जस्टिस बीआर गवई होंगे देश के अगले मुख्य न्यायाधीश, CJI संजीव खन्ना ने केंद्र सरकार को भेजी सिफारिश

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी.आर. गवई को देश के अगले मुख्य न्यायाधीश बनाने की सिफारिश मौजूदा CJI संजीव खन्ना ने की है. उनका कार्यकाल 13 मई को खत्म हो रहा है. अगर मंजूरी मिलती है तो जस्टिस गवई देश के 51वें CJI होंगे.

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 जस्टिस भूषण आर गवई. जस्टिस भूषण आर गवई.

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 16 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 4:27 PM IST

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस भूषण आर गवई के नाम का प्रस्ताव देश के अगले मुख्य न्यायाधीश (CJI) के तौर पर कानून मंत्रालय को भेजा गया है. यह नाम मौजूदा मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने भेजा है, जिनका कार्यकाल 13 मई को खत्म हो रहा है.

दरअसल, परंपरा के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा चीफ जस्टिस ही अपने उत्तराधिकारी का नाम सरकार को भेजते हैं. इस बार भी यही प्रक्रिया अपनाई गई है. कानून मंत्रालय ने औपचारिक तौर पर जस्टिस खन्ना से उनके उत्तराधिकारी का नाम पूछा था, जिसके जवाब में उन्होंने जस्टिस गवई का नाम आगे बढ़ाया.

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अगर राष्ट्रपति भवन से मंजूरी मिलती है तो जस्टिस भूषण आर गवई देश के 51वें मुख्य न्यायाधीश बनेंगे. जस्टिस बी.आर. गवई 14 मई को देश के अगले मुख्य न्यायाधीश (CJI) पद की शपथ ले सकते हैं. हालांकि उनका कार्यकाल केवल छह महीने का होगा क्योंकि वे नवंबर 2025 में रिटायर होने वाले हैं.

जस्टिस गवई को 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था. उनका जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था. वे दिवंगत आर.एस. गवई के बेटे हैं, जो एक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता और बिहार व केरल के राज्यपाल रह चुके हैं.

जस्टिस गवई ने अपने न्यायिक करियर की शुरुआत 14 नवंबर 2003 को बॉम्बे हाईकोर्ट में एडिशनल जज के रूप में की थी. 12 नवंबर 2005 को वे स्थायी जज बने. उन्होंने 15 साल से ज़्यादा समय तक मुंबई, नागपुर, औरंगाबाद और पणजी में विभिन्न पीठों पर काम किया.

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एक खास बात यह भी है कि वे सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त होने वाले केवल दूसरे अनुसूचित जाति (SC) जज हैं. इससे पहले जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन 2010 में सेवानिवृत्त हुए थे.

महत्वपूर्ण फैसले   

नोटबंदी पर फैसला: जस्टिस बी.आर. गवई ने 2016 की नोटबंदी योजना को वैध ठहराते हुए बहुमत की राय लिखी थी. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के पास मुद्रा अमान्य घोषित करने का अधिकार है और यह योजना 'प्रोपोर्शनैलिटी टेस्ट' (संतुलन की कसौटी) पर खरी उतरती है.  

बिना प्रक्रिया के बुलडोजर कार्रवाई पर रोक: एक ऐतिहासिक फैसले में उन्होंने कहा कि किसी भी आरोपी की संपत्ति को बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के गिराना असंवैधानिक है. उन्होंने साफ किया कि कार्यपालिका (Executive) न तो न्यायाधीश बन सकती है और न ही कानून की प्रक्रिया के बिना तोड़फोड़ कर सकती है.  

इलेक्टोरल बॉन्ड केस: जस्टिस गवई उस पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की संवैधानिकता की जांच की थी. यह मामला राजनीतिक चंदों में पारदर्शिता को लेकर उठी चिंताओं से जुड़ा था.

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