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एक हजार की रिश्वत के आरोप में अरेस्ट अधिकारी 20 साल बाद बरी, बॉम्बे HC ने सुनाया फैसला

बॉम्बे हाई कोर्ट ने रिश्वतखोरी के आरोप में अरेस्ट एक भू-राजस्व अधिकारी को बड़ी राहत दी. कोर्ट ने उसे 20 साल बाद इस आरोप से बरी कर दिया है. महाराष्ट्र के कोल्हापुर के कागल तालुका में तैनात अधिकारी को एक हजार रुपये की घूस लेने पर एंटी करप्शन ब्यूरो ने अरेस्ट किया था.

बॉम्बे हाई कोर्ट ने 20 साल पुराने रिश्वखोरी के एक मामले में सुनाया फैसला (फाइल फोटो) बॉम्बे हाई कोर्ट ने 20 साल पुराने रिश्वखोरी के एक मामले में सुनाया फैसला (फाइल फोटो)
विद्या
  • मुंबई,
  • 22 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 9:31 AM IST

बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक हजार की रिश्वत लेने के आरोप में अरेस्ट भू-राजस्व अधिकारी को 20 साल बाद बरी करने का फैसला सुनाया है. बाबूराव भोई 1997 से 2002 तक महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के कागल तालुका में साके-सज्जा में तलाथी के रूप में काम कर रहे थे. उन्होंने भूमि रिकॉर्ड बदलने के लिए 1000 रुपये की रिश्वत मांगी थी.

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दरअसल सरकार एक नहर निर्माण परियोजना के लिए क्षेत्र में भूमि का अधिग्रहण कर रही थी. इस दौरान कई भूमि मालिकों को पर्याप्त मुआवजा दिया गया था. इस प्रक्रिया के दौरान ही एक भूमि मालिक ने शिकायत दर्ज की थी कि परियोजना के लिए उसकी जमीन ले ली गई लेकिन उसे मुआवजा नहीं दिया गया.

शिकायतकर्ता ने भू-राजस्व विभाग में काम करने वाले बाबूराव भोई से राजस्व रिकॉर्ड में सुधार करने के लिए संपर्क किया था ताकि उन्हें जमीन के मालिक के रूप में दिखाया जा सके न कि केवल लाइसेंसधारियों के रूप में. उसने आरोप लगाया गया कि भोई ने अपना काम करने के लिए उससे 1,000 रुपये की मांग की थी. इसके बाद उसने एंटी करप्शन ब्यूरो में जाकर भोई के खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी थी.

एंटी करप्शन ब्यूरो की टीम ने कथित तौर पर बाबूराव को रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया और उसके खिलाफ चार्जशीट दायर कर दी. इसके बाद जब कोर्ट में सुनवाई हुई तो बाबूराव ने कोर्ट को बताया कि भूमि कभी भी शिकायतकर्ता की नहीं थी. भूमि सरकारी थी. वह केवल शिकायतकर्ता लाइसेंसी था.

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उन्होंने कभी भी रिश्वत की मांग नहीं की, बल्कि कहा कि उन्होंने राजस्व की बकाया राशि की मांग की थी. वहीं शिकायतकर्ता के अनुसार, वह किसी भी बकाया का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं थे.

बाबूराव के अनुसार फरियादी ने उसे जो पैसा दिया था, वह बकाया पैसा था. उसने फ्लैग-फंड की रसीद जारी की थी. वह भू-राजस्व के बकाये के भुगतान की रसीद तैयार करने ही वाला था कि उसे गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि तमाम दलीलों को सुनने के बाद 2007 में कोल्हापुर सत्र न्यायालय ने बाबूराव को एक साल की जेल और 500 रुपये का जुर्माना की सजा सुना दी.

इसके जब बाबूराव सत्र न्यायालय के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट पहुंच गए. यहां उनके अधिवक्ता सत्यव्रत जोशी और नितेश मोहिते ने कोर्ट को बताया कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य से पता चलता है कि भू-राजस्व का बकाया लगभग 929 रुपये था.

उसके ऊपर 25 रुपये का फ्लैग फंड भी लिया गया था, इसलिए 1000 रुपये की राशि जो भोई ने ली थी, वह विशेष राशि थी, उसे रिश्वत या अवैध राशि नहीं कहा जा सकता.

इसके बाद न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल ने भोई को बरी करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता ने खुद निचली अदालत में स्वीकार किया था कि भोई उसे और उसके चचेरे भाई को भूमि निर्धारण के बकाया 929 रुपये जमा करने के लिए कह रहा था और वे उस राशि का भुगतान करने के लिए तैयार नहीं थे.

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न्यायमूर्ति कोतवाल ने कहा, फ्लैग फंड के साथ मिलकर 929 रुपये का यह आंकड़ा 1,000 रुपये की राशि के बहुत करीब आता है, जो इस मामले में शामिल है. इलाके के डिप्टी कलेक्टर ने यह भी कहा था कि तलाथियों को भू-राजस्व की बकाया राशि एकत्र करने और फ्लैग फंड एकत्र करने का काम दिया गया था, इसलिए भोई को बरी किया जाता है.

 

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