हुए खारिज कर दिया था कि रिहाई का फैसला महाराष्ट्र सरकार कर सकती है. इसके बाद राधेश्याम ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया. इसी साल 13 मई को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को रिहाई पर फैसला लेने के लिए दो महीने का समय दिया था.
रिहाई की मांग कर सकता है कैदी?
- राधेश्याम शाह ने सीआरपीसी की धारा 432 और 433 के तहत सजा माफी के लिए गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. चूंकि, इस पूरे मामले का ट्रायल मुंबई में हुआ था, इसलिए हाईकोर्ट ने ये कहते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी कि इस पर फैसला महाराष्ट्र सरकार ले सकती है.
- इसके बाद राधेश्याम शाह ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपराध गुजरात में हुआ था, इसलिए दोषियों की रिहाई पर फैसला गुजरात सरकार ही कर सकती है. इसके बाद एक कमेटी ने दोषियों की रिहाई पर फैसला लिया.
- सीआरपीसी की धारा 432 के तहत राज्य सरकार किसी दोषी की सजा को माफ कर सकती है और उसे रिहा कर सकती है. सरकार दोषी को शर्तों के साथ या बिना किसी शर्त के भी रिहा कर सकती है. वहीं, धारा 433 के तहत किसी दोषी की सजा को कम करने का अधिकार राज्य सरकार के पास होता है.
इन दोषियों की रिहाई क्यों?
- संविधान का आर्टिकल 161 कहता है कि जिस किसी व्यक्ति को किसी मामले में दोषी पाया गया है, वही राज्यों की रिमिजन पॉलिसी के तहत सजा माफी के लिए आवेदन कर सकता है. जिन व्यक्तियों पर मुकदमा चल रहा है, उन पर आर्टिकल 161 लागू नहीं होता.
- इन दोषियों को गुजरात सरकार की रिमिजन पॉलिसी के तहत रिहा किया गया है. रिमिजन पॉलिसी कहती है कि सीआरपीसी की धारा 432 के तहत दोषी को सजा में छूट दी जा सकती है. सजा में छूट के लिए दोषी को खुद ही आवेदन करना होता है. यानी, राज्य सरकार अपने आप किसी दोषी को छूट या सजा माफी नहीं दे सकती है.
- ये गलतफहमी है कि उम्रकैद की सजा पाए दोषी को 14 साल या 20 साल की सजा के बाद रिहा कर दिया जाता है. लेकिन ऐसा नहीं होता है. उम्रकैद की सजा पाए दोषी को अपनी मौत तक जेल में ही बिताना होता है. हालांकि, 14 साल पूरे होने के बाद दोषी सजा माफी या सजा में छूट के लिए आवेदन कर सकता है.
बिलकिस बानो केस क्या है?
- 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के कोच को जला दिया गया था. इस ट्रेन से कारसेवक लौट रहे थे. इससे कोच में बैठे 59 कारसेवकों की मौत हो गई थी.
- इसके बाद दंगे भड़क गए थे. दंगों की आग से बचने के लिए बिलकिस बानो अपनी बच्ची और परिवार के साथ गांव छोड़कर चली गई थीं.
- बिलकिस बानो और उनका परिवार जहां छिपा था, वहां 3 मार्च 2002 को 20-30 लोगों की भीड़ ने तलवार और लाठियों से हमला कर दिया.
- बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप किया गया था. उस समय बिलकिस 5 महीने की गर्भवती थीं. इतना ही नहीं, उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या भी कर दी थी. बाकी 6 सदस्य वहां से भाग गए थे.