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मेघालय सरकार ने 'टू-फिंगर टेस्ट' पर रोक लगाई, सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी कड़ी फटकार

मेघालय सरकार ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि उसने ‘टू-फिंगर टेस्ट’ पर रोक लगा दी है. यह जांच यह निर्धारित करने के लिए की जाती थी कि कहीं दुष्कर्म या यौन उत्पीड़न की पीड़िता यौन संबंध बनाने की आदी तो नहीं है.

मेघालय सरकार ने ‘टू फिंगर टेस्ट’ पर लगाई रोक (File photo) मेघालय सरकार ने ‘टू फिंगर टेस्ट’ पर लगाई रोक (File photo)
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 06 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 2:13 PM IST

मेघालय सरकार ने अहम कदम उठाते हुए आक्रामक और वैज्ञानिक रूप से बदनाम ‘टू-फिंगर टेस्ट’ पर आधिकारिक रूप से प्रतिबंध लगा दिया है. यह निर्णय मई 2024 में जारी किए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के जवाब में आया है, जिसमें बलात्कार पीड़ितों की गरिमा का उल्लंघन करने वाली इस प्रथा की निंदा की गई थी.

राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मेघालय के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग ने 27 जून 2024 को एक परिपत्र जारी कर इस जांच पर रोक लगा दी है और इसका अनुपालन नहीं करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी.  यह जांच यह निर्धारित करने के लिए की जाती थी कि कहीं दुष्कर्म या यौन उत्पीड़न की पीड़िता यौन संबंध बनाने की आदी तो नहीं है.

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परिपत्र में कहा गया, ‘उच्चतम न्यायालय और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने यौन उत्पीड़न की पीड़िताओं पर टीएफटी के चलन पर रोक लगा दी है. यह प्रक्रिया वैज्ञानिक रूप से निराधार, आघात पहुंचाने वाली है और पीड़िता की गरिमा और अधिकारों का उल्लंघन करती है.’

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सुप्रीम कोर्ट ने की थी निंदा

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 7 मई को पारित शीर्ष अदालत के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि शीर्ष अदालत ने 'टू-फिंगर टेस्ट' करने की प्रथा की कड़ी निंदा की थी. पीठ ने यह आदेश एक दोषी द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए पारित किया, जिसने पिछले वर्ष 23 मार्च को मेघालय उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी. हाई कोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के तहत दंडनीय अपराधों के लिए उसकी दोषसिद्धि की पुष्टि की थी.

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पीठ ने कहा कि दोषी को इस अपराध के लिए 10 वर्ष की सजा सुनाई गई थी. सर्वोच्च न्यायालय ने अक्टूबर 2022 के अपने एक फैसले में बलात्कार पीड़ितों पर ‘टू फिंगर टेस्ट’ की निंदा की थी और कहा था कि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है बल्कि यह उन महिलाओं को फिर से परेशान करना है जिनका यौन उत्पीड़न हुआ है और यह उनकी गरिमा का अपमान है. 

टू-फिंगर टेस्ट होता क्या है?- 
टू-फिंगर टेस्ट में पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में दो उंगलियां डाली जाती हैं. इससे डॉक्टर ये पता लगाने की कोशिश करते हैं कि पीड़िता सेक्सुअली एक्टिव है या नहीं.

- इस टेस्ट के जरिए प्राइवेट पार्ट के बाहर एक पतली झिल्ली को जांचा जाता है, जिसे हाइमन कहते हैं. अगर हाइमन होता है तो पता चलता है कि महिला सेक्सुअली एक्टिव नहीं है. लेकिन हाइमन को नुकसान पहुंचा होता है तो इससे महिला के सेक्सुअली एक्टिव होने की बात सामने आती है.

- हालांकि, ये धारणा पूरी तरह सही नहीं है. मेडिकल साइंस में भी ऐसा सामने आ चुका है कि खेलकूद और दूसरे कारणों से भी हाइमन को नुकसान पहुंच सकता है.- टू-फिंगर टेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में ही रोक लगा दी थी. लेकिन उसके बावजूद ये होता रहा है. झारखंड में शैलेंद्र कुमार राय के मामले में भी हाईकोर्ट ने टू-फिंगर टेस्ट के आधार पर ही उसे बरी कर दिया.

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मार्च 2014 में आई थी गाइडलाइन

सुप्रीम कोर्ट की ओर से टू-फिंगर टेस्ट पर रोक लगाए जाने के बाद मार्च 2014 में स्वास्थ्य मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ रिसर्च ने रेप और यौन हिंसा की शिकार महिलाओं की जांच के लिए गाइडलाइंस जारी की थीं.- इन गाइडलाइंस में 'टू-फिंगर टेस्ट' पर साफ रोक लगा दी गई थी. इसमें लिखा था कि टू-फिंगर टेस्ट करना गैरकानूनी है और ऐसा नहीं किया जा सकता है. गाइडलाइंस में लिखा था कि हाइमन के टूटने या न टूटने से साबित नहीं होता कि महिला के साथ यौन हिंसा हुई है या वो सेक्सुअली एक्टिव है.

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