
केरल सरकार ने बुधवार को राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के खिलाफ दूसरी बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. राज्यपाल पर सरकार द्वारा पारित महत्वपूर्ण विधेयकों को दबाकर रखने का आरोप है. केरल राज्य ने अपने बयान में कहा, विधेयकों को लंबे समय तक और अनिश्चित काल तक लंबित रखने का राज्यपाल का आचरण स्पष्ट रूप से मनमाना है और संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का भी उल्लंघन करता है. इसके अतिरिक्त, यह संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत केरल राज्य के लोगों को राज्य विधानसभा द्वारा अधिनियमित कल्याणकारी कानून के लाभों से वंचित करके अधिकारों को पराजित करता है.
याचिका में कहा गया है कि मौजूदा समय में आठ प्रमुख विधेयक राज्यपाल के पास लंबित हैं और राज्य विधानमंडल द्वारा पारित और राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किए गए 8 विधेयकों के संबंध में राज्यपाल की ओर से निष्क्रियता के संबंध में न्यायालय से उचित आदेश की मांग की जा रही है.
अनुच्छेद 200 के अनुसार, जब कोई विधेयक किसी राज्य की विधान सभा द्वारा पारित कर दिया गया हो या विधान परिषद वाले राज्य के मामले में, राज्य के विधानमंडल के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया गया हो, तो विधेयक पर सहमति दी जाएगी. राज्यपाल के सामने प्रस्तुत किया जाएगा और राज्यपाल या तो घोषणा करेंगे कि वह विधेयक पर सहमति देते हैं या वह उस पर सहमति रोकते हैं या वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित करते हैं.
केरल सरकार ने केरल उच्च न्यायालय की एर्नाकुलम पीठ के आदेश को भी चुनौती दी है, जिसने विधेयकों पर अनिश्चित काल के लिए सहमति रोकने की राज्यपाल की कार्रवाई को चुनौती देने वाली एक वकील की याचिका खारिज कर दी थी.
उच्च न्यायालय में वकील ने सवाल उठाया है कि क्या राज्यपाल पारित किए गए विधेयकों के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत अनिवार्य/निर्धारित एक या विधायिका द्वारा अन्य तरीकों से समयबद्ध तरीके से कार्य करने के लिए संवैधानिक दायित्व के तहत है.